भक्ति और शक्ति के प्रतीक थे हरिदेव जोशी त्रिपुरा सुन्दरी के अनन्य भक्त जो जीवन में कभी कोई चुनाव नही हारें

नीति गोपेंद्र भट्ट

विलक्षण व्यक्तित्व के धनी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत हरिदेव जोशी की दक्षिणी राजस्थान केबाँसवाड़ा के निकट स्थित माता त्रिपुरा सुन्दरी में गहरी आस्था थी। वे माता केअनन्य भक्त थे । वे अपने गृहअंचल की हर यात्रा की शुरूआत बांसवाड़ा शहर से सत्रह किलामीटर दूर तलवाड़ा कस्बे और हवाई पट्टी केनिकट स्थित त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ के अति प्राचीन मंदिर में जाकर ही करते थे। वे वहां पूजा-अर्चना करने केबाद ही दूसरा कोई काम शुरू करते थे । उनकी इस आस्था का ही परिणाम रहा कि त्रिपुरा सुन्दरी देवी का यहतीर्थ निरन्तर विकसित और देश विदेश में प्रसिद्ध हुआ।हरिदेव जोशी ने पांचाल समाज के साथ मिल इसऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने और प्राण प्रतिष्ठा आदि आयोजनों में गहरी रूचि लेते हुए इस प्राचीनपीठ तक आने जाने वाले मार्गों और सड़कों,धर्मशालाओं आदि का निर्माण भी करवाया। कालांतर में राजस्थानकी एक और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी माता त्रिपुरा सुंदरी की अनन्य भक्त हुई और उन्होंने मन्दिर के वैभव कोऔर भी अधिक बढ़ाया ।उन्होंने मन्दिर के सौन्दर्यकरण आदि के लिए कई काम करायें। बताते है कि सदियोंपुराना यह शक्तिपीठ प्राचीनकाल में भी तत्कालीन राजा-महाराजाओं के लिए शक्ति संचय एवं दैवी कृपा पानेका अनन्य आश्रय स्थल रहा है ।

ज्योतिषियों ने की थी प्रधानमंत्री बनने की भी भविष्यवाणी …

बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि हरिदेव जोशी अपने पिताजी पं. पन्नालाल जोशी की ही तरह एक अच्छेज्योतिषी और प्राच्यविद्याओं के मर्मज्ञ भी थे । देश के कुछ लब्ध प्रतिष्ठित ज्योतिषियों ने ज्योतिषीय दृष्टि सेउनके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के योग भी बताये थे। बताया जाता है कि यह भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्धज्योतिर्विद विश्वविजय पंचांग एवं प्रसिद्ध ज्योतिष पत्रिका ’’ज्योतिष्मती’’ के संपादक पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदीने की थी । बकायदा यह राय उन्होंने 12 जनवरी 1974 को श्री जोशी के पिता पं. पन्नालाल जोशी को लिखेपत्र में भी व्यक्त की । पं. हरदेव शर्मा ने 9 जनवरी 1974 से 6 अप्रेल 1974 की ज्योतिष्मती पत्रिका में भी इसबात का संकेत दिया था। इस दौरान हरिदेव जोशी तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के प्रतिनिधि राम निवासमिर्धा को हरा कर मुख्यमंत्री का पद प्राप्त करने में सफल रहे थे ।राजयोग सम्पन्न व्यक्तित्व के धनी जोशी नेअपने जीवन में सदैव ईश्वरीय शक्तियों में गहन आस्था रखी और दक्षिणी राजस्थान के वागड़ अंचल ही नहींबल्कि प्रदेश एवं देश के मूर्धन्य वेद विद्वानों, ज्योतिर्विदों और महात्माओं से उनका निरन्तर सम्पर्क बनाए रखा ।कितनी ही कठिन परिस्थितियाँ रही हो मगर जोशी ने नित्य कर्म और साधना का परित्याग कभी नहीं किया। वेप्रतिदिन अल सुबह उठे थे और संध्या ध्यान पूजा-अर्चना करने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत करते थे ।उनके जीवन की सफलता के पीछे भाग्य के साथ-साथ चोटी के संतों की कृपा तथा ईश्वरीय सत्ता के प्रतिउनकी अगाध श्रद्धा और विश्वास भी प्रमुख कारण रहे ।

