राजस्थान में भाजपा को लगा जोर का झटका

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी इन दिनों सदमे की हालत में है। पार्टी को लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं। जिससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूट रहा है। राजस्थान में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और संगठन की दृष्टि से भाजपा कमजोर लग रही है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस को हराकर कैसे अपनी सरकार बनाएगी इस सवाल का जवाब किसी भाजपा नेता के पास नहीं है। प्रदेश भाजपा के सभी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे ही चुनाव जीतने के सपने देख रहे हैं।

हाल ही में राजस्थान के सरदारशहर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक पिंचा की करारी हार से भाजपा को जोर का झटका लगा है। उपचुनाव से पूर्व झुंझुनू में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें प्रदेश के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह ने दावा किया था कि पार्टी के सभी नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। मगर उपचुनाव में अरुण सिंह का दावा खोखला साबित हुआ। ना तो पार्टी के नेता एकजुटता दिखा पाए और ना ही उपचुनाव जीत पाए।

सरदारशहर से़ भाजपा प्रत्याशी अशोक पिंचा ने तो प्रारंभ में प्रत्याशी बनने से ही इंकार कर दिया था। क्योंकि उनको पता था कि भाजपा के नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में ही लगे हुए हैं। ऐसे में उनका जीतना मुश्किल है। बड़ी मुश्किल से भाजपा नेताओं ने मान मनुहार कर अशोक पिंचा को चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया था। लेकिन चुनाव नतीजे वही रहे जिसकी अशोक पिंचा को पहले से ही आशंका थी। इतना ही नहीं 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक पिंचा का हार का अंतर भी काफी अधिक बढ़ गया।

भाजपा ने सरदारशहर उपचुनाव का प्रभारी केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को बनाया था। प्रभारी के नाते मेघवाल की जिम्मेदारी थी कि पार्टी के सभी नेताओं को एकजुट कर पूरी ताकत से चुनाव लड़े। मगर मेघवाल ऐसा करने में पूरी तरह विफल रहे। सरदारशहर उपचुनाव के दौरान मेघवाल ने पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा व पूर्व संसदीय सचिव जयदीप डूडी को तो भाजपा में शामिल करवा लिया। मगर पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी को भाजपा में शामिल नहीं होने दिया। इससे नाराज होकर भाटी ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रत्याशी लालचंद मूंड के पक्ष में वोट देने की अपील की थी।

राजस्थान भाजपा में अर्जुनराम मेघवाल को अन्य दलों से भाजपा में आने वाले नेताओं को पार्टी में शामिल करने के लिए बनाई गई छानबीन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। अर्जुन राम मेघवाल व देवीसिंह भाटी दोनों ही बीकानेर जिले के हैं। दोनों में 36 का आंकड़ा है। देवी सिंह भाटी जहां सात बार विधायक व राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वही मेघवाल तीसरी बार सांसद व केंद्र सरकार में राज्यमंत्री है। पिछले विधानसभा चुनाव में कोलायत से भाटी की पुत्रवधू पूनम कंवर भाजपा टिकट पर चुनाव लड़कर हार गई थी। तब भाटी ने अर्जुनराम मेघवाल पर भितरघात करने का आरोप लगाते हुये उनको लोकसभा प्रत्याशी बनाने का विरोध किया था। मगर पार्टी द्वारा मेघवाल को प्रत्याशी बनाने के विरोध में भाटी ने भाजपा छोड़ दी थी।

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समर्थक देवीसिंह भाटी ने गत दिनों वसुंधरा राजे के माध्यम से भाजपा में वापसी करनी चाहिए थी। इसके लिए उन्होंने बीकानेर में वसुंधरा राजे का एक बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित करवाया था। मगर अंतिम समय में मेघवाल के प्रभाव के चलते भाटी की भाजपा में घर वापसी रुक गई थी। जिससे भाटी काफी नाराज हुए थे। इस उपचुनाव के बहाने भाटी ने घर वापसी का फिर प्रयास किया था। मगर मेघवाल ने भाटी के प्रयासों पर फिर से पानी फेर दिया। यदि भाटी की घर वापसी होती तो उपचुनाव में एक अच्छा मैसेज जाता।

मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल प्रारंभ से ही विवादास्पद रहे हैं। पिछले दिनों उनका पुत्र भी कई विवादों में आया था। इसी के चलते उनका पुत्र रविशेखर कांग्रेस सरकार में केबीनेट मंत्री गोविंदराम मेघवाल की पत्नी आशा देवी से 2783 वोटो से जिला परिषद का चुनाव भी हार गया था। मगर केंद्रीय नेतृत्व की नजदीकी के चलते अर्जुन राम मेघवाल पार्टी में प्रभावी बने हुए हैं और चुन-चुन कर देवीसिंह भाटी की तरह अपने अन्य विरोधियों को भी ठिकाने लगा रहे हैं। अपने प्रभाव के चलते जहां मेघवाल अपनी व्यक्तिगत खुन्नस तो निकाल रहे हैं मगर इससे पार्टी संगठन को भारी नुकसान हो रहा है। इस बात से वह बेखबर नजर आ रहे हैं।

सरदारशहर उपचुनाव में आपसी गुटबाजी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाये रखी थी। राजे के प्रचार में नहीं आने से उनके समर्थक भी उप चुनाव से दूर रहे थे। जिससे चुनाव में भाजपा का मैसेज अच्छा नहीं गया। वही कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट सहित कई मंत्री व दर्जनों विधायक पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुटे रहे। फलस्वरूप सरदारशहर में कांग्रेस प्रत्याशी अशोक शर्मा ने भाजपा प्रत्याशी अशोक पिंचा को 26 हजार 852 वोटों के बड़े अंतर से पराजित कर दिया।

2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक राजस्थान में आठ सीटों पर उप चुनाव हो चुके हैं। जिनमें से तीन पर भाजपा, चार पर कांग्रेस व एक पर रालोपा का कब्जा था। मगर उपचुनाव में भाजपा मात्र एक सीट पर ही फिर से चुनाव जीत पायी। जबकि कांग्रेस छः व रालोपा एक सीट जीत गयी। अब तक हुये उपचुनावों में भाजपा को दो सीटे गवानी पड़ी है।

राजस्थान में भाजपा द्वारा इन दिनों जन आक्रोश रथ यात्रा निकाली जा रही है। जिसमें प्रदेश के सभी गांव में भाजपा नेता एक रथ लेकर जा रहे हैं और ग्राम वासियों से संवाद कर प्रदेश में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की कमियों को लोगों को बता रहे हैं। मगर जन आक्रोश रथ यात्रा के दौरान भी भाजपा नेताओं को बहुत से गांव में लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि तीन साल बीत जाने के बाद भी सांसदों ने लोगों से मिलना तक गवारा नहीं समझा। जबकि लोगों ने प्रदेश के हर सांसद को कई- कई लाख वोटों से चुनाव जिताया था। मगर चुनाव जीतने के बाद सांसद वोट देने वालों को ही भूल गए। ऐसी ही स्थिति का सामना विधायकों व अन्य जनप्रतिनिधियों को करना पड़ रहा है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पिछले दिनों जयपुर में हुई जनसभा में भीड़ एकत्रित नहीं होने की घटना से भी केंद्रीय नेतृत्व सकते में है। चर्चा है कि नड्डा की सभा में भीड़ जुटाने में जयपुर शहर के विधायकों कलीचरण सर्राफ, नरपत सिंह राजवी व अशोक लाहोटी ने कोई रुचि नहीं ली। जिस कारण नड्डा की जयपुर सभा फेल हो गई थी। हालांकि राजस्थान कांग्रेस में गहलोत बनाम पायलट में जमकर गुटबाजी चल रही है। मगर जहां कांग्रेस में सिर्फ दो गुट है। वहीं भाजपा में तो हर बड़े नेता का अपना अलग गुट है। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने का सपना देख रहे भाजपा के नेता कैसे चुनाव जीतेंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। फिलहाल तो प्रदेश भाजपा में सब कुछ राम भरोसे ही चल रहा है।

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)