सीता राम शर्मा ” चेतन “
अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले दिनों पाकिस्तान को दुनिया का सबसे खतरनाक देश बताकर अप्रत्यक्ष तौर पर उसे एक निहायति गैर जिम्मेदार देश भी बताया तो दशकों से अमेरिकन खैरात पर पलता आ रहा पाकिस्तान बैचेन हो उठा । उसके नेता अमेरिकन राष्ट्रपति के इस बयान पर विरोध दर्ज करने लगे । गौरतलब है कि पाकिस्तान ने अपने आपको जिस तरह आतंकवाद का वैश्विक गढ़ और दुनियाभर के आतंकवादियों की शरणस्थली बनाने में सफलता हासिल की है, उसमें अमेरिका का अहम योगदान रहा है । हालांकि भूतपूर्व अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रंप ने उस अमेरिकन नीति में बदलाव कर सुधार का संकेत दिया था, पर सत्ता बदलते ही वह फिर अपनी उसी पापी नीयत और नीति पर आ गया । उसके भूतपूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस पाकिस्तान को हजारों निर्दोष अमेरिकन लोगों के हत्यारे ओसामा बिन लादेन को संरक्षण देने का गुनाहगार तथा विश्वासघाती और आतंकवादी देश बताते हुए उसे वर्षों से दी जा रही खैरात बंद कर दी थी, उसे पिछले दिनों जो बाइडेन ने फिर से देने की घोषणा कर डाली । बाइडेन का वह आदेश जितना आश्चर्यजनक था उससे कहीं ज्यादा संदिग्ध ! सवाल यह है कि भूतपूर्व अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान के बारे में जो कहा और समझा तथा उसके साथ किया, वह सही था या अब जो उसके साथ बाइडेन कर रहे हैं वह सही और न्यायसंगत है ? इस बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी सवाल का जवाब फिलहाल बहुत जरूरी तौर पर और बहुत गंभीरतापूर्वक पूरी दुनिया को जो बाइडेन से पूछना चाहिए । उनसे पूछना चाहिए कि हजारों निर्दोष अमेरिकन लोगों के हत्यारे जिस ओसामा बिन लादेन को पूरा अमेरिकन खुफिया तंत्र वर्षों तक दुनियाभर में खोजता फिर रहा था, जिसे खोजने में अमेरिका ने हजारों करोड़ डॉलर खर्च कर दिए, उसे अपने सबसे सुरक्षित क्षेत्र में रखने का बड़ा गुनाहगार पाकिस्तान था या नहीं ? यदि हां, तो फिर ओसामा बिन लादेन के वहां पाए जाने और उसे मारने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को उसके इस दुस्साहस और कुकृत्य के लिए तब त्वरित कोई दंड क्यों नहीं दिया ? स्पष्ट है कि इन ज्वलंत सवालों का जवाब जो बाइडेन कभी नहीं दे सकते । ट्रंप ने भी इस जरूरी प्रश्न का बिना स्पष्ट जवाब दिए आतंकवाद के प्रति चली आ रही अमेरिकन नीति में सुधार की कोशिश अवश्य की थी, पर बाइडेन के आने के बाद अब अमेरिका फिर अपनी उसी पुरानी पापी नीयत और नीति की राह पर है, जिसके लिए उसकी हर संभव भर्त्सना की जानी चाहिए । भारतीय विदेश मंत्री ने इसका प्रयास भी किया है, जिसे उन्हें आगे भी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से पूरी शालिनता, कूटनीतिक तार्किकता और ज्यादा मुखरता के साथ वैश्विक मंचों से करते रहना चाहिए । भारत को अब वैश्विक मंचों पर आतंकवाद को लेकर यह बात पूरी स्पष्टता और निर्भीकता के साथ कहनी चाहिए कि आतंकवाद को लेकर अब दुनिया का कोई भी देश दोहरे मापदंडों से दुनिया को बेवकूफ नहीं बना सकता । आतंकवाद वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी समस्या और चुनौति है और जो भी देश अपने किसी भी तरह के स्वार्थ या फिर विवशता की पापी नैतिकता की आड़ में स्वार्थ सिद्धि के लिए आतंकवादी तथा आतंकवाद को प्रश्रय तथा प्रोत्साहन देने का कोई भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कार्य करता है, वह पूरी दुनिया के साथ संपूर्ण मनुष्य जाति का सबसे बड़ा दोषि और खतरनाक देश है ।
