संदीप ठाकुर
कांग्रेस इस समय अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। वरिष्ठ नेता पार्टी
छाेड़ छाेड़ कर भाग चुके हैं। आवाम में पार्टी की विश्वसनीयता का संकट
है। ऐसे कठिन वक्त में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस की कमान संभाली
है। पार्टी काे परफॉर्मर चाहिए। लाख टके का सवाल यह है कि नवनिर्वाचित
अध्यक्ष खड़गे क्या पार्टी संगठन में बदलाव करेंगे या पुरानी टीम से ही
काम चलाएंगे? पुरानी टीम सोनिया और राहुल गांधी की बनाई हुई है और उनके
भरोसे के लोग इस टीम में हैं। क्या उन्हें हटाने की हिम्मत खड़गे कर
पाएंगे ? या क्या खड़गे काे गांधी परिवार इतनी छूट देगा कि वे अपनी मन
मर्जी का टीम गठित कर सकें ?
संगठन में कुछ बदलाव तो पिछले ही दिनों हुए हैं। जैसे मीडिया की पूरी टीम
कुछ महीने पहले ही बदली गई है। रणदीप सुरजेवाला की जगह जयराम रमेश को
प्रभारी बनाया गया और उनके साथ पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत को बड़ी
जिम्मेदारी दी गई। टीम ने पार्टी काे एक नई घार दी है। अच्छा काम कर रही
है
अब रही बात कांग्रेस के महासचिवों की तो वहां भी खड़गे क्या बदलाव करने
की हिम्मत जुटा पाएंगे ? महासचिव का गणित समझते हैं। कांग्रेस के 10
महासचिव हैं, जिनमें से एक तो प्रियंका गांधी वाड्रा हैं और बाकी नौ
सोनिया व राहुल के भरोसेमंद हैं। अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला, जयराम रमेश,
जितेंद्र सिंह और केसी वेणुगोपाल सरीखे खलीफा हैं। इनके उपर राहुल इनके
ऊपर बहुत भरोसा करते हैं। ओमन चांडी केरल के हैं, जहां के चुनाव पर
कांग्रेस का सबसे ज्यादा ध्यान है और तारिक अनवर इकलौता मुस्लिम चेहरा
हैं। सो, ले-देकर एक मुकुल वासनिक बचते हैं। उनसे कुछ काम वापस लिया भी
गया है और दलित अध्यक्ष बनने के बाद दलित महासचिव की जरूरत नहीं रह गई
है।सो, महासचिव में किसी बड़ी फेरबदल की गुंजाइश नहीं है। हां, अगर इन
महासचिवों में से किसी को उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाता है
तब जरूर नए महासचिव आने की गुंजाइश बनेगी।। जहां तक कोषाध्यक्ष की बात है
तो पवन बंसल ने मुश्किल समय में जिम्मेदारी संभाली। इसलिए उनको भी बदलना
आसान नहीं होगा। कांग्रेस उनको तभी बदल सकती है, जब डीके शिवकुमार या
मिलिंद देवड़ा कोषाध्यक्ष बनने को राजी हों। इस गणित के हिसाब से तो यही
लगता है कि खड़गे की टीम में बड़े पदों पर बैठे पुराने नेताओं काे हटाना
आसान नहीं हाेगा।
खड़गे इंदिरा गांधी के समाजवादी दौर से लेकर मनमोहन सिंह के नव-उदारवादी
दौर तक कांग्रेस के साथ रहे हैं। वे पार्टी के मिजाज काे भली भांति जानते
बूझते हैं। इसलिए पुरानी टीम काे छेड़ने से पहले उन्हें दस बार सोचना
हाेगा। वैसे दूसरी पार्टियों में भी कामकाज का यही ट्रेंड है। जेपी नड्डा
भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद काफी समय तक अमित शाह की पुरानी टीम के साथ ही
काम करते रहे थे और बाद में भी बहुत मामूली बदलाव हुआ था।
आरजेडी,जेडीयू,सपा जैसी पार्टियां में अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में
फेरबदल मामूली ही हुआ था।