ट्रेज़डी किंग दिलीप कुमार के 100 वें जन्मदिन पर फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा देश के 27 शहरों में फिल्म फेस्टिवल का आयोजन

  • पीवीआर और आईनॉक्स सिनेमा गृहों में दिखाई गई चार मशहूर फ़िल्में
  • सायरा बानू सहित कई जानी मानी फ़िल्मी हस्तियों ने मुम्बई में की फिल्म फेस्टिवल में शिरकत-शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर

गोपेंद्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली/मुम्बई। फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन मुम्बई द्वारा ट्रेज़डी किंग के नाम से मशहूर महानतम फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार के 100 वें जन्मदिन पर दस एवं ग्यारह दिसम्बर को देश के 27 शहरों के 53 पीवीआर और आईनॉक्स सिनेमा गृहों में दो दिवसीय फिल्म फेस्टिवल “दिलीप कुमार-हीरो ऑफ हीरोज”का आयोजन किया गया।

राजस्थान के डूंगरपुर राजघराने से ताल्लुक़ रखने वाले फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन,मुम्बई के संस्थापक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि फेस्टिवल के अन्तर्गत सुपर हीरों दिलीप कुमार की आन(1952),देवदास (1955),राम और श्याम (1967) और शक्ति(1982) जैसी मशहूर श्वेत श्याम और रंगीन फ़िल्मों को बड़े पर्दे पर प्रदर्शित किया गया ।

इस मौके पर मुंबई में दिलीप कुमार की धर्म पत्नी और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री सायरा बानू सहित फिल्म जगत की कई जानी मानी दिग्गज फ़िल्मी हस्तियों आशा पारीख,वहीदा रहमान दिव्या राणा,रमेश सिप्पी,जावेद अख़्तर, प्रेम चोपड़ा आदि शामिल हुए और फाउंडेशन के ब्रांड एम्बेसडर महानायक अमिताभ बच्चन और कमल हासन आदि ने वीडियो के माध्यम से अपनी उपस्थिती दर्ज कराई।समारोह में आन फिल्म की स्क्रीनिंग हुई। इस मौके पर सायरा बानू अपने शोहर को याद कर बहुत भावुक हो गई।

सायरा बानो ने कहा कि “मुझे बहुत खुशी है कि फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन दिलीप साहब का 100वां जन्मदिन इस अभिनव तरीक़े से मना रहा है, जिसमें भारत भर के सिनेमाघरों में उनकी कुछ सबसे लोकप्रिय फिल्मों की स्क्रीनिंग की जा रही है।उन्होंने कहा कि फ़ेस्टिवल के लिए “ दिलीप कुमार: हीरो ऑफ हीरोज “ से अधिक उपयुक्त शीर्षक नहीं हो सकता था।”

सायरा बानो ने बताया कि , “साहब की ‘आन’ जैसी फ़िल्म देखने का यह सुनहरा मौका है. ऐसी फ़िल्में आज भला कहाँ देखने को मिलती हैं. मैंने भी दिलीप साहब की ‘आन’ फ़िल्म सबसे पहले देखी थी. उसी के बाद मैंने दिलीप साहब से शादी करने का फ़ैसला मन ही मन ले लिया था.

शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि फेस्टिवल के अन्तर्गत मुंबई के अलावा दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, पुणे, बरेली, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, रायपुर, इंदौर, सूरत, अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे शहरों में दर्शकों को दो दिनों में भारतीय सिनेमा के सबसे महान अभिनेताओं में से एक दिलीप जी जैसे विशुद्ध चुम्बकत्व और बहुमुखी प्रतिभा की चार ऐतिहासिक फिल्मों को बड़े पर्दे पर देखने का सुखद अनुभव मिला ।

उल्लेखनीय हैकि शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर राजस्थान के है और उनके द्वारा स्थापित फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन कई पुरानी भारतीय फिल्मों के संरक्षण और रेस्टोरेशन का काम समर्पित भाव से कर रही हैं । यह संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म आर्काइव्स की सदस्य भी हैं।शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर राजस्थान के है और उन्होंने कई पुरानी भारतीय फिल्मों के संरक्षण और रेस्टोरेशन का बेजोड़ काम किया है और उनके द्वारा संरक्षित और जीर्णोद्धार की गई फ़िल्मों का कॉन जैसे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी प्रदर्शन हुआ है। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर को ऐतिहासिक और गुमनामी में खो गई फ़िल्मों के पुनरुद्धार के उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

डूंगरपुर ने बताया कि पांच दशकों तक सिल्वर स्क्रीन पर राज करने वाले दिलीप कुमार का असली नाम मोहम्मद यूसुफ खान था।उनके अन्दर छुपे कलाकार ने उन्हें ‘अभिनय सम्राट’ (अभिनय का बादशाह) का खिताब दिलाया। उन्होंने पहली बार सफलता का स्वाद तब चखा, जब भारत ने 1947 में आजादी प्राप्त की और अगले कुछ दशकों में ‘अंदाज’, ‘आन’, ‘दाग’, ‘देवदास’, ‘आजाद’, ‘नया दौर’, ‘मधुमती’, ‘पाघम’, ‘गंगा जमुना’, ‘राम और श्याम’ और महाकाव्य ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी फिल्मों के सौजन्य से वे लगातार अपनी सफलता के झण्डे गाढ़ते रहें।

फ़िल्म समारोह में ‘मुगल-ए-आज़म’ और ‘गंगा जमुना’ जैसी दो बड़ी फिल्मों के नहीं होने पर ‘फ़िल्म हेरिटेज फाउंडेशन’ के संस्थापक शिवेंद्र सिंह डूँगरपुर ने बताया कि”ये फ़िल्में होनी चाहिए थीं. लेकिन ‘गंगा जमुना’ का प्रिंट इस स्थिति में नहीं है कि उसे दिखाया जा सके. ‘मुगल-ए-आजम’ का भी ब्लैक एंड व्हाइट प्रिंट हमको अच्छी स्थिति का नहीं मिल पाया. इस इसका कलर वर्जन अच्छी स्थिति में है. लेकिन सायरा जी का मानना है कि दिलीप साहब इस फ़िल्म के रंगीन बनने से इत्तेफाक़ नहीं रखते थे. इसलिए हमने उसके रंगीन संस्करण को इस फ़िल्म समारोह में नहीं रखा।