अब बात अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडेन के द्वारा पाकिस्तान को जोर देकर परमाणु संपन्न देश बताते हुए दुनिया का सबसे खतरनाक देश बताने की, तो स्पष्ट है कि यह भी अमेरिकन राष्ट्रपति का सोचा समझा एक कूटनीतिक बयान है, जिसके माध्यम से उनकी मंशा एक तरफ जहां पाकिस्तान को व्यापारिक मापदंड के तहत दी गई सहायता बताकर भारत के विरोध को कम करने की दिखाई देती है तो दूसरी तरफ वे इस बयान के माध्यम से भारत के सामने पाकिस्तानी परमाणु शक्ति को अधिकाधिक महिमामंडित कर उसके भय और उस पर अपने प्रभाव तथा अंकुश को बताने दिखाने का प्रयास करते दिखाई देते हैं । गौरतलब है कि अमेरिका का पहला और पूरा सच यह है कि वह निर्विवाद और विशुद्ध रूप से सबसे पहले एक घोर स्वार्थी हथियारों का व्यापारी राष्ट्र है, जिसके लिए सबसे उपर और पहले अपना हित और स्वार्थ है, चाहे उससे दुनिया का कितना भी अहित क्यों ना हो । यहां तक कि चाहे कभी-कभार उसकी उस नीति से उसे स्वंय का भी थोड़ा नुकसान क्यों ना उठाना पड़े, जैसा नुकसान उसे पाकिस्तान से ओसामा प्रकरण में उठाना पड़ा था । अमेरिका की पाकिस्तान को लेकर एक चिंता यह भी रही होगी कि ट्रंप की बेरुखी के बाद उसकी घनिष्ठता उसके प्रबल शत्रु राष्ट्र चीन से बढ़ी है, जो कभी भी बड़े प्रलोभन के साथ पाकिस्तानी आतंकवाद का उपयोग अमेरिका के खिलाफ कर सकता है । अमेरिका यह बखूबी जानता है कि पाकिस्तान आतंकवादी के साथ ब्लैकमेल करने वाला एक घोर अविश्वसनीय देश है, जिसे उसने अफगानिस्तान प्रकरण में भी बखूबी महसूस किया है । वह जानता है कि फिलहाल पाकिस्तान को थोड़ी खैरात देकर ही अपने प्रति थोड़ा वफादार रखा जा सकता है । दुनिया में तेजी से अपनी हैसियत और विश्वसनीयता खोता अमेरिका पाकिस्तान को खैरात देकर अभी यही प्रयास कर रहा है । पर सच तो यही है कि अति का अंत होता है । झूठ और पाखंड की उम्र नहीं होती । अमेरिका के लिए इतना ही कहा जा सकता है कि समय अभी भी शेष है उसके संभलने और सुधरने का । बेहतर होगा कि वह समय रहते अपनी नीयत और नीति बदले वर्ना समय तो अवश्यमेव उसे बदल ही देगा । सर्वशक्तिमान का उसका भ्रम व्यर्थ है ।
अंत मे बात भारत की, तो इसे अब अपनी कूटनीतिक श्रेष्ठता का परिचय देते हुए, पुराने मित्रों के साथ घनिष्ठता बरकरार रखते हुए, नये मित्रों के साथ औपचारिक नैतिक तथा आंशिक व्यापारिक संबध बनाए रखने का प्रयास करते हुए उनमें परिवर्तन का प्रयास करते रहना होगा । गलत को पूरी ताकत से गलत बोलने की अपनी भरोसेमंद वैश्विक छवि बनानी होगी । गलत पर पूरी ताकत से सरकार और जनता के कई अलग-अलग माध्यमों से सवाल उठाने होंगे ! बेहतर होगा कि उनके मुंह में सही जवाब भी हमारे ही हों ।