जी-20 : अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मानक

नीलम महाजन सिंह

भारत ने जी-20, 2022 अधिवेशन में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पहले ही तैयारियाँ कर ली थीं। जी-20 देशों के नेता दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के 17वें शिखर सम्मेलन के लिए बाली के नुसा दुआ रिसॉर्ट में एकत्रित हुए थे। जी-20 देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85%, वैश्विक व्यापार का 75% और विश्व जनसंख्या का 66% प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि करोना महामारी के बाद की वसूली और यूक्रेन में रूसी युद्ध से प्रभावित ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा से निपटने पर ध्यान केंद्रित गया। कुछ नेताओं की अनुपस्थिति, उल्लेखनीय रूप से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की है, जिन्होंने पहले इंडोनेशियाई मेेज़बान राष्ट्रपति जोको विडोडो के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया था, लेकिन जैसा कि यूक्रेन के साथ युद्ध जारी है, इसलिए रूस का प्रतिनिधित्व करने के लिए अपने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को भेजा। क्या था इस शिखर सम्मेलन का एजेंडा? इस जी-20 का आदर्श वाक्य है ‘एक साथ ठीक-ठीक मज़बूत हो जाओ’। राष्ट्रपति जोकोवी ने शिखर सम्मेलन में भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद करोना महामारी से उबरने पर प्रमुख ध्यान केंद्रित किया है।नेताओं ने तीन मुख्य मुद्दों पर चर्चा की: खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक बुनियादी ढांचे और निवेश के लिए स्वास्थ्य भागीदारी व डिजिटल परिवर्तन। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर चिंताओं को उजागर करने के लिए, श्री जोकोवी अपने मेहमानों को तमन हुतन राया के इंडोनेशियाई मैंग्रोव में ले गए। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के जी-20 अध्यक्षता के तहत आने वाले वर्ष के लिए अपना एजेंडा बतााया, जिसमें ग्लोबल साउथ पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और भू-राजनीतिक तनाव, भोजन और ईंधन की कमी के कारण इसका सामना करने वाली कठिनाइयों की ओर ध्यानाकर्षित किया। क्या कारण है कि जी-20 को दूसरों से अलग समझा जाता है? रूस द्वारा यूक्रेन में युद्ध शुरू करने और पश्चिम द्वारा (नेटो) रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद से दुनिया के लिए यह पहला जी-20 अधिवेशन था। दुनिया को स्पष्ट रूप से विभाजित करने वाले मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाने का प्रयास किया गया था। भारत के लिए, दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के शिखर सम्मेलन का महत्व यह है कि अगले शिखर सम्मेलन की मेेज़बनी भारत करेगा। नरेंद्र मोदी को इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो से ‘हैंडओवर प्राप्त हुआ’, जिसके बाद भारत 01 दिसंबर को भारत अध्यक्ष पद ग्रहण करेगा। इसके अतिरिक्त यह दूसरी बार है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोविड महामारी के बाद से विदेश यात्रा की है। वे पिछले महीने ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष फिर से चुने गए हैं। बाली के शिखर सम्मेलन में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूके, अमेरिका और स्पेन के नेताओ ने भाग लिया है। आमंत्रितों में कंबोडिया, फिजी, नीदरलैंड, रवांडा, सेनेगल, सिंगापुर, सूरीनाम और संयुक्त अरब अमीरात के नेता भी शामिल हैं। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ, आसियान, अफ्रीकी संघ जैसी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के प्रमुख 2022 जी-20 में भाग लेंगे। इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने यूक्रेनी राष्ट्रपति को शिखर सम्मेलन को आभासी रूप से संबोधित करने के लिए भी आमंत्रित किया, जबकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन और मेक्सिको और ब्राजील के नेता (जो एक नेतृत्व परिवर्तन में हैं) शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए। सभी की निगाहें द्विपक्षीय शिखर सम्मेलनों पर थी – जिसमें बिडेन-शी शिखर सम्मेलन शामिल है, जब अमेरिका-चीन के बीच तनाव चरम पर था। जबकि न तो दिल्ली और न ही बीजिंग ने मोदी-शी बैठक की पुष्टि की, अप्रैल 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिरोध के बाद से दोनों नेताओं के बीच कोई भी बातचीत ओपचारिक रुप से नहीे हुई। अपने देशों के प्रमुख के रूप में पहली बार भाग लेने वाले नेताओं में यूके के पीएम ऋषि सुनक, इतालवी पी.एम. जॉर्जिया मेलोनी, ऑस्ट्रेलियाई पी.एम. एंथनी अल्बनीज, संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान (एमबीजेड), सऊदी पी.एम. और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) थे। 1999 में अधिक “अभिजात्य” जी-7 (तब जी-8) और अधिक बोझिल 38-सदस्यीय आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के बीच एक स्वीकार्य माध्यम के रूप में बनाया गया; जी-20 की कल्पना की गई थी। सोवियत युग के बाद एक और एकीकृत जब पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं ने नियम बनाए, चीन ही आगे बढ़ रहा था और रूस अभी भी अपने विघटन से उबर ही रहा था। पिछले दो दशकों में, वैश्विक आर्थिक संतुलन बदल गया है और जी -20 को वैश्विक नेतृत्व के अधिक प्रतिनिधि और समतावादी समूह के रूप में देखा जा रहा है। वैश्विक, वित्तीय संकट और बैंकिंग पतन के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को चलाने में ये अधिवेशन विशेष रूप से उपयोगी था। गौरतलब है कि अगले साल जी-20 का “ट्रोइका” भारत, ब्राजील के साथ पहली बार उभरती अर्थव्यवस्थाओं से बना – जो वैश्विक आर्थिक एजेंडा में ग्लोबल साउथ की ओर बदलाव का संकेतक है। अंततः ये कहा जा सकता है कि इन अन्तरराष्ट्रीय अधिवेशनों में लिए गए निर्णय विश्व मानक बनते हैं तथा सभी देशों के लिए बाध्य हैं। वैसा भी अंतरराष्ट्रीय नेताओं के मिलन से वार्तालाप व समस्याओं के समाधान के लिये जी-20 महत्वपूर्ण व सार्थक सहयोग का अधिवेशन रहा।