उमेश जोशी
नईं दिल्ली : विश्व के तिलहन उत्पादक देशों में मौसम प्रतिकूल होने, कोरोना जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण श्रम महंगा होने और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस साल अक्तूबर में समाप्त तेल वर्ष (2021-22) में भारत का खाद्य तेल आयात पर खर्च काफी बढ़ा है। तेल वर्ष 1 नवम्बर से 31 अक्तूबर तक होता है।
भारत पाम तेल का सबसे बड़ा आयातक है। पाम तेल की सप्लाई में भारत की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। वैकल्पिक वनस्पति तेलों की आपूर्ति कम होने के कारण पाय तेल की मांग बढ़ गई जिससे पाम तेल की कीमतों में तेजी आ गई।
पाम तेल के वैकल्पिक खाद्य तेल सोयाबीन, रेपसीड (कैनोला) और सूरजमुखी के तेल हैं। दुनिया में खाद्य तेलों की आपूर्ति में पाम तेल की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। बाकी 60 प्रतिशत में सारे खाद्य तेल शामिल हैं।
वैकल्पिक तेलों में सोयाबीन तेल का दूसरा स्थान है। बीते तेल वर्ष में इसका उत्पादन भी प्रभावित हुआ क्योंकि इसके प्रमुख उत्पादक देस अर्जेंटीना में सोयाबीन उत्पादन के लिए मौसम अनुकूल नहीं था।
पिछले साल कनाडा में सूखे के कारण रेपसीड (कैनोला) तेल का उत्पादन कम हुआ। सूरजमुखी तेल के प्रमुख सप्लायर रूस और यूक्रेन हैं। दोनों देशों की विश्व आपूर्ति में 80-90 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है। दोनों देशों में लंबे समय से युद्ध होने की वजह से सूरजमुखी तेल की सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
कोरोना महामारी के कारण श्रम संकट खड़ा हो गया। सभी देश श्रम संकट से जूझ रहे थे।श्रम की कमी से खाद्य तेलों का उत्पादन कम हो पाया जिससे सप्लाई भी गिर गई। नतीजतन, अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले साल के अंत से बहुत भारी उछाल आया।
आँकड़े बताते हैं कि तेल वर्ष (2021-22) में भारत में खाद्य तेलों का आयात 6.85 प्रतिशत बढ़कर 140.3 लाख टन रहा। एक तरफ आयात बढ़ा, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई तो खाद्य तेलों का आयात बिल बढ़ना ही था। बीते तेल वर्ष में खाद्य तेलों के आयात पर खर्च 34.18 प्रतिशत बढ़कर 1.57 लाख करोड़ रुपए हो गया।
दुनिया में वनस्पति तेल खरीदने वाले देशों की सूची में भारत का स्थान काफी उपर है। भारत ने तेल वर्ष 2021-22 में 1.17 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 131.3 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया। पहली दो तिमाहियों के दौरान आयात धीरे-धीरे बढ़ा और तीसरी तिमाही में यह धीमा हो गया। तीसरी तिमाही में आयात धीमा होने की प्रमुख वजह यह थी कि इंडोनेशिया ने अप्रैल 2022 में पाम तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इंडोनेशिया विश्व का सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक, निर्यातक और उपभोक्ता देश है। इंडोनेशिया में पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध की वजह यह थी कि वहाँ घरेलू बाजार में खाना पकाने के तेल की कमी होने से कीमतों में बढ़ोतरी हो रही थी। लिहाजा, बढ़ती कीमतें रोकने के लिए इंडोनेशिया को पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। हालांकि एक महीने बाद प्रतिबंध हटा लिया गया जिससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट आ गई थी। इन दोनों कारणों से चौथी तिमाही में भारत में पाम तेल की खरीद तेजी से बढ़ी।
बाजार के जानकारों का कहना है कि बीते तेल वर्ष में पाम तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव आने से भारत में पाम तेल की खरीद पर प्रभाव पड़ा। इस साल मार्च-अप्रैल में थोड़े समय के लिए पाम तेल हल्के तेलों जितना महंगा रहा। निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के इंडोनेशिया के फैसले से मई-जून में पाम तेल की सप्लाई कम हो गई और भारत में इसकी खरीदारी कम हुई। भारत में पाम तेल की खरीदारी गिरने से हल्के तेल का आयात बढ़ गया। नतीजतन, तेल वर्ष 2021-22 में पाम तेल आयात घटकर 79.15 लाख टन रह गया जबकि इसके पिछले तेल वर्ष (2020-21) में 83.21 लाख टन का आयात किया गया था। हल्के तेल का आयात वर्ष 2020-21 में 48.12 लाख टन था जो 2021-22 में बढ़कर 61.15 लाख टन हो गया। हल्के तेलों में, सोयाबीन तेल का आयात इस साल तेजी से बढ़कर 41.71 लाख टन हो गया, जो वर्ष 2020-21 में 28.66 लाख टन था। इसी तरह सूरजमुखी तेल का आयात 2021-22 में मामूली बढ़कर 19.44 लाख टन हो गया जो साल 2020-21 में 18.94 लाख टन था। एक नवंबर तक देश में 24.55 लाख टन खाद्य तेलों का भंडार था। भारत को हर महीने लगभग 19 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत होती है।
पाम तेल न सिर्फ खाद्य वनस्पति तेल है बल्कि इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, केक, चॉकलेट, स्प्रेड, साबुन, शैम्पू और सफाई उत्पादों से लेकर जैव ईंधन तक हर चीज़ में किया जाता है।
बायोडीजल बनाने में कच्चे पाम ऑयल के इस्तेमाल को ‘ग्रीन डीज़ल’ करार दिया गया है।
इंडोनेशिया और मलेशिया मिलकर पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का 90 प्रतिशत पाम ऑयल का उत्पादन करते हैं। इसमें भी इंडोनेशिया की हिस्सेदारी अधिक है। जिसने वर्ष 2021-22 में 4.5 करोड़ टन पाम तेल का उत्पादन किया। अमेरिका के कृषि विभाग के अनुसार, वर्ष 2020-21 में पाम तेल का वैश्विक उत्पादन 7.3 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक होने के साथ ही यह दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला वनस्पति तेल है। पाम तेल को इसलिए भी पसंद किया जाता है कि यह सस्ता है। साथ ही, सोयाबीन जैसे कुछ अन्य वनस्पति तेलों की तुलना में पाम ऑयल का प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होता है। चालू तेल वर्ष (2022-23) में इसका उत्पादन 7.7 करोड़ मीट्रिक टन होने का अनुमान है जो पिछले महीने के अनुमान से 10 लिख टन कम है। यदि उत्पादन गिरता है और मांग में कोई कोई कमी नहीं आती है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम और बढ़ेंगे जिससे खाद्य तेलों का आयात बिल भी बढ़ बढ़ेगा।