नरेंद्र तिवारी
देश के ह्रदय प्रदेश में तेंदुओं की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। इन तेंदुओं को संरक्षण की आवश्यकता हैं। भौगोलिक परिवर्तन की वजह से सघन वन में रहने वाले तेंदुओं का मॉनव बस्तियों के समीप आ जाना चिंता का कारण हैं। मध्यप्रदेश के लिए यह गौरव की बात हैं, कि तेंदुओं की संख्या के लिहाज से सम्पूर्ण भारत देश में प्रदेश अव्वल हैं, किन्तु प्रदेश में बढ़ी संख्या में पाए जाने वाले इस वन्यजीव को सुरक्षित वनों की तलाश हैं। जहां वह आजादी से रह सकें, स्वयं का जीवन सुरक्षित रख सकें और मॉनव जीवन के लिए भी खतरा न बन सकें। तेंदुओं के मॉनव बस्तियों के समीप आ जाने, शिकारियों की कुदृष्टि का शिकार होने, जंगल मे घायल होकर मौत को गले लगाने के बहुत से वाकिये हैं। तेंदुए के सामान्य तरह से घायल होने ओर उपचार के दौरान मौत हो जाने का बिल्कुल सामान्य किन्तु चिंतनीय मामला बड़वानी जिले के पानसेमल क्षेत्र का है, जिसे सिलसिलेवार समझने की आवश्यकता हैं।
पानसेमल के राजस्व ग्राम जाहूर टांडा फल्या स्थित नाले के समीप 2 नवम्बर को कृषक भावसिंह पिता सत्या ठाकुर ने नाले के समीप तेंदुए को घायल अवस्था मे देखकर इसकी सूचना वनविभाग को दी। सेंधवा वनमण्डलाधिकारी अनुपम शर्मा के अनुसार वन अमले ने पाया 4 वर्षीय नर तेंदुआ अर्ध बेहोशी की हालत में धीरे-धीरे गुर्रा तो रहा हैं किंतु वह चल फिर नही पा रहा था। वन अमले ने तेंदुए को पिंजरे में लेकर वनपरिक्षेत्र कार्यालय पानसेमल में पहुंचाया। वहां पशु चिकित्सकों ने उसे दवाइयों का घोल देने की कोशिश की, पांच घण्टे बाद तरल दवाईया देने से तेंदुए की स्थिति में सुधार देखा जा रहा था। डीएफओ अनुपम शर्मा के अनुसार शेड्यूल एक के वन्यप्राणी होने के चलते घटना के बारे में भोपाल स्थित प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी को सूचित किया। उक्त तेंदुए को आगामी उपचार के लिए इंदौर प्राणी संग्रहालय लेकर जाया गया। जंहा पँहुचने के पूर्व ही इस तेंदुए ने दम तोड़ दिया। इंदौर प्राणी संग्रहालय के पशु चिकित्सक के अनुसार तेंदुए के शरीर के निचले हिस्से में लकवा, फेफड़ो में संक्रमण व यूरिनरी सिस्टम में समस्या होने की वजह से उसकी मौत हुई हैं। प्राणी संग्रहालय में ही पोस्टमार्टम के बाद तेंदुए का दाह संस्कार किया गया। जैसा कि वन विभाग के अधिकारियों ने कहा उक्त तेंदुए की मौत संभवत पेड़ से कूदने या छलांग लगाने के दौरान असंतुलन की वजह से अंदरूनी चोट लगने से होना माना जा रहा हैं। तेंदुए की मौत की वजह वही है, जो वनविभाग द्वारा बताई गई हैं। किंतु यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि बड़ी संख्या में तेंदुए गुजरात और महाराष्ट्र के जंगलों से मध्यप्रदेश की सीमा में शिकार की तलाश में आ जातें हैं। यह स्थिति तेंदुओं के सुरक्षित वनक्षेत्र नहीं होने की वजह से बनी हैं। बीते 10 बरसों में तेंदुओं के मॉनव बस्तियों के निकट आ जाने की घटनाओं में बहुत वृद्धि हुई हैं। जिसका कारण सरदार सरोवर के निर्माण से वन्य क्षेत्रो के डूब में आना भी माना जा रहा हैं। सम्पूर्ण बड़वानी जिले में तेंदुओं की आमद बढ़ने का कारण शिकार ओर पेयजल भी हो सकता हैं। बीते पांच बरसों में अकेले सेंधवा वनमण्डल के अंतर्गत वन विभाग द्वारा 14 तेंदुओं का रेस्क्यू किया गया। इन तेंदुओं को वनमण्डल खंडवा के वनपरिक्षेत्र चाँदगढ़ एवं वन परिक्षेत्र बड़वाह