नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’
भारत जोड़ो यात्रा ने आधे से अधिक सफर तय कर लिया है। अब यह जानना बहुत मुनासिब होगा कि इस यात्रा ने अपने घोषित एवं अघोषित उद्देश्यों को पूरा करने में कितनी सफलता प्राप्त की है। यात्रा के प्रमुख उद्देश्य भय कट्टरता की राजनीति में क्या परिवर्तन हुआ है? महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं पर यात्रा क्या प्रभाव डाल पाई है? घोषित उदेश्यों के अलावा अघोषित उद्देश्य जिसमें लगातार कमजोर होती कांग्रेस को मजबूती प्रदान करना, कांग्रेस पार्टी के निराशा में डूबे कार्यकर्ताओ में उत्साह का संचार करना, सबसे प्रमुख नेहरू-गांधी परिवार के वंशज ओर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की छवि में निखार लाना।
इन घोषित एवं अघोषित उदेश्यों की प्राप्ति में भारत जोड़ो यात्रा आधे सफर के बाद कहां खड़ी है। दिसम्बर महीने की पहली तारीख को यात्रा मध्यप्रदेश के उज्जैन से अपने निर्धारित मार्ग पर आगे बढ़ रही थी। 7 सितम्बर 2022 को कन्याकुमारी से आरम्भ हुई कांग्रेस की महत्वाकांक्षी भारत जोड़ो पदयात्रा के संदर्भ में शुरूवातीं दौर में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थै। केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ओर महाराष्ट्र में जब भारत जोड़ो यात्रा में जनसैलाब उमड़ता दिखाई दे रहा था। तब भाजपा के नेताओं और प्रवक्ताओं का कहना था कि दक्षिण में कांग्रेस का प्रभाव हैं। यात्रा जब मध्य प्रदेश में प्रवेश करेगी तब असल परीक्षा शुरू होगीं। भारत जोड़ो यात्रा ने अपने तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार 23 नवम्बर को निमाड़ मॉलवा की हल्की-हल्की सर्द हवाओं के मध्य महाराष्ट्र राज्य से मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में प्रवेश किया तो यात्रा में नवीन रंग भर चुके थै। मध्यप्रदेश में प्रवेश करतें ही सर्दी में भी यात्रा ने माहौल में गर्मी पैदा कर दी थी। खंडवा-खरगोन जिलों में निमाड़ के आदिवासी रंगों की झांकी देखने को मिल रही थी।
निमाड़-मॉलवा ने जो स्नेह कांग्रेस के पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ओर स्वर्गीय राजीव गांधी को दिया था। अमूमन वैसा ही या कहें उससे कुछ कम ज्यादा स्नेह भारत जोड़ों यात्रा में शामिल होकर राहुल गांधी को भी दिया है। निमाड़ का स्नेह और दुलार पाकर भारत जोड़ों यात्रा ने जब देवी अहिल्या की नगरी इंदौर में प्रवेश किया तो वातावरण बिल्कुल बदल चुका था। भाजपा के नेताओं और प्रवक्ताओं के बयान मिथ्या साबित हो चुके थै। इंदौर मेहमानों की आगवानी के अपने घोषित चरित्र पर फिर खरा उतरा।
इस शहर ने भारत जोड़ों यात्रा को उस ऊंचाई पर पहुचा दिया जिन उदेश्यों को लेकर यह निकाली जा रहीं हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन में प्रवेश करते ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी जैसे बदले-बदले नजर आ रहे थै। इंदौर-उज्जैन के अपने भाषणों में राहुल अपने विरोधियों द्वारा गढ़ी गयी छवि को एकदम झुटलातें हुए दिखाई दिए। जब उन्होंने वर्तमान केंद्र सरकार पर तपस्वियों की अनदेखी का आरोप लगाया तो लगा राहुल के लहजे ओर शब्दों में एक अनुभवी नेता की गम्भीरता आ चुकी हैं। अवंतिका नगरी में किसानों, मजदूरों , बेरोजगारों को तपस्वी की उपमा देने का अंदाज यह साबित कर रहा था कि भारत जोड़ों यात्रा के अनुभव ने एक परिपक्व राहुल गांधी का निर्माण कर दिया है। दरअसल पैदल यात्रा के अपने अनुभव हैं। विविधता लिए भारत मे कोस-कोस पर पानी बदले ओर चार कोस पर वाणी बदल जाती हैं। वाणी और पानी के साथ नागरिकों की जरूरतों और समस्याओं में भी भिन्नता आ जाती हैं।
इस विविधता को नागरिकों के मध्य जाकर ही समझा जा सकता है। विभिन्न संस्कृतियों, रीतिरिवाजों, खान-पान ओर पहनावों की यहीं विशेषता ही भारत का असली सौंदर्य हैं। इसी विविधता रूपी खूबसूरती को समझकर भारत को समझा जा सकता हैं। भारत जोड़ों यात्रा भी भारत की इस विविधता को समझने का प्रयोग हैं। राहुल गांधी के लिए अवसर था, राहुल ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाते हुए जनता का स्नेह पाया और प्यार लुटाते हुए भी दिखाई दिए। उनका गरीबों को गले लगाना, बच्चो के जूतों के लेस बांधना, गिरती बरसात के मध्य अपने भाषणों को जारी रखना, बुजुर्गों से आर्शीवाद लेना, दिव्यांगों से मिलना, कलाकारों की समस्याओं को सुनना, पुराने पार्टी कार्यकर्ताओ से मुलाकात करना, महिलाओं को सम्मान देना और सबसे अधिक आमलोगों से जुड़ी समस्याओं मंहगाई, बेरोजगारी आदि को लेकर लगातार मुखर रहना। यह सब राहुल के नए रूप को दर्शाने वाले प्रतीत हो रहा है। उनका आम आदमी जैसा व्यवहार भी उन्हें खास बनाता हैं। देश के श्रमिक, आदिवासी, शोषित, दलित वर्ग जिनका विश्वास इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और कांग्रेस पर था। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वह विश्वास राहुल गांधी के प्रति भी दिखाई दिया। यात्रा ने राहुल को महज निखारा ही नहीं है, एक अनुभवी नेता के रूप में प्रतिस्थापित किया हैं। भारत जोड़ों यात्रा नफरत की राजनीति के खिलाफ भी शंखनाद करती दिखाई दे रहीं है। केंद्र सरकार पर महंगाई, बेरोजगारी ओर किसानों, मजदूरों की समस्याओं को लेकर भी यात्रा दबाव बनाती दिखीं। यात्रा के लिहाज से भारत जोड़ों अब तक अपने उदेश्यों को पूर्ण करती हुई दिख रही है। इस यात्रा ने राहुल की ऊर्जावान छवि को भी देश के सामने प्रदर्शित किया हैं। पैदल चलने की तखलिफ़, दुख, दर्द और पीड़ा पैदल चलने वाला ही जान सकता हैं। राहुल सहित भारत जोड़ो यात्रा के सहयात्रियों ने भारत को नापने के लिए पैदल यात्रा का कठिन विकल्प चयन किया है। यह यात्रा देश के माहौल में सकारात्मक परिवर्तन का कारण बन बन रहीं है। पैदल यात्राओं से ऊर्जा तो मिलती ही है, देश की जनता का प्यार भी मिलता है। इस लिहाज से भारत जोड़ो यात्रा काँमयाबी के पड़ाव दर पडाव तय कर रहीं है। इस यात्रा में शामिल राहुल गांधी सहित सभी सहयात्री देश की जनता का प्यार पाने में अब तक सफल दिखाई दे रहे है।