अवधेश कुमार
आफताब अमीन पूनावाला एक प्रशिक्षित बावर्ची (शेफ) है। एक शेफ को कई काम आते हैं। मछलियां, मुर्गों व अन्य मांस देने वाले पशुओं के अंग आदि को काटकर उसे बोटी – बोटी करने भी आता है। हालांकी कोई शेफ सामान्यतः उस तरह किसी मनुष्य शरीर के 35 टुकड़े काटने की कल्पना नहीं कर सकता। आफताब ने जिस तरह उसके साथ लिव इन में रह रही श्रद्धा वाकर की हत्या कर टुकड़े – टुकड़े काट डाला वह अपराध की दुनिया में भी अकल्पनीय है। इस घटना से अनेक जघन्य अपराधियों के अंदर भी सिहरन पैदा हो गई होगी। आखिर कोई व्यक्ति इतना भयंकर अपराध कैसे कर सकता है? स्पष्ट है कि इसके पीछे की सोच और उसके अनुसार व्यक्ति के चरित्र को समझना होगा। अभी तक की सूचना इतनी ही है कि श्रद्धा ने जब उसे शादी करने का दबाव बनाया तो उसने उसे मार डाला। इस कहानी पर सहसा विश्वास करना जरा कठिन लगता है। लिव-इन में रह रही लड़की अपने साथी पर शादी के लिए दबाव डालती है और नहीं स्वीकारने पर कोर्ट में जाती है या फिर अलग हो जाती है। शादी करने के लिए कहने में ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आफताब को उसकी हत्या करने की सीमा तक चला गया?
आप किसी भी दृष्टिकोण से विचार करिए इसका तार्किक और सर्वमान्य उत्तर नहीं मिल सकता। हत्या करने के बाद टुकड़े-टुकड़े काटना, उसे रखने के लिए 300 लीटर वाली फ्रिज लाना और फिर एक-एक टुकड़े को दिल्ली के महरौली के जंगलों में देर रात जाकर फेंकते रहना यह सब किसी सामान्य व्यक्ति की कारगुजारी नहीं हो सकती। आप उसे असंतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति कह कर मामले को एक मोड़ दे सकते हैं। जब भी कोई असामान्य क्रूर अपराध होता है सामान्यतः अपराधी को असामान्य या मानसिक व्याधि से ग्रसित घोषित कर दिया जाता है। निश्चित रूप से असामान्य मानसिक व्याधियों को वर्तमान मनोविज्ञान में व्यापक आयाम दे दिए हैं और उसमें आज सभी प्रकार के व्यवहार और विचार समाहित हो जाते हैं। किंतु आम भाषा में हम इसे ऐसे स्वीकार नहीं कर सकते। विचार यह करना होगा कि आखिर और सामान्य मानसिक स्थिति क्या थी? जो थी वह क्यों पैदा हुई ?
