प्रमोद झा
नई दिल्ली : सर्दी का मौसम आरंभ होते ही सरसों तेल की खपत बढ़ जाती है। लेकिन अबकी बाजर सरसों ही नहीं, तमाम आयातित खाद्य तेल भी महंगे हो रहे हैं और इनकी महंगाई थमने के आसार नहीं दिख रहे हैं। वजह, अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में वनस्पति तेलों के दाम में जोरदार तेजी आई है जिससेघरेलू तेल-तिलहन बाजार गरम है। सरसों में भी मांग की तुलना में आपूर्ति का टोटा रहने के कारण तेल की महंगाई अभी बनी रहेगी जबकि सरसों की बुवाई जोर पकड़ी है।
तेल कारोबारियों ने बताया कि बीते सप्ताह सरसों तेल के थोक दाम में 5 रुपये किलो से ज्यादा का इजाफा हुआ जबकि एक पखबारे में सरसों तेल का थोक भाव 10 रुपये किलो बढ़ गया है। इसका असर खुदरा दाम पर देखने को मिल रहा है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, शनिवार को देश की राजधानी दिल्ली में सरसों तेल का खुदरा दाम 183 रुपये प्रति किलो था और 26 अक्टूबर के बाद 7 रुपये प्रति किलो की वृद्धि हो चुकी है। मतलब, खुदरा बाद अभी और बढ़ने की पूरी संभावना है।
उधर, देशभर में सरसों की बुवाई बीते सप्ताह तक 45.71 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी जो पिछले साल की समान अवधि से करीब 20 फीसदी अधिक है। जानकार बताते हैं कि बुवाई में तेजी का सरसों के दाम पर बहरहाल कोई असर नहीं दिख रहा है क्योंकि सरसों का मौजूदा स्टाॅक खपत मांग से कम है। जयपुर की एक एजेंसी के अनुमान के अनुसार देशभर में सरसों का करीब 26 लाख टन एक नवंबर को बचा था जबकि मिलों को सरसों की नई फसल फरवरी के आखिर में ही मिल पाएगी। वहीं, अक्टूबर में मिलों ने करीब आठ लाख टन सरसों की पेराई की थी। इस प्रकार, नई फसल आने से पहले सरसों के स्टाॅक की कमी रहेगी जिससे कीमतों को सपोर्ट मिलेगा।
इसी तरह पाम तेल और सोयातेल समेत अन्य खाद्य तेलों के दामों में तेजी देखी जा रही है। जानकार बताते हैं कि रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण सूर्यमुखी तेल की आपूर्ति असर पड़ने से अन्य तेलों के दाम में तेजी देखी जा रही है। मालूम हो कि भारत औसतन हर महीने करीब 2.5 लाख टन सूर्यमुखी तेल आयात करता है।
उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल में तेजी के चलते सोयातेल और पाम तेल के दाम में भी बीते सप्ताह जोरदार उछाल आया। अमेरिकी बाजार शिकागो बोर्ड आॅफ ट्रेड पर सोयातेल का भाव पिछले सप्ताह करीब 7.5 फीसदी चढ़ा। वहीं, मलेशियाई वायदा बाजार में क्रूड पाम तेल यानी सीपीओ के दाम में 9.4 फीसदी की साप्ताहिक तेजी दर्ज की गई। दरअसल, कच्चे तेल में तेजी से जैव ईंधन में वनस्पति तेल के उपयोग की संभावना बढ़ जाती है। लिहाजा, पाम तेल और सोयातेल के दाम में उछाल आया है।
वैश्विक बाजारों में खाद्य तेल के दाम में तेजी का असर अभी भारतीय बाजार में दिखना बाकी है क्योंकि भारत आज भी खाद्य तेल की अपनी खपत का 60 फीसदी से ज्यादा आयात करता है।
देश मे ंतेल और तिलहनों के उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। लेकिन आयात पर निर्भरता की वजह से भारतीय खाद्य तेल बाजार में तेजी और मंदी का रुख अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से मिलने वाले संकेतों पर निर्भर करता है।
बता दें कि दिवाली से पहले देश में खाद्य तेल और तिलहनों के बाजार में तकरीबन नरमी का माहौल था। इसलिए, बीते सप्ताह भारत सरकार ने देश के थोक और बड़े रिटेल चेन कारोबारियों के लिए तेल और तिलहनों की स्टाॅक सीमा की अनिवार्यता हटा ली।
कमोडिटी बाजार के एक जानकार ने भारत में खाद्य तेल और तिलहनों की स्टाॅक सीमा में ढील दिये जाने से थोक और रिटेल कारोबारियों की लिवाली बढ़ने की उम्मीदों से भी घरेलू बाजार में खाने के तेल के दाम में तेजी आई है, जिसका असर वैश्विक बाजार पर भी पड़ा है क्योंकि भारत दुनिया में खाद्य तेलों का एक बड़ा खरीददार है।