श्री हरिदेव जोशी के विलक्षण व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाला गया था ।बताते है कि स्वयं पंडित हरदेव शर्मात्रिवेदी ने इस दौरान जयपुर में एक दिसम्बर 73 की रात श्री जोशी को कुछ प्रयोग बताए थे जिनमें कवच, कुंजिका स्तोत्र और अर्जुनकृत दुर्गास्तुति का नित्यपाठ करने की सलाह दी थी। साथ ही श्री जोशी के पिताश्री पन्नालाल जोशी को भी यह सुझाव दिया था कि वे “सार्ध -नवदुर्गा” प्रयोग कराएँ। उनका मानना है कि यदियह तमाम अनुष्ठान ठीक-ठीक हो गए होते तो हरिदेव जोशी हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित होते ।

पं0 हरदेव शर्मा त्रिवेदी , हरिदेव जोशी को पग-पग पर सलाह देते रहे और एक-एक दिन की कुण्डली एवं ग्रहोंकी स्थिति से वाकिफ करवाते थे। वे अपने मित्र तथा सिद्ध ज्योतिर्विद, जोशी के पिता पन्नालाल जोशी से भीअक्सर ज्योतिष, योग एवं तंत्र आदि विषयों पर विचार-विमर्श करते रहते थे।

हरिदेव जोशी का भी ज्योतिष और योग मार्ग आदि पर गहरा आस्था एवं विश्वास था। वे विशेषज्ञ पंडितों से प्रायः अनुष्ठान करवाते थे। उनके जयपुर निवास पर भी अक्सर पंडितों का जमावड़ा रहता था।

हरिदेव जोशी के गृह जिले बांसवाड़ा में भी अनुष्ठानों का क्रम अक्सर बना रहता था। जोशी ने कई बार जाने-माने पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में शतचण्डी, सहस्रचण्डी, लघुरूद्र, महारूद्र, महामृत्युन्जय सम्पुट सहितरूद्रार्चन कराये। खासकर माता त्रिपुर सुन्दरी की अर्चना के निमित्त श्रीयंत्र पूजा, श्रीविद्या विधानम्, बगलामुखीआदि तमाम साधनाओं में उन्होंने भी कई बार हिस्सा लिया। जोशी ने पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में त्रिपुरासुन्दरी शक्तिपीठ में कई बार सर्वविध कल्याण एवं विभिन्न बाधाओं से मुक्ति के लिए मन्दिर परिसर मेंपीताम्बरा महायज्ञ एवं जपानुष्ठान कराया। प्रायः संकट एवं चुनाव के दिनों में जोशी ने आध्यात्मिक प्रयोगोंका सहारा लिया और अक्सर होते रहने वाले अनुष्ठानों का ही असर रहा कि हरिदेव जोशी कभी अपनेराजनैतिक शत्रुओं से परास्त नहीं हुए और कइयों को उनसे मुँह की खानी पड़ी । जोशी के जीते जी वे कभी सरन उठा सके। इसे चमत्कार ही कहा जा सकता है कि जोशी के कई विरोधी चुनाव समीप आते ही उनके भक्त होजाते थे । एक बार राजनैतिक साजिश का शिकार होने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने जोशीको कुछ प्रदेशों का राज्यपाल बना कर प्रदेश की राजनीति से दूर भेज दिया था लेकिन बाद में उन्ही राजीव गाँधीने अपनी गलती सुधार कर जोशी को पुनः तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया। यह सत्य ही है कि हरिदेव जोशी वह शख्सियत थी जो सन 1977 के जनता लहर वाले चुनाव में बांसवाड़ा से बहुमत के साथविजयी हुए, यह वह समय था जब जनता लहर में बड़े-बड़े नेताओं को भी पराजय के साथ चुनावों में धूल चाटनीपड़ी थी।

इससे पूर्व भी देश की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की इच्छा जोशी कोमुख्यमंत्री बनाने की नहीं थी मगर अपनी लोकप्रियता बुद्धि चातुर्य और देव शक्ति के बलबूते पर प्रदेश केविधयकों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया । इस बारे में पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने लिखा है- ’’राजस्थानके छठे मुख्यमंत्री के रूप में वे विरोधियों को ’’जेतारमपराजित’’ करके चुने गए हैं।’ ’तत्कालीन राजनैतिककुटिलताओं का खाका खिंचते हुए वे आगे लिखते हैं- ’’ कतिपय लोगों की योजना थी कि पंजाब, हरियाणा केसमान राजस्थान में भी कोई जाट नेता मुख्यमंत्री बनाया जाए। इस प्रकार जैसलमेर, गंगानगर से अमृतसर तकस्वेच्छाचारी जाट राज्य स्थापित हो जाएगा और .राजनीतिक प्रभुता पाकर वह सदा दिल्ली को वोट देंगे।सरदार स्वर्णसिंह जाट साम्राज्य के स्वप्न दृष्टा हैं। इससे पहले सरदार बलदेव सिंह थे। किन्तु हरियाणा केतत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने व्यवहार से अन्य वर्गो को असन्तुष्ट कर दिया और तत्कालीन गृहमंत्री उमा शंकरदीक्षित और कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. शंकरदयाल शर्मा और नवल किशोर शर्मा अग्रणी हो कर आगे आये ।प्रधानमंत्री के इन विश्वस्त सहयोगियों का ल हरिदेव जोशी को आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त था।

