नरेंद्र तिवारी
अपराध के साथ आपराधिक मानसिकता के उन्मूलन का प्रयास भी समाज और सरकार को लगातार करतें रहना चाहिए। यह कार्य उस वक्त ओर जरूरी हो जाता है, जब यह विषय गम्भीर अपराध ओर समाज की सेहत से जुड़ा हुआ दिखाई दे रहा हो। एक समय पंजाब के युवाओं में बढ़ती नशे की आदत ने देश की चिंता बढ़ा दी थी। यह चिंता अब भी कायम है। फ़िल्म उड़ता पंजाब में जब नशे में डूबी युवा पीढ़ी की सच्चाई को फ़िल्म के माध्यम से प्रदर्शित किया गया तब फ़िल्म के निर्माताओं के विरुद्ध पंजाब को बदनाम करने के आरोप उस समय के सत्ताधीशो द्वारा लगाए गए थै। दरअसल हर दौर में साहित्य समाज का दर्पण होता हैं। कविता, कहानियां, फ़िल्म, व्यंग्य, कार्टून, आलेख, पत्र-पत्रिकाएं और अखबार अपने दौर की सच्चाइयों को उजागर करने का दायित्व निर्वहन करतें हैं। इन माध्यमों की जिम्मेदारी भी है कि वह जमीनी सच्चाइयों से देश को अवगत कराएं। ऐसी ही एक जमीनी सच्चाई गांजे से जुड़ी खेती को लेकर हैं। गांव के सुनसान खेतों ओर पहाड़ो में पनपती लालच की प्रवृत्ति जब मेहनती किसानों को गांजे की फसल बुवाई के लिए आकर्षित करने लगे, तब समझ लीजिए की लालच ने अपने पैर पसार लिए हैं। नशे के कारोबारियों के लिए गांव का यह भोला किसान सबसे आसान लक्ष्य होता हैं। नशे के तस्कर इन किसानों को खेतों में कपास, तुवर या अन्य फसलों के मध्य गांजे की बुवाई के लिए प्रेरित करतें है। नशा माफियाओं के प्रभाव में गांव के कुछ लालची ओर नासमझ किसान समाज के विरुद्ध अपराध करने की प्रक्रिया में शामिल हो जाते हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों में गांजे की अवैध उगाई एवं तस्करी का गौरख धंधा बरसों से जारी हैं। हिंदी भाषी राज्य इसके बड़े अड्डे बने हुए है। मादक प्रदार्थ गांजे का सेवन महानगरों के हुक्का बारों में भी चोरी छिपे जारी हैं। मुम्बई के पूंजीपतियों ओर फिल्मी सितारों की चर्चित रेव पार्टियों में भी गांजे से भरी चिलम ओर सिगरेट के जोरदार फूँक लगाकर कुछ समय के लिए जीवन की वास्तविकताओं से दूर हो जाने की कोशिश की जाती रही है। यही ओर ऐसी कोशिश शायद धर्म का चोला पहनकर धार्मिक नगरियों में चिलम में गांजे का फूँक लगाकर तथाकथिक साधु-संतो, फकीरों के द्वारा भी की जाती हैं। धार्मिक केंद्रों में चिलम की धूनी लगाकर गृहस्थ जीवन से भागकर समाज को धर्म का पाठ पढ़ाने वालो की असिलियत भी कुछ ऐसी ही जान पड़ती हैं। गांजे के अवैध कारोबार का सिलसिला बहुत लंबा हैं। यह सफेदपोश बदमाशो और व्यवस्था की मिलीभगत से चल रहा हैं। पुलिस ने सख्ती बरतकर इन तस्करों और कारोबारियों को पकड़ा भी हैं। कुछ नवीन किन्तु चौकाने वाले ताजे मामले जिसमें यूपी के कुशीनगर में वर्ष 2022 के सितम्बर माह में वाहन से आंध्रप्रदेश से लादकर 291 किलो गांजा कीमत लगभग 60 लाख रु ग्रामीणों की मदद से पुलिस द्वारा जप्त किया गया। मध्यप्रदेश की ग्वालियर पुलिस ने सितम्बर माह में ही 540 किलो गांजा जो आंध्रप्रदेश से मुरैना की ओर से ट्रक ओर स्कार्पियो में भरकर तस्करी कर लाया जा रहा था जप्त किया। इस घटनाक्रम में पुलिस ने 8 तस्करों को भी पकड़ने में सफलता प्राप्त की थी। मध्यप्रदेश में सरकार द्वारा 8 अक्टूम्बर से नशा मुक्ति अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत सम्पूर्ण प्रदेश में बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के खेतों में तुवर ओर कपास की फसल के बीच गांजे की फसल पकड़ाने के अनेकों मामले सामने आ रहे हैं। आदिवासी जिले अलीराजपुर के सोंडवा थाना क्षेत्र के छोटी हथवी इलाके में स्थित