अध्यक्ष पद चुनाव में भी दिखी गांधी परिवार के साथ गहलोत की नज़दीकी

रविवार दिल्ली नेटवर्क

नई दिल्ली : सोमवार को होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। खड़गे के ख़िलाफ़ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे शशि थरूर की तरफ़ से गहलोत के खड़गे को समर्थन वाले बयान पर शिकायत दर्ज कराने से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस आलाकमान से गहलोत की नज़दीकी से पार्टी के भीतर खलबली मची हुई है। शनिवार को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कर्नाटक के बेल्लारी में हुई सभा में भी गहलोत की उपस्थिति और राहुल गांधी व खड़गे के साथ दिखी नज़दीकियों से यह स्पष्ट हो गया है कि अशोक गहलोत अभी भी पार्टी नेतृत्व की पसंद बने हुए हैं।

अशोक गहलोत शनिवार को तीसरी बार भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए। पहली बार यात्रा की शुरुआत के समय फिर 16 सितंबर को गहलोत ने राहुल के साथ यात्रा में भागीदारी की थी। बेल्लारी में गहलोत ने राहुल के साथ न केवल रैली में मंच साझा किया बल्कि सिद्धरमैया के भाषण देते वक्त राहुल ने केसी वेणुगोपाल को दूसरी सीट पर भेज गहलोत को अपने पास बुलाया। मंच पर ही दोनों नेताओं के बीच लंबी चर्चा हुई। दोनों के बीच गुजरात चुनाव पर विचार विमर्श हुआ। ग़ौरतलब है कि अशोक गहलोत को गुजरात चुनाव में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाया है। जल्दी ही गहलोत को गुजरात के दौरे पर जाना है। बेल्लारी में कल भारत जोड़ो यात्रा ने एक हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय किया।

गहलोत ने पिछले दिनों ही एक बयान जारी करके अध्यक्ष पद चुनाव में खड़गे को समर्थन देने की अपील की थी। थरूर ने इसे नियमों का उल्लंघन बताते हुए चुनाव प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री से शिकायत की है। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि खड़गे को पहले ही गांधी परिवार का समर्थन प्राप्त है, इसलिए चुनाव में उनके ख़िलाफ़त कोई जाएगा इस पर संदेह है। दूसरी तरफ़ राजस्थान सीएम पद पर बनाये रखकर गांधी परिवार ने पहले ही संकेत दे दिया है कि गहलोत और उनके बीच किसी तरह की दूरी नहीं है। एआइसीसी सूत्रों का कहना है कि यदि सोनिया गांधी के मन में गहलोत के प्रति कुछ भी संदेह होता तो उन्हें खड़गे का प्रस्तावक नहीं बनाया जाता।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक़ “गहलोत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और 50 वर्ष के अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने कभी भी नेतृत्व का साथ नहीं छोड़ा। पार्टी के कुछ नेताओं की तरफ़ से कांग्रेस नेतृत्व पर हुए हमलों के दौरान भी वो संकटमोचक की तरह गांधी परिवार के साथ खड़े रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व और उनके बीच दूरी कैसे हो सकती है?”