संदीप ठाकुर
परिस्थिति मलिका अर्जुन खड़गे काे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का
अध्यक्ष बना रही है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि खड़गे के कांग्रेस
अध्यक्ष बनने से पार्टी काे क्या लाभ होगा ? राजनीति में दिलचस्पी रखने
वाले इस बिंदु पर बंटे हुए हैं। एक वर्ग का कहना है कि खड़गे पार्टी के
काफी पुराने नेता हैं और इसका लाभ कांग्रेस काे अवश्य मिलेगा। दूसरे वर्ग
का कहना है कि कोई लाभ नहीं मिलेगा। क्याेंकि खड़गे दक्षिण भारत से हैं
और उनका जनाधार करीब करीब सिकुड़ चुका है। एक तीसरा वर्ग भी है जिसका
मानना है कि खड़गे से कांग्रेस को यदि कोई फायदा नहीं होता है तो कोई
नुकसान भी नहीं होगा। इन तीनों वर्ग के अपने अपने तर्क हैं।
पहले फायदे की बात करते हैं। इतना तो मान कर चला जा सकता है कि खड़गे का
गांधी परिवार के साथ कोई टकराव नहीं होगा। वे वही करेंगे जो आलाकमान
कहेगा। और यही आलाकमान चाहता भी है। दूसरा फायदा यह हो सकता है कि अगले
साल मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हाेने वाले हैं। खड़गे कर्नाटक
की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे हैं। वे नौ बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं
। बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष यदि वे कर्नाटक में कांग्रेस के लिए प्रचार
करेंगे तो कांग्रेस को यकीनन फायदा होगा। इसके साथ साथ लोकसभा चुनाव
में भी कर्नाटक में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधर सकता है। पिछले चुनाव में
कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत पाई थी और राज्य की 28 में से 25 सीट पर भाजपा
ने कब्जा जमाया था। खड़गे कर्नाटक से ही हैं। खड़गे के अध्यक्ष बनने से
यदि वहां कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार आता है तो यह बड़ी बात हाेगी।
इतिहास बताता है कि कांग्रेस को सदैव दक्षिण भारत से मदद मिलती रही है।
जब भी कांग्रेस कमजोर हुई है तो दक्षिण भारत से वापसी हुई है- खास कर
कर्नाटक से। इंदिरा गांधी भी 1977 में जब हारी थीं तब वे कर्नाटक के
चिकमंगलूर से चुनाव लड़ने गई थीं। सोनिया गांधी भी बेल्लारी से जाकर
चुनाव जीत चुकी हैं। अब भी कांग्रेस के 52 में से आधे से अधिक सांसद
दक्षिण भारत के ही हैं। केरल और तमिलनाडु में कांग्रेस को पिछली बार बड़ी
जीत मिली थी। इस बार फिर कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि दक्षिण भारत के
राज्यों में उसका प्रदर्शन बेहतर होगा। दक्षिण भारत का राष्ट्रीय अध्यक्ष
होने से कांग्रेस की उम्मीद पूरी हो सकती है।
खड़गे दलित हैं। इसका फायदा भी पार्टी काे हाे सकता है। हालांकि इसके
पहले कांग्रेस ने पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बना कर भी एक मैसेज दिया था
लेकिन वहां वह फेल हो गई थी। खड़गे विगत आठ साल से दोनों सदनों के नेता
रहे हैं। इस नाते उनके तकरीबन सभी विपक्षी नेताओं के साथ उनके संवाद और
संबंध हैं। इसका लाभ मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
खड़गे से पार्टी काे कोई लाभ नहीं मिलेगा,मानने वालों का मानना है कि
कांग्रेस में आज जैसी भगदड़, अनिश्तितता, किंकर्तव्यविमूढ़ता है उसे राेक
पाना खड़गे के बस का नहीं है। जनाधार के मामले में भी खड़गे कमजोर हैं।
उत्तर भारत में उनके न तो कोई समर्थक हैं और न ही कोई फॉलाेअर। दक्षिण
भारत में भी खड़गे के चाहने वालों की संख्या सिकुड़ गई है। तभी तो वे
कर्नाटक से पिछली बार लोकसभा चुनाव हार गए थे। चुनाव हारे हुए व्यक्ति से
यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि उसके नाम का फायदा पार्टी काे मिलेगा।
दूसरा कांग्रेस पार्टी के भीतर भी एकता नहीं है। पार्टी चलाने के दाैरान
आने वाली मुशकिलाें काे हल करने में वरिष्ठ नेता सहयाेग करेंगे इसे लेकर
संशय है। चूंकि आला कमान कमजाेर हाे गया है इसलिए क्षत्रपाें ने अपनी
मनमानी शुरु कर दी है। इसका नमूना कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष नामांकन
प्रक्रिया के दाैरान सामने आ चुका है। अशाेक गहलाैत ने जाे ड्रामा किया
उससे पार्टी की छवि आवाम में कपजाेर हाे कर उबरी है। इतनी पुरानी पार्टी
का काेी अध्यक्ष बनने काे तैयार नहीं है। अंत में खड़गे काे सामने लाया
गया। खड़गे पार्टी पर अंकुश लगा पाते हैं या नहीं यह ताे आने वाला वक्त
ही बताएगा। गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष जब भी बना ताे उसके संबंध
गांधी परिवार से अच्छे नहीं रहे। फिर चाहे वह नरसिंह राव हाें या फिर
सीताराम केसरी। बहरहाल पते की बात है कि राहुल गांधी के इस्तीफा देने के
कोई तीन साल बाद पार्टी को एक निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष मिलेगा।