अभिषेक यादव
देश में बहुत तेजी से राजनीतिक जागरूकता बदल रही है ,कहीँ कोई पार्टी मात्र एक प्रतिशत वोट से बहुमत में सरकार बना लेती है ,तो कहीँ 27 साल शासन के बाद भी पुनः बहुमत से शासन में आ जाती है !
अगले साल होने वाले बड़े विधानसभा सभा चुनावों की बात करें तो राजस्थान का चुनाव रोचक होने जा रहा है ,जहाँ पक्ष और विपक्ष दोंनो दलों में गुटबाजी स्पष्ट है वहीं, राजस्थान की चुनावी रिवायत के अनुसार मौका भाजपा के पास है!
लेकिन ,हिमाचल चुनाव से सबक लेने के बाद भाजपा राजस्थान चुनाव को हल्के में नहीं लेगी, बल्कि अंतिम समय मे उत्तराखंड और गुजरात मे जो फटाफट नेतृत्व परिवर्तन कर नए चेहरों को मौका देकर जनता में एक नया संदेश दिया उसे दोहराना चाहेगी
उत्तराखंड में भी राजस्थान की तरह ही हर बार सरकार बदलने की रिवायत रही है पर अंतिम समय मे भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बदले औऱ अंत मे उस मुख्यमंत्री के नेतृत्व में वापिस सत्ता वापसी की जो खुद भले हारे,पर पार्टी की सत्ता में वापसी करवाई l
गुजरात मे भी भाजपा ने अपनी 27 साल की एन्टी इनकम्बेंसी लहर को प्रो इनकम्बेंसी लहर में बदला ,इसी प्रयोग के सहारे कई दिग्गजों के टिकट काट नए चेहरों को मौका दिया औऱ बाग़ियों की भी चिंता नहीं की औऱ परिणाम पूरे देश ने देखा
इसमें दो राय नहीं की राजस्थान में भी पक्ष और विपक्ष दोनों में गुटबाजी की खाई काफी गहरी है…. पर किस पार्टी में गुटबाजी की खाई ज्यादा गहरी है ये भी जनता को पता है l
वर्तमान राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह चाहेंगे की राजस्थान में रिवाज़ कायम रहे औऱ इसके लिए वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे, वैसे राजस्थान चुनाव फुटबॉल वर्ल्ड कप के फाइनल मैच से कम रोमांचक नहीं होगा, आखिर गहलोत औऱ मोदी की दोस्ती तो जगजाहिर है ही!
हां ,इतना तय है की भाजपा राजस्थान में अपने कई दिग्गज़ों के चुनावी मंसूबों पर पानी फेर सकती है l