प्रो: नीलम महाजन सिंह
चाहे जितने भी राजनीतिक मतभेद ही हो, प्रधान मंत्री नरेंद मोदी सरकार का सर्वोच्च न्यायालय में, राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई पर रिव्यू याचिका लगाना, एक सम्वेदनशील कदम, संवैधानिक पद की गरिमा के लिए सराहनीय कदम है। कॉंग्रेस पार्टी ने भी राजीव गांधी के हत्यारों की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहा करने के फैसले की निंदा की है! कुछ ऐसे विषय हैं जिनसे मुझे आत्मिक कष्ट पहुंचता है और मैं उस दुःख को शब्दों में नहीं ढाल पाती हूँ। मुझ से कहा जाता है कि आप लिखिए और मैं असहाय मेहसूस करती हूँ। जब 30 वर्षों से उन विषयों पर लिख कर कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा? क्या राजीव गांधी भारत के प्रधान मंत्री नहीं थे? जब उनकी इतने घिनौने षडयंत्र के तहत लिट्टे (LTTE) के द्वारा मानव- बॉम्ब भानू ने राजीव गांधी के गले में माला डाल कर, पांव छूने के नाटक से बॉम्ब का स्विच दबा दिया और भारत के प्रधान मंत्री के शरीर को चिथड़े चिथड़े कर दिये गया। 46 वर्ष के नौजवान प्रधान मंत्री की निर्ममता से हत्या कर दी गई! राजीव गांधी के हत्यारों ने बाहर आते ही अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। जानिए उन्हें जेल से निकालना न्यायिक हार कैसे है? इसे ‘ट्रावेसीटी ऑफ जस्टिस’ कहा जाना चाहिए। जब मारग्रेथम चंद्रशेखर, जो कि इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री थीं, ने राजीव गाँधी को स्रीपेरंबदूर, तमिलनाडु में चुनावी प्राचार में आने को कहा तो खुफ़िया विभाग तथा सुरक्षा एजेंसीओं ने राजीव गांधी पर गहरे सुरक्षा के ख़तरों की आशंका जतायी, पर राजीव नहीं माने। मणिशंकर अय्यर, पी चिदंबरम सभी ने मना किया। जी. के. मूपानार, जयंती नटराजन सभी राजीव गांधी के साथ थे। फिर कैसे राजीव की ही हत्या हुई? जेल से रिहा होते ही रविचंद्रन और नलिनी ने ‘विक्टिम नाटक’ आरंभ कर दिया है। राजीव गांधी के हत्यारों के जेल से बाहर निकलने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अनेक प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं? राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों की समय से पूर्व रिहाई से बड़ा मामला न्यायिक निर्णयों पर उठ रहे कुछ सवाल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छे 142 से मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए ए.जी. पेरारिवलन को मई 2022 महीने में रिहा किया था। शीर्ष सर्वोच्च अदालत ने अन्य दोषियों की रिहाई के लिए भी उसी की ही हवाला दिया। सात दोषियों में तीन को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन राष्ट्रपति के पास उनकी दया याचिका वर्षों तक पड़े रहने के कारण उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। उससे पहले, सोनिया गांधी ने दोषियों में ‘एकमात्र महिला नलिनी’ को जेल से छोड़ने की वकालत की थी क्योंकि उसने जेल में ही बच्ची को जन्म दिया था। वैसे सोनिया गांधी को अपने पति की हत्यारों पर दया दिखाना समझ से परे है? ये खतरनाक अवधाराणाएं हैं! तमिलनाडु की डी.एम.के. सरकार ने वर्ष 2000 में राज्यपाल से नलिनी की मौत की सज़ा को कम करवाने की अपील की थी। लेकिन उसी ने मौत की ही सजा-ए-मौत पाए तीन अन्य दोषियों के आवेदन को नज़रअदाज कर दिया था। यह 2004 में डी.एम.