प्रदीप शर्मा
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. करीब 24 साल बाद गांधी परिवार के बाहर का कोई नेता देश की सबसे पुरानी पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। इससे पहले सीताराम केसरी गैर-गांधी अध्यक्ष रहे थे। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को मतदान हुआ था. इस बार मुकाबला वरिष्ठ पार्टी नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच था. जिनमें से शशि थरूर को पछाड़ने में मल्लिकार्जुन खड़गे कामयाब रहे। मल्लिकार्जुन खड़गे को 7,897, जबकि शशि थरूर को 1,072 वोट मिले हैं।
इस पर शशि थरूर ने कहा, ‘कांग्रेस का अध्यक्ष बनना बड़े सम्मान, बड़ी जिम्मेदारी की बात है, मैं मल्लिकार्जुन खरगे को इस चुनाव में उनकी सफलता के लिए बधाई देता हूं. अंतिम फैसला खरगे के पक्ष में रहा, कांग्रेस चुनाव में उनकी जीत के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देना चाहता हूं.’
साथ ही उन्होंने कहा, ‘सर्वाधिक संकटपूर्ण स्थितियों में पार्टी का संबल बने रहने और नेतृत्व प्रदान करने के लिए हम निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के ऋणी हैं. कांग्रेस अध्यक्ष पद का स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में अपना योगदान देने के लिए मैं राहुल गांधी, प्रियंका गांधी का धन्यवाद करता हूं.’
इस चुनाव में जीत के साथ ही खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाला 65वें नेता बन गए हैं। वे कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले दूसरे दलित नेता हैं। बाबू जगजीवनराम कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले पहले दलित नेता थे। आजादी के बाद 75 साल में से 42 साल तक पार्टी की कमान गांधी परिवार के पास रही। वहीं, 33 साल पार्टी अध्यक्ष की बागडोर गांधी परिवार से अलग नेताओं के पास रही।
मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि भी बेहद साफ और पार्टी के लिए मुखर रहने वाले ईमानदार नेता की है. पार्टी के अंदर भी उनका किसी से मनमुटाव सामने नहीं आया है. हालांकि गांधी खानदान के अलावा पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं से उनका उतना अधिक जुड़ाव नहीं है. इस पर भी दलित कांग्रेसी नेता मानकर चल रहे हैं कि उनके अध्यक्ष पद पर होने से पार्टी के पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों की पार्टी में वापसी हो सकती है।
यहां पर ये बात भी गौर करने लायक है कि खड़गे भले ही दलित समुदाय के हों, लेकिन दक्षिण भारत के बाहर उनका जनाधार बेहद कम है. उत्तर भारत में वह कितना असर कर पाएंगे इस पर कयास लगाना या कुछ कहना अभी जल्दीबाजी होगी, क्योंकि राजनीति में कब बाजी पलट जाए इसे लेकर कोई कुछ नहीं कह सकता है। अभी तक दलित नेता के तौर पर यूपी में बीएसपी सुप्रीमो मायावती को असरदार माना जाता है लेकिन अब लगता है कि खड़गे यूपी में दलितों को लुभाने की जोरदार और पुरजोर कोशिश कर सकते हैं।
हाल ही में कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के शिष्य रहे बृजलाल खाबरी को प्रदेशाध्यक्ष का पद सौंपा जाना इसका सबूत है. इस फैसले के पीछे प्रियंका गांधी को माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि ये लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर की गई खास तैयारी है.