तड़वी फलिया में किसान के खेत मे कपास की फसल के बीच गांजे के 1103 पौधे जप्त किये। आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी में नशा मुक्ति अभियान अंतर्गत किसानों के खेत मे तुवर व कपास की फसल के मध्य गांजे के पौधे सबसे अधिक मात्रा में पकड़े गए। बड़वानी जिला पुलिस अधीक्षक आईपीएस दीपक कुमार शुक्ला के अनुसार बड़वानी जिला मादक प्रदार्थ गांजे के पौधों की बरामदगी के मामले में सम्पूर्ण प्रदेश में अव्वल रहा है। इसी अभियान में ही जिले के विभिन्न थानों में 20 प्रकरणों में 20 आरोपियों से 3156 गांजे के हरे पौधे, कुल 2480 किलो से अधिक याने करोड़ो रुपयों का गांजा महज एक माह के नशा विरोधी अभियान में बरामद करने में सफलता पाई हैं। सबसे अधिक प्रकरण जिले के सेंधवा ग्रामीण इलाके में पंजीबद्ध किये गए। एसपी श्री शुक्ला के अनुसार बड़वानी जिला पूरे मध्यप्रदेश में मादक पदार्थ गांजे के हरे पौधों को पकड़ने की कार्यवाहीं में सबसे आगे है। हमने अंतरप्रांतीय सप्लाई चैन को तोड़ा हैं। बड़वानी जिला पुलिस की यह कार्यवाहीं एक मिशाल हैं। निश्चित ही इस कार्यवाहीं से क्षेत्र में अपराध से दूर रहने का संदेश जरूर जाएगा। गांजे की अवैध तस्करी करने वाले भी शायद बड़वानी जिले की सीमा से दूरी बनाकर चले। किन्तु इस आदिवासी अंचल में गांजे की फसल की बुवाई कर धन कमाने की मंशा नई नही हैं। सतपुड़ा के पहाड़ी अंचलों में आदिवासी अंतरप्रांतीय तस्करों के प्रभाव में राजनीति और भष्ट्र व्यवस्था के आशीर्वाद से अवैध गांजे की बुवाई के अपराध में बरसो से संलिप्त रहे है। 2001 से 2010 तक वरला थाने अंतर्गत धवली के पहाड़ी गांवों में गांजे की तस्करी का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चलता रहा। वर्ष 2010-11में इंदौर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक के नेतृत्व में गांजे की खेती के अवैध कारोबार के खिलाफ बड़ी कार्यवाहीं करते हुए सिर्फ वरला थाना क्षेत्र अंतर्गत 14 प्रकरणों में 18 आरोपियों के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किए गए थै। इस दौरान यह भी सामने आया कि आरोपियों ने सरकारी एवं वनविभाग की भूमि पर बड़ी मात्रा में गांजा बो रखा था। दुरूह आदिवासी क्षेत्र में हुई इस कार्यवाहीं के बाद से गांजे की अवैध खेती के मामले बहुत कम हो गए थै। जिनकी संख्या अब पुनः बढ़ती हुई दिख रही हैं। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में नशा मुक्ति अभियान में गांजे के पौधे पकड़ाने के प्रकरण दर्ज हुए हैं। निमाड़ में खासकर आदिवासी अंचल में अब बड़ा आश्चर्य यह है कि ग्रामीण अपनी मालिकाना हक की कृषि भूमि पर भी गांजे के पौधे लगाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। नशा नाश की जड़ है, खासकर गांजे की फूँक तम्बाकू मिलाकर ही की जाती है। यह फेफड़ो की बीमारी तथा केंसर की बीमारी का कारण बनता हैं। ग्रामीणों को अपनी फसल के मध्य गांजा उगाने की लालच देने का यह काम गांजे के बड़े तस्कर कर रहें हैं। ग्रामीणों को लालच में नशे की उगाही से बचना चाहिए। पुलिस को भी इन मामलों में बड़े तस्करों तक पहुच कर, गांजे के अवैध कारोबार को रोकने की मजबूत कोशिश करना चाहिए। गांजे का अवैध कारोबार देश के अनेकों प्रदेशो में व्याप्त है। यह सरकार और समाज के खिलाफ अपराध है। सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज और प्रशासन को मिलकर गांजे की खेती के संबंध में पनप रही आपराधिक मानसिकता को दूर करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने की आवश्यकता है।