के सघन वनों में छोड़ा गया। बड़वानी जिले के दूरस्थ अंचल पाटी एव अन्य स्थानों से भी तेंदुओं के मॉनव बस्ती के निकट आ जाने एवं रेस्क्यू कर सघन वनों में छोड़े जाने की घटनाओं को अंजाम दिया गया हैं। इन तेंदुओं के हमलों से अकेले सेंधवा वनमंडल में बीते 7 बरसों में 2 लोगो की मौत और 6 से अधिक लोगो के घायल होने की घटनाएं भी घटित हुई हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तेंदुओं की संख्या में सिरमौर बने मध्यप्रदेश में वन्यजीवी तेंदुओं की मौत के आंकड़े भी सबसे ज्यादा है।
वर्ष 2020 में 48 तेंदुओं की मौत हुई है। इसमे 17 तेंदुओं का शिकार हुआ हैं। उन्हें जहर देकर या करंट ओर फंदा लगाकर मारा गया हैं। वर्ष 2021 में 22 तेंदुए की मौत हुई हैं। जिनमे शिकार के घटनाक्रम भी शामिल हैं। शिकार के मामलों में वनविभाग द्वारा कार्यवाहीं भी की गई। किंतु सबसे बड़ा सवाल यह है की तेंदुओं की बढ़ती संख्या के हिसाब से संरक्षित वनक्षेत्र का अभाव क्यों है? इस अभाव को दूर करने के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए है? एमपी में संख्या के लिहाज से 2017-18 की स्थिति में प्रदेश में 3421 तेंदुए पाए गए थै। यह आंकड़े पांच बरस पूर्व के हैं 2022 में इन तेंदुओं की आबादी तेजी से बढ़ी हैं। इनकी आमद 16 उन जिलों में भी देखी गयी जहां तेंदुएं दुर्लभ प्रजाति हुआ करतें थै। इनकी बढ़ती संख्या के बीच आश्चर्य की बात यह है, कि तेंदुओं के संरक्षण को लेकर सक्रिय वनविभाग की चौकस देखरेख के बीच तेंदुओं के शिकार के मामले भी सामने आतें रहते हैं। शिकार की घटनाएं सामान्य ओर संरक्षित दोनों ही वन क्षेत्रों में हुई हैं। सेंधवा ओर बालाघाट में दो मामलों में आरोपितों से तेंदुओं के अंग भी जप्त किये गए थै। इनमें से एक का शिकार गोली मारकर किया गया था। अपने आप मे अनेको विशेषता लिए इन वन्यजीवी तेंदुओं का अपना एक अलग संसार है। जानकारी के मुताबिक मादा तेंदुआ 2 से 6 बच्चे एक साथ जन्म देती है। जन्म के बाद करीब 8 हफ़्तों तक इन शावकों को छुपा कर रखती हैं। तेंदुओं की आंखों में इंसान से 7 गुणा अधिक अंधेरे में देखने की क्षमता होती है, कानों से सुनने की क्षमता भी इंसान से पांच गुणा अधिक होती हैं। यह घात लगाकर शिकार करते हैं अपने शिकार को बचने का मौका नही देतें इस वन्यप्राणी की एक विशेषता यह भी है कि यह अपने से अधिक वजन को लेकर पेड़ पर चढ़ सकता हैं। यह बड़ा रहस्यमयी भी हैं। रात में शिकार ओर दिन में आराम करता हैं। मध्यप्रदेश में तेंदुओं की संख्या लगातार बढ़ रहीं हैं, यह निश्चित रूप से गौरव की बात हो सकती हैं, किंतु दुख की बात यह है कि सरकार इनकी बढ़ती आबादी के अनुसार सरक्षण को लेकर उतनी गम्भीर नही दिखती। वन्यप्राणी तेदुओं को स्वतन्त्र माहौल में रहने के लिए जंगलों को संरक्षित किये जाने की आज सबसे अधिक आवश्यकता दिखाई दे रहीं हैं। शायद जंगल से भटक कर इन तेंदुओं को अपनी अपेक्षा अनुरूप माहौल का न मिल पाना भी इनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालने, मॉनव बस्ती के समीप आने पर शिकारियों की कुदृष्टि पड़ने, तेंदुओं के नरभक्षी होने की संभावना जैसे बहुत से कारण जुड़ जाते हैं। तेंदुओं के संरक्षण के लिए संरक्षित वन्य क्षेत्र का होना बहुत जरूरी हैं। वन विभाग को चाहिए वन्य प्राणी तेंदुओं को जंगल का वह वातावरण उपलब्ध कराए जो इन तेंदुओं की सेहत के लिए बहुत जरूरी हैं।