इंद्र वशिष्ठ
किसी अपराधी के खिलाफ इंटरपोल द्वारा रेड कार्नर नोटिस जारी करने की खबरें अक्सर आती रहती हैं।
जिससे यह लगता है कि रेड नोटिस जारी हो गया तो अब वह अपराधी निश्चित तौर पर गिरफ्तार हो ही जाएगा। लेकिन यह बात पूरी तरह सत्य नहीं है। इंटरपोल किसी देश को उस अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।
इंटरपोल के महासचिव जुर्गन स्टॉक ने यह साफ कर दिया है।
इंटरपोल अपने सदस्य देशों को अपराध के खतरों से निपटने में मदद करने के साथ-साथ उनके पीछे के अपराधियों का पता लगाने और गिरफ्तार करने के लिए विशिष्ट रूप से तैनात है, विशेष रूप से रेड नोटिस के माध्यम से।
इंटरपोल के महासचिव जुर्गन स्टॉक ने कहा कि रेड नोटिस क्या है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह क्या नहीं है, इस पर कुछ भ्रम है। इंटरपोल महासचिव ने बताया कि रेड नोटिस एक अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट नहीं है, और इंटरपोल किसी भी सदस्य देश को किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है जिसके खिलाफ रेड नोटिस है।
किसी मामले की योग्यता या राष्ट्रीय अदालतों द्वारा लिए गए निर्णय का न्याय/जज करना इंटरपोल के लिए नहीं है – यह एक संप्रभु मामला है।
इंटरपोल की तटस्थता और स्वतंत्रता आवश्यक-
इंटरपोल की भूमिका यह आकलन करना है कि रेड नोटिस का अनुरोध हमारे संविधान और नियमों के अनुरूप है या नहीं। इसका मतलब यह है कि हम एक अनुरोध स्वीकार नहीं कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, यह राजनीतिक, सैन्य, धार्मिक या नस्लीय चरित्र का है, या डेटा के प्रसंस्करण पर हमारे नियमों के अनुसार नहीं है। जबकि हम समझते हैं कि रेड नोटिस प्रकाशित नहीं करने के निर्णय का सदस्य देश द्वारा स्वागत नहीं किया जा सकता है, रेड नोटिस की शक्ति का हिस्सा हमारी सदस्यता के भरोसे है कि हम हर देश से किसी भी अनुरोध का आकलन करते समय समान नियम लागू करते हैं। इंटरपोल की तटस्थता और स्वतंत्रता आवश्यक है।
आतंकवाद के खिलाफ इंटरपोल की भूमिका नहीं-
इंटरपोल के महासचिव जुर्गन स्टॉक ने कहा कि राज्य प्रायोजित आतंकवाद जैसी किसी भी गतिविधि को रोकने में अंतरराष्ट्रीय पुलिस संगठन कोई भूमिका नहीं निभाता है। इसका ध्यान साइबर अपराधियों, मादक पदार्थ के सौदागरों और बाल शोषण करने वालों पर अंकुश लगाने पर रहता है।
अपराध पर ध्यान केंद्रित-
इंटरपोल के महासचिव ने कहा कि हम मुख्य रूप से हमारे संविधान के अनुसार सामान्य कानून अपराध पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हम बाल शोषण करने वालों, बलात्कारियों, हत्यारों, अरबों पैसा कमाने की चाहत रखने वाले मादक पदार्थ सौदागरों और साइबर अपराधियों के खिलाफ काम कर रहे हैं तथा इस पर इंटरपोल का मुख्य ध्यान है। दुनिया भर में ज्यादातर यही अपराध होते हैं, इसलिए इंटरपोल मौजूद है।
90 वीं महासभा
इंटरपोल की 90 वीं महासभा राजधानी दिल्ली में स्थित प्रगति मैदान में (18 से 21 अक्टूबर) हो रही है। महासभा में इंटरपोल के 195 देशों के प्रतिनिधि शामिल है। इन प्रतिनिधियों में सदस्य देशों के मंत्री, पुलिस प्रमुख, केंद्रीय ब्यूरो के प्रमुख और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं। इंटरपोल की वर्ष में एक बार जनरल असेंबली/ महासभा/ बैठक होती है। इस बैठक में इंटरपोल के कामकाज की समीक्षा की जाती है और महत्वपूर्ण फैसले भी लिए जाते हैं। महासभा में वित्तीय अपराधों और भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।
दूसरी बार मेजबानी-
सीबीआई 25 साल बाद दूसरी बार इंटरपोल महासभा की मेजबानी कर रही है। इसके पहले साल 1997 में भारत में इंटरपोल महासभा हुई थी। यह आयोजन भारत की कानून और व्यवस्था के तंत्र से दुनिया को अवगत कराने का एक अवसर है।
इंटरपोल का उद्देश्य-
इंटरपोल महसभा का मकसद होता है कि आने वाले सालों में आपराधिक चुनौतियों का सभी देश कैसे सामना करेंगे, कैसे आपसी समन्यवय के साथ अपराध और अपराधियों पर नकेल कसी जाएगी। इतना ही नहीं सभी देश एक-दूसरे से अपने-अपने देश की पुलिसिया कार्यशैली को भी शेयर करते हैं, ताकि सभी को एक दूसरे से कुछ सीखने को मिले और कानून-व्यवस्था को मजबूत किया जा सके।
इंटरपोल महासभा बेहद अहम-
देश और दुनिया में चल रहे आपराधिक गठजोड़ को देखते हुए दिल्ली में होने वाली इंटरपोल ये महासभा बेहद अहम मानी जा रही है। इस महासभा के जरिए दुनिया की तमाम एजेंसिया अपने अपने देशों में सक्रिय उन इंटरनेशनल गैंग पर नकेल लगाने की रणनीति बनायेंगे, जो विदेशों में बैठकर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं।
इंटरपोल की इस बैठक में नार्को-टेररिज़्म, ड्रग सिंडिकेट, साइबर क्राइम, कुख्यात गैंगस्टर्स के ठिकानों और फ्रॉड से जुड़े अपराधियो और अपराध के पैटर्न पर न सिर्फ चर्चा होगी बल्कि एक दूसरे से इनपुट शेयर करने पर सहमति भी बनाने की कोशिश की जाएगी।
इंटरपोल का इतिहास-
इंटरपोल एक तरह से अंतरराष्ट्रीय पुलिस संगठन है, जिसमें भारत समेत 194 सदस्य देश हैं। इंटरपोल का मुख्यालय फ्रांस के लयोन में स्थित है। मोनाको में आयोजित पहली इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस कांग्रेस (14 से 18 अप्रैल 1914) में इंटरपोल का विचार पैदा हुआ था। उस समय 24 देशों के अधिकारियों ने अपराध को सुलझाने ,तरीकों/तकनीकों की पहचान और प्रत्यर्पण के लिए आपसी सहयोग पर चर्चा की। इसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस आयोग के तौर पर 1923 में हुई थी और इसने 1956 में अपने आप को इंटरपोल कहना शुरू कर दिया। साल 1949 में भारत इसका सदस्य बना था।
सीबीआई अधीकृत –
दरअसल, सभी देश इस प्लेटफार्म पर आकर अपने-अपने देश में मौजूद अपराधियों और अपराध की जानकारियां एक दूसरे से साझा करते हैं। भारत में सीबीआई इंटरपोल से संपर्क में रहने के लिए अधिकृत है यानी सीबीआई इंटरपोल और देश की अन्य जांच एजेंसियों के बीच नोडल एजेंसी है।