बौद्धिक चेतना का विकास और बढ़ती अंधविश्वास की खाई

सोनम लववंशी

एक तरफ़ पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था वाला देश बनने का सपना संजोए हमारी व्यवस्था आगे बढ़ रही है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे पहलू भी हैं। जो कई सवाल खड़े करते हैं कि आख़िर हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है! शिक्षा के विस्तार के साथ समाज की सोच में परिवर्तन आना स्वाभविक है, लेकिन इक्कीसवीं सदी के भारत में अंधविश्वास की बढ़ती घटनाएं हमारे समाज और सरकार दोनों की मनोस्थिति और उनकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करती हैं! बीते दिनों उदयपुर में एक ही परिवार के 6 सदस्य अंधविश्वास के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठे। ऐसे में यह कितना भयानक मंजर रहा होगा! जब अपने ही परिवार के सदस्यों की बलि चढ़ा दी गयी! लेकिन अंधविश्वास है ही ऐसा कि इसके फेर में फंसने के बाद व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक सभी खो बैठता है। दुर्भाग्य देखिए कि उदयपुर की घटना में चार मासूम बच्चें भी अंधविश्वास की बलिबेदी पर चढ़ गए। जिन्हें अंधविश्वास के बारे में तो नहीं पता था, लेकिन अपनों के प्रति विश्वास ने ही उनकी जान ले ली।

आये दिन देश में जादू टोने के चक्कर में लोग अपनों की बलि चढ़ा रहे हैं। ऐसे में सवाल यही है कि आज की आधुनिक होती युवा पीढ़ी आख़िर तंत्र मंत्र के चुंगल से कब आज़ाद होगी, क्योंकि एक हमारा संविधान है। जिसके अनुच्छेद 51-ए (एच) के तहत मानवीयता, वैज्ञानिक चेतना और तार्किक सोच को बढ़ावा देने के लिए सरकार और समाज की जिम्मेदारी तय की गई है। लेकिन अवाम संविधान की जयकार करके ही ख़ुश हो जाती है और रहनुमाओं को फिक्र कहाँ किसी की! फ़िर कहीं डायन बताकर लोगों को मार दिया जाना, कहीं आस्था के नाम पर अपनों की बलि चढ़ा दिया जाना कोई अचंभित करने वाली बात समझ नहीं आती। ऐसे में अगर भारत को सचमुच का महाशक्ति बनते देखना रहनुमाओं का सपना है। फ़िर वैज्ञानिक चेतना का प्रचार-प्रसार करना होगा! धर्म आस्था का विषय है। वह होना भी चाहिए, लेकिन अगर वही धर्म, समाज को अंधविश्वास की चौखट की तरफ़ ले जाएं फ़िर समाज को सही दिशा देने का काम सतही स्तर से होना चाहिए! हम देखें तो मंगल और चांद व्यक्ति की जद में सिमटकर रह गए हैं, लेकिन मानव आज भी अंधविश्वास के गहरे गर्त से बाहर नहीं निकल पाया है और ऐसी घटनाओं की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

इसी अक्टूबर महीने की बात है। जब छत्तीसगढ़ में एक व्यक्ति को झाड़ फूंक के बहाने गर्म चिमटे से बीस से तीस जगह जला दिया गया और आखिरकार उसकी मौत हो गई। अंधविश्वास में ऐसी ही मौतों के अनगिनत घटनाक्रम हैं। जो सुर्खियां तो बनते हैं, लेकिन इनसे सीख लेने को जैसे हमारा समाज और सरकारी तंत्र तैयार नहीं। तभी तो एक आंकड़े के मुताबिक साल 2000 से 2016 तक 2,500 लोग जादू टोने का शिकार होकर अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठे। गौर करने वाली बात तो यह है कि इसमें सबसे ज्यादा मौत मासूम बच्चों की हुई। अब इन बच्चों का कसूर सिर्फ़ इतना ही हो सकता है कि ये विरोध करने की स्थिति में नहीं और अंधविश्वास क्या होता है। इन्हें मालूम नहीं, लेकिन जिन लोगों ने इन बच्चों को मौत के मुँह में जाने दिया। सबसे बड़े गुनहगार वही हुए, विडंबना देखिए ऐसी घटनाओं में उनके अपने करीबी शामिल रहे। भारत में अंधविश्वास को लेकर कोई कठोर कानून नहीं होना भी इसकी एक बड़ी वज़ह है। अपर्याप्त कानून, अज्ञानता और निरक्षरता के चलते भारत में अंधविश्वासों के खिलाफ शायद ही कोई लड़ाई लड़ी गई है और यही कारण है कि चांद और मंगल पर पहुँचने की बात जिस कालखंड में हो रही। उस दौरान ऐसी घटनाएं समाज को कलंकित करने का काम कर रही है।

टी एस इलियट नामक दार्शनिक ने कहा है कि धार्मिक विश्वास पर सवाल नहीं उठाया जा सकेगा या उसकी आलोचना नहीं की जा सकेगी, तो उसका रूढ़ि और अंधविश्वास में तब्दील होना तय है। ऐसे में सिर्फ हमें साक्षरता दर में इज़ाफ़े पर वर्तमान समय में पीठ थपथपाने से बाज़ आना होगा और ऐसी व्यवस्था बननी जरूरी है, जो वैज्ञानिक चेतना को अंतिम जन तक पहुचाएं। जिससे यह समझ विकसित करने में आसानी हो कि धर्म की दृष्टि से क्या सही और क्या रूढ़ि या अंधविश्वास है! वरना अंधविश्वास की खाई बढ़ती चली जाएगी और साथ ही हमारा देश भी अंधविश्वास के कारण कमज़ोर पड़ जाएगा।