बिमल तिवारी “आत्मबोध”
पढ़ते हुये कुछ ज्ञान हो जाए।इससे बेहतर क्या हो सकता है। ऐसी ही एक किताब है #उत्कर्षश्रीवास्तव Utkarsh Srivastava लिखित रणक्षेत्रम, जो #अन्जुमनप्रकाशन इलाहबाद उत्तर प्रदेश Anjuman Prakashan द्वारा प्रकाशित हुयी है। किताब की विशेषता है की इसको पढने से हमको पौराणिक कथाओं का दुबारा याद आना। साथ मे भुल चुके पौराणिक पात्र दुबारा हमारी मस्तिष्क में जिन्दा हो उठते है।
पौराणिक और ऐतिहासिक छोटी सी उपाख्यान या घटनाओ पर एक विस्तृत शृंखलाबद्ध उपन्यास लिखने की कला के माहिर लेखक है उत्कर्ष श्रीवास्तव। जो साहित्यिकी हलचल लाईमलाईट से दूर रहकर बस लेखन करते है। उनके लेखन की मार्केटिंग यही है की अगर कोई भी उनके उपन्यास का एक पेज पढ ले, तो पुरा उपन्यास ही पढ्ना चाहेगा। जिसमे कहानिया माला की तरह गुथी गयी है। किताब पढने के लिए पाठक को मजबुर कर देना, लेखक के कलम की ताकत का पहचान होता है।इस आधार पर उत्कर्ष श्रीवास्तव एक बेहद ही मज़े लेखक है।कहानिया लिखने के कुशल कलमकार है।
पाँच भागो में विस्तृत और रोमांचिक कथाओं मे लिखी गयी रणक्षेत्रम, दरअसल पौराणिक उपाख्यान पर आधारित उपन्यास है। जिसे लेखक ने विस्तार देकर कथा की छोटी छोटी बिन्दुओ को भी उपन्यास मे समेत लिया है। रणक्षेत्रम किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित उपन्यास नही है। यह एक युग की कहानी है, द्वापर युग की कहानी। जिसमे दो विकराल संग्रामो की घटनाओ और उसके परिणाम को समेटा गया है। पहला मानव, नागों और असुरों के बीच हुआ संग्राम है, जिसने असुरों की शक्ती को छिड़ कर दिया। और दुसरा आर्यावर्त मे धर्म न्याय की स्थापना कर दिया।
उपन्यास का हर भाग एक दुसरे से ऐसे जुड़ा है की बिना इसे पढे उपन्यास समझ मे नही आ पाएगी। उपन्यास के संवाद बेहद सजीव लिखी है।जेसे पात्र आंखोँ के सामने बोलते हुये मह्सूस होते है। लेखक ने युद्धों का वर्णन ऐसे किया है जेसे लगता है युद्ध किताब में न होकर आंखोँ के सामने हो रहा है। पात्रो के नाम, नगर और राज्यो की भौगोलिक स्थिति से पर लेखक ने बहुत मेहनत किया है। जो काल्पनिक के साथ साथ एकदम सच लगते है।
रणक्षेत्रम को पढ्ना पुराणों को पढने जैसा रोमांस देता है। इस पर फिल्म या सिरियल और भी रोमांटिक होगा। उपन्यास का हर भाग भारत की प्राचीनता का जीवन्त गाथा कहता है। जो कितना समृद्ध, ऐश्वर्यशाली और शक्ती संपन्न था, बताता है।
अगर आप अतिप्राचीन भारत का दर्शन करना चाहते हैं, खासकर भारत को भारत बनने से पहले, राजा भरत के जन्म से पहले, आर्यावर्त या जम्बद्वीप के समय, तो रणक्षेत्रम को एक बार अवश्य पढिए।