जरा इस घटना में अभी तक आई जानकारी के दूसरे पहलू को भी देखिए।
यह भी कहा गया है कि टुकड़े टुकड़े काटकर जंगलों में फेंकने की प्रेरणा उसे अमेरिकी टीवी सीरीज डेक्सटर से मिली। जाहिर है, एक दिन में उसके अंदर यह विचार घर नहीं किया होगा। श्रद्धा की हत्या कर उसके अंगों को काटकर वह फ्रिज में रखे हुए हैं और दूसरी लड़कियों से डेटिंग कर रहा है, उन्हें घर में बुलाकर उनके साथ मौज मस्ती कर रहा है। जिसे किसी से प्रेम होगा वह पहले तो उसकी हत्या नहीं करेगा और अगर गुस्से में कुछ हो गया तो फिर वह उसके दुख से जल्दी बाहर नहीं निकल पाएगा। यहां तो वह आराम से उसके टुकड़े काटता है, घर में रखे हुए है और दूसरी लड़कियों के साथ संबंध बनाता है। उसके जाने का उसे बिल्कुल दुख नहीं है बल्कि उसके व्यवहार से लगता है जैसे वाह मानता हो कि उसने वही किया जो उसे करना चाहिए था। यानी उसने श्रद्धा की हत्या कर अपना कर्तव्य पूरा किया है। इसका मतलब है कि श्रद्धा वाकर के साथ उसका प्रेम केवल दिखावा ही रहा होगा। पूछताछ से यह भी स्पष्ट हो जाएगा। बिल्कुल संभव है कि उसने योजनापूर्वक श्रद्धा को फंसाया होगा। डेटिंग एप पर श्रद्धा से उसकी मुलाकात हुई और नजदीकियां इतनी बढी कि दोनों साथ रहने लगे। मुंबई से दिल्ली आए। सामान्यतः हमारे देश में पढ़े लिखे लोगों का एक बड़ा तबका लव जिहाद के दृष्टिकोण को ही खारिज करता है। आप इस शब्द को कुछ समय के लिए छोड़ दीजिए। किंतु ऐसी घटनाएं बड़ी संख्या में हो रहीं हैं जहां एक मुस्लिम युवक हिंदू लड़कियों को फंसाता है और उनका धर्म परिवर्तन कर निकाह करता है। बाद में उनको तलाक देता है या फिर लड़की ही तंग आकर छोड़ देती है। अनेक मामले ऐसे हैं जहां मुस्लिम युवक ने हिंदू नाम रखकर लड़की को फंसाया, उससे शादी भी कर ली और जब लड़की घर आई तो पता चला वह मुसलमान है। उसे फिर से धर्म परिवर्तन कर निकाह करने के लिए मजबूर किया गया या करने की कोशिश हुई। ऐसी प्रमाणित और न्यायालय द्वारा पुष्ट घटनाओं की लंबी सूची है। ऐसी भी घटनायें पहले आई हैं कि किसी ने लड़की को फंसाया, उनके साथ रहा और बाद में छोड़ दिया।
ऐसा नहीं है कि लड़कियों के साथ लिव-इन में रहने के बाद उसे छोड़ने वाले गैर मुस्लिम समुदाय के नहीं है। हैं, किंतु इस तरह की दरिंदगी करने वाली घटना पहले नहीं हुई। इससे सहसा संदेह की सुई घूमती है कि आफताब अमीन कहीं कट्टर इस्लामी विचारों की मानसिकता वाला तो नहीं था। ऐसे लोगों के सामने मनुष्यता, इंसानियत, संवेदनशीलता या वचनबद्धता के कोई मायने नहीं होते। वह केवल अपने दृष्टिकोण से दीन की समझ के अनुसार ही लड़कियों से संबंध बनाते हैं। हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं आई है जब मुस्लिम नवजवानों के भीतर इस्लाम के नाम पर इस तरह की बातें भरी गई हैं जिनसे उन्हें लगे कि गैरमुस्लिम लड़की को फंसाकर निकाह करना या उसके साथ रिश्ते बनाना उनके लिए मजहबी फर्ज हो। उनका ब्रेनवाश इस तरह से किया जाता है कि वह ऐसा करने के लिए किसी सीमा तक चले जाते हैं। संभव है उसने श्रद्धा को धर्म परिवर्तन के लिए कहा हो और वह उसके लिए तैयार नहीं हुई हो। इसमें कुछ ऐसी बातें हुई है जिसे बाहर आने के बाद आफताब अमीन के लिए कठिनाइयां पैदा हो जाती। या फिर श्रद्धा