खड़गे के अध्यक्ष बनने से इससे सोने पर सुहागा हो गया है. वह भी दलित समुदाय से आते हैं और यहां उन्हें बृजलाल खाबरी का संग मिलेगा तो शायद यूपी के दलित वोट बैंक को खो चुकी कांग्रेस इसे वापस पा सके. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दक्षिण राज्य में भारत जोड़ो यात्रा से लोकसभा 2024 में जीत की तैयारियों को पक्का करने में लगे हैं और खड़गे को इस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए सोनिया और राहुल का ही उम्मीदवार माना गया था।
अध्यक्ष बनते ही दो राज्यों के चुनावो की चुनौती
कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनने के बाद क्या कुछ बदलेगा इसको लेकर कई सवाल हैं लेकिन उससे कहीं अधिक मल्लिकार्जुन खरगे के सामने आने वाली चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों का जिक्र किया जाए तो कांटों भरा ताज है। अध्यक्ष बनने के साथ ही दो राज्य हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव है। हिमाचल प्रदेश की चुनावी तारीख भी आ गई है और संभव है कि दिवाली बाद गुजरात चुनाव की भी तारीख आ जाए। पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस की कई राज्यों में करारी हार हुई है। अभी राजस्थान और छत्तीसगढ़ दो ही राज्य उसके पास बचे हैं। हिमाचल और गुजरात का चुनाव कई मायनों में पार्टी के लिए खास है। यह चुनाव खरगे के लिए भी पहली परीक्षा के समान ही है। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस सीधी लड़ाई में है और पार्टी बेहतर नतीजे की उम्मीद लगाए बैठी है। ऐसे में नए अध्यक्ष के ऊपर दबाव भी है और तैयारी के लिए वक्त बिल्कुल ही कम।
ऐसे हुआ नए अध्यक्ष का चुनाव
कांग्रेस के करीब 9900 डेलीगेट पार्टी प्रमुख चुनने के लिए मतदान करने के पात्र थे. कांग्रेस मुख्यालय समेत लगभग 68 मतदान केंद्रों पर मतदान हुआ. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं समेत करीब 9500 डेलीगेट (निर्वाचक मंडल के सदस्यों) ने पार्टी के नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए सोमवार को मतदान किया था।
कांग्रेस पार्टी के 137 साल के इतिहास में छठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है. अध्यक्ष पद के लिए अब तक 1939, 1950, 1977, 1997 और 2000 में चुनाव हुए हैं. इस बार पूरे 22 वर्षों के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है।
इसी बीच, मतगणना के दौरान शशि थरूर की टीम ने पार्टी के मुख्य निर्वाचन प्राधिकारी को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान “अत्यंत गंभीर अनियमितताओं” का मुद्दा उठाया और मांग की कि राज्य में डाले गए सभी मतों को अमान्य किया जाए. थरूर की प्रचार टीम ने पंजाब और तेलंगाना में भी चुनाव के संचालन में “गंभीर मुद्दे” उठाए थे।
टीम ने कहा था, पार्टी के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री को लिखे पत्र में थरूर के मुख्य चुनाव एजेंट सलमान सोज ने कहा है कि तथ्य “हानिकारक” हैं और उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया में “विश्वसनीयता और प्रमाणिकता की कमी” है।
वहीं, राहुल गांधी ने आधिकारिक ऐलान होने से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का ऐलान कर दिया था। राहुल गांधी से पार्टी में उनकी भूमिका से जुड़ा सवाल पूछा गया था, तो उन्होंने कहा था, ‘कांग्रेस अध्यक्ष मेरी भूमिका तय करेंगे, खड़गे जी से पूछिए. कांग्रेस अध्यक्ष ही सुप्रीम हैं. मैं अध्यक्ष को ही रिपोर्ट करूंगा. पार्टी के नए अध्यक्ष ही पार्टी में मेरी भूमिका तय करेंगे.’
मल्लिकार्जुन खड़गे 2024 में भाजपा को कितना और किस तरह से टक्कर दे पाएंगे ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह से मल्लिकार्जुन खड़गे पर भरोसा जताया है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि खड़गे के सामने तमाम चुनौतियां हैं जिससे उन्हें निपटना होगा। साथ ही अपनी पार्टी की उम्मीदों पर कितना खरा उतरे हैं। इसके अलावा पार्टी में जारी अंदरुनी कलह से निपटना भी उनके लिए चुनौती होगी।