हिंदुस्तान में हिजाब के हक़ में तो ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ विरोध क्यों ?

प्रदीप शर्मा

हाल ही में कर्नाटक के उडुपी ज़िले के एक कॉलेज में हिजाब पहनकर आने वाली
छह छात्रों को कॉलेज में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह
मुद्दा धर्म की स्वतंत्रता पर कानूनी सवाल उठाता है कि क्या हिजाब पहनने
का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है। संविधान का अनुच्छेद 25 (1)
‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की
स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है। जिसका अर्थ है कि राज्य यह
सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या
बाधा उत्पन्न न हो।

भारत में भी हिजाब को लेकर बहस शुरू है। कर्नाटक के कुछ कॉलेजों से उठा
ये विवाद अब पूरे देशभर में फैल चुका है। कर्नाटक में स्कूल और कॉलेजों
में हिजाब पहनकर जाने को लेकर विवाद शुरू हुआ. मामला हाईकोर्ट तक गया,
लेकिन मुस्लिम छात्राओं को यहां से झटका लगा। हाईकोर्ट ने साफ किया कि
हिजाब इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है. यानी हाईकोर्ट ने
कर्नाटक सरकार के फैसले के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। इसके बाद अब
मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। विवाद के बाद कई संगठन हिजाब को बैन
करने की मांग कर रहे हैं।

ईरान में हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन

ईरान में 22 साल की महसा अमीनी को सिर्फ इसलिए हिरासत में ले लिया गया
क्योंकि उसने सिर नहीं ढककर रखा था, यानी हिजाब नहीं पहना था। कुर्द मूल
की महसा को हिरासत में लिए जाने के बाद वो कोमा में चली गई, इसके कुछ ही
घंटों बाद उसकी मौत हो गई। महसा अमीनी की मौत की खबर पूरे ईरान में आग की
तरह फैली, जिसके बाद हिजाब के खिलाफ महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया।

क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग?

इस्लामिक देश ईरान में 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद महिलाओं ने
खुलकर प्रदर्शन शुरू कर दिया है। बंदिशों की तमाम बेड़ियों को तोड़ते हुए
महिलाएं सड़कों पर उतर आईं हैं और खुलकर हिजाब को लेकर अपना विरोध जता
रही हैं। इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर भी जमकर इस प्रोटेस्ट को हवा दी
जा रही है। ईरानी महिलाओं के इस प्रदर्शन को दुनियाभर के लोगों का समर्थन
भी मिल रहा है। प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की मांग है कि उन्हें इस बात
की आजादी दी जानी चाहिए कि वो हिजाब पहने या नहीं। हिजाब की अनिवार्यता
को लेकर उनकी जान को खतरा है। इसीलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए।

क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?

ICCPR यानी इंटरनेशनल कॉन्वनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स के आर्टिकल
18 में धार्मिक आजादी का जिक्र किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक
इसके तहत धर्म और विश्वास के तौर पर न सिर्फ बाकी चीजों की आजादी है,
बल्कि विशिष्ट कपड़े या फिर सिर ढकने जैसे रीति-रिवाज भी शामिल हो सकते
हैं। ICCPR के आर्टिकल 18 के तहत धर्म की स्वतंत्रता पर कोई भी बैन गैर
भेदभावपूर्ण होना चाहिए।

इन देशों में है हिजाब पर बैन

हिजाब पर बैन लगाने वाले देशों की लिस्ट में लगातार नए नाम जुड़ते जा रहे
हैं। दुनिया की एक बड़ी टूरिस्ट डेस्टिनेशन स्विटजरलैंड ने पिछले ही साल
हिजाब पर बैन लगाया था। यहां बुर्का और हिजाब दोनों पर ही बैन है। साथ ही
इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी है। इसके अलावा
बेल्जियम, चीन, श्रीलंका, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बल्गेरिया, नीदरलैंड,
स्वीडन और रिपब्लिक ऑफ कांगो ऐसे देश हैं जहां पर हिजाब पूरी तरह से बैन
है। इनके अलावा भी कई ऐसे देश हैं, जहां सरकारी स्कूलों और शैक्षणिक
संस्थानों में हिजाब नहीं पहना जा सकता है।

बहराल स्कूल एवं कॉलेजों में हिजाब पर बैन के खिलाफ अर्जी पर सुप्रीम
कोेर्ट की बेंच में अभी तक फैसला नहीं हो सका है। दो सदस्यों वाली बेंच
में इस मसले पर मतभेद थे। ऐसे में केस को अब तीन जजों की पीठ के हवाले कर
दिया गया है। बड़ी बेंच में एकमत से या फिर बहुमत से ही अब फैसला हो
सकेगा। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपना फैसला सुनाते हुए कर्नाटक सरकार की
ओर से हिजाब बैन को सही करार दिया और विरोध करने वालों की अर्जी को खारिज
कर दिया। वहीं, जस्टिस धूलिया ने हिजाब बैन के कर्नाटक सरकार के फैसले को
गलत माना। ऐसे में दो जजों के अलग-अलग फैसले के चलते निर्णय मान्य नहीं
होगा और अब आखिरी फैसला बड़ी बेंच की ओर से ही किया जाएगा।