के. – कांग्रेस गठबंधन सरकार से पहले की बात है। लेकिन जब सोनिया गांधी ने नलिनी से सहानुभूति जता दी तो अन्य तीन दोषियों की भी सजा घटाने और फिर उनकी रिहाई पर बात होने लगी। ये सभी दोषी तीन दशक से जेल में थे और इनमें कुछ ने तो अपना जीवन सुधारने के लिए जेल से पढ़ाई भी की है। सुप्रीम कोर्ट को इस दलील से आकर्षित नहीं होना चाहिए था। ये सभी दोषी पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की पूर्वनियोजित साज़िश का हिस्सा थे और सुप्रीम कोर्ट ने ही उन्हें हत्याकांड का दोषी पाया था। सुप्रीम कोर्ट ने ही यह आदेश पारित किया है कि उम्रकैद की सजा पाने वाले दोषियों को पूरी ज़िंदगी जेल में गुजारनी होगी। उनकी ‘मृत्यु’ पर ही वे जेल से बाहर आयेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी तथ्यों को नज़रअंदाज कर दिया है। अपने ही फ़ैसले बदल डाले? इस पैमाने पर तो सुप्रीम कोर्ट के सामने उम्रकैद की सजा काट रहे कुछ और दोषियों के भी आवेदन आएंगें और उनहें भी रीहा कर देना चाहिए? तो क्या उन्हें भी रिहा किया जाएगा? तमिल राजनीतिज्ञों और मीडिया ने मिलकर यह बिल्कुल झूठा प्रचार किया कि ‘पेरारिवलन निर्दोष’ है जिसने नासमझी में 9 वोल्ट बैटरी खरीद ली जिसका बॉम्ब के लिए इस्तेमाल हुआ। अनिरुद्ध मित्रा की किताब ‘नाइनटी डेज़ – द ट्रू स्टोरी ऑफ द हंट फॉर राजीव गांधीज़ असेसिंस’ में बताया गया है कि पेरारिवलन ने न सिर्फ बैटरी पहुंचाई थी बल्कि उसी ने ‘बॉम्ब वाला बनियान’ तैयार किया था जिसे पहनकर धानू ने राजीव गांधी की हत्या की थी। सुप्रीम कोर्ट इस बात को भी भूल गयी कि घटना में सिर्फ राजीव गांधी ही नहीं, 17 अन्य लोग भी मारे गए थे जिनमें आठ पुलिसकर्मी और सात आम नागिरक शामिल थे। यही सवाल तमिल राजनीतिज्ञों से भी पूछा जाना चाहिए जिन्होंने इन सात दोषियों के समर्थन का झंडा उठाया जिनमें चार श्रीलंकाई नागरिक हैं। इसके साथ ही, वे उन 14 तमिलों को ही भूल गए जिनकी हत्या 21 मई, 1991 को हुई थी।
जयललिता ने ‘लिट्टे’ को तबाह किया था और उसके समर्थकों पर भी बरसी थीं लेकिन बाद में उन्होंने भी सबको हैरत में डालते हुए पलटी मार ली थी। 2006 में उन्होंने यह कहते हुए, राजीव गांधी के तीन हत्यारों को तुरंत फांसी पर लटकाने की मांग की थी कि इसमें देर करने से सी.बी.आई. और तमिलनाडु की जनता का अपमान होगा। लेकिन 2009 में श्रीलंकाई आर्मी ने ‘लिट्टे’ का सर्वनाश कर दिया, प्रभाकरण की भी हत्या कर दी गई थी। पहले उन्होंने तीन दोषियों की फांसी की सजा घटाकर उम्रकैद की मांग की और फिर सभी सातों उम्रकैद प्राप्त दोषियों की रिहाई की मांग उठा दी। इन भयंकर अपराधियों की रिहाई कानून के शासन का घोर अपमान है। अगर किसी राज्यपाल ने सिफारिश ठुकरा दी, तो राज्य सरकार के पास मौका होता है कि वह एक चुनी हुई सरकार का अपमान किए जाने का प्रचार करे। हालांकि, कानूनी रास्तों से दबाव बनाए जा रहे हैं। राजीव गांधी के परिवार की भूमिका को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। नलिनी के प्रति सोनिया का पहला हाव-भाव, प्रियंका का जेल में नलिनी से मिलना और राहुल की उदारता कि हत्यारों के प्रति नफरत का माहौल नहीं बने, से राजीव गांधी को न्याय नहीं मिला। शुक्र है कि कांग्रेस पर ने इन दोषियों के प्रति गांधी परिवार की गलत सहानुभूति और उदारता का विरोध करने का दम दिखाया है। जयराज रमेश ने कहा है कि वे राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का विरोध कर रहे हैं। तमिलनाडु के राजनीतिक दल; दोषियों की रिहाई से फूले नहीं समा रहे । सत्ताधारी दल डी.एम.के. नेताओ ने इसे राज्य के अधिकारों की ताकत और मानवाधिकारों की जीत के रूप में पेश किया है। मज़े की बात है कि उनकी नजर में राजीव गांधी के साथ मारे गए तमिलों के ही मानवाधिकार कोई मायने नहीं रखते हैं। यह बहुत दुखद है कि भौंडे स्वरूप के इस तमिल राष्ट्रवाद को जीत मिली है और कानून के शासन की अवधारणा कमजोर पड़ी है। इन हत्यारों को हीरो बनाना बहुत जघन्य अपराध होगा। प्रधान मंत्री राजीव गांधी की विदेशी ताकतों द्वारा हत्याकांड वास्तव में राजनीतिक इतिहास का दुःखद अध्याय रहेगा।