ने दूसरी लड़कियों के साथ इसी विचार के अनुरूप उसे संपर्क संबंध बनाते देखा हो और उसे इसकी पूरी असलियत समझ आ गई हो। उसने इसकी असलियत दुनिया के सामने लाने की धमकी भी दी हो। श्रद्धा की दोस्त बता रही है की आफताब उसकी हत्या कर सकता था इसी आशंका थी और उसने उसके परिवार को आगाह सतर्क भी किया था। सब पुलिस के पास भी जाना चाहते थे लेकिन श्रद्धा में ही किसी कारण रोक दिया था। श्रद्धा की आफताब हत्या कर सकता था यह आशंका कैसे पैदा हुई इसका उत्तर मिलना चाहिए।
यह तो सोचना ही पड़ेगा कि आखिर हत्या कर टुकड़े-टुकड़े काटने के बाद वह दूसरी लड़कियों के साथ किस मानसिकता में संबंध बना रहा था? पुलिस बता सकती है कि उन लड़कियों में भी सभी या ज्यादातर गैर मुस्लिम ही होंगी। आफताब अमीन पुलिस की पूछताछ में इस बात को स्वीकार करता है या नहीं इसका पता भी कुछ दिनों में चल जाएगा। किंतु इस दृष्टि से जांच होनी चाहिए और वह नहीं स्वीकार करता तो नारको टेस्ट कराया जाना चाहिए। नारको टेस्ट के लिए वह तैयार नहीं होता तो न्यायालय से उसकी अनुमति ली जा सकती है। वास्तव में यह ऐसी घटना है जिसका पूरा सच देश और दुनिया के सामने आना चाहिए। इस तरह के वारदात की पुनरावृत्ति न हो इसलिए इसकी पूरी जानकारी आवश्यक है।
अगर आफताब का व्यवहार मजहबी कट्टर सोच से नहीं निकली और इसके कारण कुछ और है तो भी इस तरह की क्रूरता को केवल सामान्य परिभाषा के तहत मानसिक व्याधियों की परिणति नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर यह पूरी घटना हम सबको काफी कुछ सोचने को फिर से बात करती है। आखिर परवरिश में ऐसी गलती कहां हो रही है कि नई पीढ़ी वास्तविक या तथाकथित प्यार के चक्कर में अपने माता-पिता तक के रिश्ते को नकारने किस सीमा तक चली जाती है? हमने कैसा समाज बना दिया है जहां हर कोई आप केंद्रित हो गया है? हर व्यक्ति यहां स्वयं को अकेला पाता है और अनेक समस्याओं की जड़ यही है। दूसरी ओर यह घटना नई पीढ़ी को भी अपने रवैये पर पुनर्विचार के लिए बाध्य करती है। जब श्रद्धा के पिता ने आफताब के साथ उसके संबंधों को स्वीकार नहीं किया तो उसने कहा कि मैं 25 वर्ष की हो गई हूं और अपना भला बुरा सोच सकती हूं। इसके बाद वह उसके साथ लिव-इन में रहने लगी। ऐसी लड़कियों की बड़ी संख्या है जो घोषित उम्र के साथ बालिग होने के बाद माता-पिता की सलाह मशविरा या सहमति के बिना इस तरह के कदम उठातीं हैं जिनकी परिणति भयावह होती है। अनेक लड़कियों की पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। उनके परिवार वालों के सामने इससे जो सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं वह अलग। हमारे यहां सामाजिक व्यवस्था में परिवार द्वारा तलाशे गए लड़के से लड़की की शादी की परंपरा सर्वाधिक सफल है। किंतु, अगर कोई लड़की किसी लड़के के साथ प्रेम विवाह करना चाहती है तो उसे परिवार के विरोध के काल में भी जिन निकट के रिश्तेदारों के साथ संवाद हो उनसे ठीक प्रकार से उसके और परिवार का पता कराना चाहिए। यही नहीं शादी करने के बाद भी उन रिश्तेदारों का आना – जाना अपने यहां रखना ही चाहिए। इससे आप अकेले नहीं होते और कमजोर नहीं पड़ते। ऐसा नहीं करना आपके और आपके परिवार के लिए जीवन भर की ट्रेजडी साबित हो सकती है।