फिरराजपूतों, जाटों और कम्युनिस्टों ने भी जोशी का समर्थन किया। ’’ज्योतिष्मती’’ के इसी अंक में आगे लिखा किजोशी सामन्तवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं।अतः ब्राह्मण और क्षत्रियों का समर्थन भी उनको मिला। उस वक्त कीराजनीति को रेखांकित करते हुए पत्रिका ने लिखा कि चन्द्रेशखर की पहली रिपोर्ट को तत्कालीन विदेश मंत्रीसरदार स्वर्ण सिंह ने गलत बताया था। इस समय तक रामनिवास मिर्धा का नाम तक सुनाई नहीं पड़ा था।सरदार स्वर्णसिंह आगे बढ़े और प्रधानमंत्री को कहकर मिर्धा को उम्मीदवार बनाया किन्तु पराजय की आशंकासे खुलकर नहीं कहा कि राम निवास मिर्धा को चुनो।जमीनी हकीकत जोशी के पक्ष में होने की जानकारीमिलने पर हाईकमान ने भी रणक्षेत्र से लौटने में ही अपनी मानरक्षा मानी।

पत्रिका ने लिखा कि “जोशी अपराजित को जीतने वाले व्यक्ति थे । जोशी तत्कालीन भारत के रंगमंच पर नूतनशक्ति थे । उन्होंने राजस्थान में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का पथ दृढ़ता से अपनाया और अंग्रेजों शासनके अभिशाप से परेश को सर्वथा मुक्त करने में अहम् भूमिका निभाई तभी वे जन नेता बनने में सफल हुए, तोविश्वास करना चाहिए कि हरिदेव जोशी एक दिन नई दिल्ली के प्रधानमंत्री के निवास गृह में विराजेंगे।”

हरिदेव जोशी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए पत्रिका में कहा गया कि यह उनकी संगठनशक्ति का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समक्ष मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष मेंमजबूती से अपनी बातें रखी और सुखाड़िया देश में सबसे कम उम्र के मुख्य मंत्री बने और सन् 1955 से 1971 तक सुखाड़िया मंत्रिमण्डल टिका रहा। हरिदेव जोशी सुखाड़िया जी और उनके बाद मुख्यमंत्री बने श्रीबरकतुल्ला खान मंत्रिमण्डल की ताकतवर शक्ति रहे । जैसे पाण्डवों की शक्ति भगवान कृष्ण थे। हरिदेवजोशी ने एक पत्रकार और ’’नवयुग दैनिक’’ के संपादक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। हालाँकि वेपत्रकारिता को ज्यादा दिन जारी नहीं रख पाएँ, लेकिन राजनीति में उनको आगे बढ़ने से कोई ताकत नही रोक सकी।

पश्चिम बंगाल,असम एवं मेघालय के राज्यपाल तथा तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रहने वाले हरिदेवजोशी देश में ऐसे विधायकों के क्लब में शामिल रहे जिन्होंने अपने जीवनकाल में 1952 से लेकर 1993 तकदस बार चुनाव लड़ा और दसों ही बार चुनाव जीतें।वे हमेशा पराजित रहें और कभी कोई चुनाव नही हारें।

17 दिसम्बर 1921 को बांसवाड़ा के छोटे से गाँव खांदू में जन्म लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री और तीन राज्यों के राज्यपाल पद पर आसीन रहकर वागड़ क्षेत्र को गौरवान्वित किया ।

हरिदेव जोशी ने मध्य प्रदेश की अमर कंटक पहाड़ियों से निकल कर वागड़ गुजरात में बहकर अरब सागर मेंमिल जाने वाली माही नदी पर माही बजाज सागर बहु उद्देशीय बांध बनवाकर वागड़ वासियों को माही रूपी गंगाकी सौगात दी। जोशी वागड़ वासियों के लिए भगीरथ के रूप में शताब्दियों तक जाने जाते रहेंगे।

राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेस नेता जोशी 36 कोम के मसीहा माने जाते थे।

माही पुत्र हरिदेव जोशी का 28 मार्च 1995 को मुंबई के एक अस्पताल में देहान्त हुआ।