भारतीय राजनीति में शुभ मंगल और सावधान

सीता राम शर्मा ” चेतन “

हेेलो भाजपा, शुभ मंगल और सावधान ! सावधान इसलिए कि तमाम कमियों कमजोरियों के बावजूद वर्तमान समय में देश को तुम्हारी जरूरत है ! हालांकि बेहतर होता कि विकास का गला फाड़ु शोर मचाते हुए तुम अपने भीतर कम से कम उतना जरूरी विकास कर लेते कि विकास के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार की सारी संभावनाएं खत्म हो जाती । तुम राजनीतिक चंदे के कोढ़ से देश को मुक्ति दिला देते । दलगत नीतियों, नियमों और मॉनीटरिंग में उतना जरूरी विकास कर लेते कि तुम्हें तुम्हारे सांसदों और विधायकों को पांच साल बाद उनकी अयोग्यता के आधार पर बदलने की जरूरत नहीं पड़ती और जो ऐसे सांसद और विधायक हों, जिन्हें किसी अज्ञानता या भूलवश तुमने प्रत्याशी बना सांसद अथवा विधायक बना तो दिया पर बाद में तुम्हें उनका चरित्र या कार्यशैली पसंद नहीं आई, उन्हें हटाने के लिए तुम्हें अगले चुनाव का इंतजार नहीं करना पड़ता । कम से कम वैसे लोगों को मंत्री और मुख्यमंत्री तो कदापि बनाए नहीं रखते । सच मानों यदि तुमने देशहित, जनहित और दलहित में ऐसे सुधार कर लिए होते तो आज ना हिमाचल प्रदेश में हार का मुंह देखना पड़ता और ना ही झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में तुम पूरे पांच साल सत्ता में रहने के बाद विपक्षी दल बनने का संताप झेल रहे होते । हालांकि मेरे जैसे साधारण लोगों की बात या सलाह का तुम्हारे लिए कोई महत्व नहीं, क्योंकि योग्यता से अधिक और जरूरत से ज्यादा मिली सफलता से अहंकार का आना कोई आश्चर्य का विषय नहीं, इतिहास अंहकार और उसके विनाश की ऐसी सत्य घटनाओं से भरा पड़ा है । बावजूद इसके इतिहास से सीखा भी जाए तो कैसे ? यदि यह इतना ही सरलता से संभव होता तो फिर कांग्रेस आज इतनी लाचार और कमजोर स्थिति में विपक्षी दल बनने के लिए या फिर सच कहें तो अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इतना अंहकार युक्त मूर्खतापूर्ण संघर्ष ना कर रही होती ! फिलहाल तुम सिर्फ अपनी ही बात करो, तो मैं एक ईमानदार गवाह के रुप में बताना चाहूंगा तुम्हें झारखंड में तुम्हारी उस दुर्दशा का हाल, जो तुमने अपने ही कई नेताओं, कार्यकर्ताओं, सहयोगियों और शुभचिंतकों के कहने के बावजूद रघुवर का नेतृत्व बनाए रखकर करवाई थी । सच मानों वह एक गलत अंदरुनी गठजोड़ भर नहीं था, वह तुम्हारी ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन के तमाम दावों का भंडाफोड़ भी था, जिसके बाद मेरे जैसे लोगों के दिमाग में भ्रष्टाचार मुक्त शासन के तुम्हारे तमाम दावे ना सिर्फ संदिग्ध हैं बल्कि दीर्घकाल तक तब तक बने भी रहेंगे, जब तक तुम अपनी नीतिगत विसंगतियों से मुक्त होकर अपने ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते । उनसे दूरी नहीं बनाते । यहां मैं फिर एक बार अपनी वही बात दोहराना चाहूंगा कि यदि तुम सचमुच ईमानदार हो तो झारखंड के अपने भूतपूर्व मंत्री सरयू राय के प्रश्नों का उत्तर दो । झारखंड की जनता को बताओ कि जिन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर अभी कार्रवाई हो रही है क्या वह रघुवर राज में पूरी तरह ईमानदार थे ? ऐसे ही अनगिनत सवाल वर्तमान झारखंड सरकार के भी हैं, जिनका जवाब तुम्हें देना चाहिए । तुम नहीं दोगे, यह मुझे मालूम है । क्यों, यह तो जनता भी जानती है, पर विवशता है उसकी, बेईमानों और निकम्मों की भीड़ में से कम बेईमान और कम निकम्मों को चुनने की, जो उसे अभी तुममें दिखाई दे रहे हैं । अपनी इस स्थिति को बदलो । जिस तरह चुनाव और बूथ मैनेजमेंट के लिए तुमने अपनी मॉनीटरिंग की व्यवस्था बनाई हुई है वैसे ही अपने जीते हुए सांसदों और विधायकों की कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यनिष्ठा, पारदर्शिता और ईमानदारी के लिए मॉनिटरिंग की व्यवस्था बनाओ । याद रखना जिस दिन सांसदों और विधायकों के मॉनीटरिंग की उत्कृष्ट व्यवस्था तुम बना लोगे, बूथ मैनेजमेंट की उस व्यवस्था की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिसे तुम अभी चुनाव जीतने का बड़ा मंत्र समझते हो । एक मोदी का जलवा तुम देख रहे हो, अनेक और हरेक मोदी होने से क्या जलवा होगा, बताने की जरूरत नहीं । तुम ऐसा करोगे, इसकी संभावना फिलहाल शून्य है इसलिए सावधान ! आने वाले समय में तुम्हें गुजरात के नतीजे चाहिए या फिर हिमाचल प्रदेश के, यह तुम्हें सोचना है ! सावधान इसलिए भी, कि सफलता के अंहकार में भविष्य में तुम्हारी स्थिति भी आज के कांग्रेस की जैसी हो सकती है, जो देश नहीं चाहता । वह देश के लिए तुमसे ज्यादा नुकसानदायक होगा । इसलिए सावधान हो जाओ और खुद को बदलो ।

हेलो कांग्रेस, तुम फिलहाल शुभ मंगल और सावधान की किसी भी स्थिति में नहीं हो । सावधान तुम हो नहीं सकते इसलिए शुभ और मंगल की अपेक्षा ही व्यर्थ है । जिस हिमाचल प्रदेश के लिए तुम शुभ और मंगल की बात कर रहे हो, वह भी अमंगल के खतरों से भरा पड़ा है । तुम जब तक कुशल और स्वतंत्र राष्ट्रीय नेतृत्व से विहीन हो, तुम्हारा दीनहीन बने रहना अवश्यंभावी है ।

हेलो आप, तुम्हें भारत अंततः अन्ना आंदोलन के संताप के रूप में याद रखेगा । राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता हासिल कर देश की राजनीति को लोभ, लालच और मुफ्तखोरी के दलदल में ढकेलने का तुम्हारा अपराध अक्षम्य है । रही बात तुम्हारे राष्ट्रीय दल बनने की तो यह तुम्हारी अति और अंध महत्वाकांक्षा के साथ जल्दबाजी का प्रमाण है और जल्दबाजी का काम शैतान का होता है, यह तुमने अवश्य पढ़ा होगा । तुम तृणमूल, जदयू, सपा के सहपाठी हो, जिसे सावधान कहने की जरूरत नहीं । सभी का हस्र सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाली है, जो जारी भी है । इंतजार करो बड़ी दुर्घटना का और कोशिश करो प्रायश्चित के साथ मोक्ष का !