निर्मल रानी
हमारे देश में गुरुओं की महिमा व उनके महिमामंडन के तमाम क़िस्से प्राचीनकाल से मशहूर हैं। अनेक महापुरुषों,संतों कवियों व लेखकों ने गुरुओं की शान में बहुत कुछ लिखा है। अनेक संतों कवियों की वाणियों में तो गुरु को ‘परमेश्वर तुल्य’ तक बताया गया है। परन्तु यह भी सच है कि कलयुग के वर्तमान दौर में देश के कई नामी गिरामी स्वयंभू आध्यात्मिक गुरु अपने काले कारनामों के कारण देश की विभिन्न जेलों में सज़ायाफ़्ता बलात्कारी या हत्यारे के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। और अनेक ऐसे भी हैं जो अपने भक्तों व अनुयायियों की अंधआस्था का भावनात्मक लाभ उठाते हुये उनका किसी न किसी बहाने आर्थिक शोषण करते रहते हैं। कोई स्वदेशी के नाम पर अपना वयवसायिक साम्राज्य स्थापित करने में लगा है तो कोई बीज मन्त्र बाँट रहा है,कोई किसी धर्मस्थान के निर्माण के नाम पर धन संग्रह करने में व्यस्त है तो कोई अपने ‘शिष्यों ‘ व भक्तों से पैसे ऐंठ कर विदेशों के तीर्थ टूर संचालित करता रहता है। और बेचारे शिष्य हैं कि ऐसे ‘गुरु घंटालों ‘ की संगत में ही उन्हें पुण्य,मोक्ष या मुक्ति की मंज़िल नज़र आती है। वैसे भी कोई भी तथाकथित आध्यत्मिक गुरु अपने भक्तों व अनुयायियों को आशीर्वाद के अतिरिक्त और दे भी क्या सकता है ?
दूसरी तरफ़ स्कूल कॉलेज में शिक्षा दान करने वाला एक ‘सांसारिक गुरु’ है जो किसी व्यक्ति को शिक्षित कर उसकी आगामी नस्लों तक को ज्ञान और धन सुख और समृद्धि की सौग़ात देता है। कलयुग के अनेक तथाकथित आध्यात्मिक धर्म गुरु नफ़रत के बीज बोते हैं, अपने निजी लाभ हानि व पूर्वाग्रह के चलते राजनैतिक लोगों के पक्ष/विपक्ष में मतदान करने की अपील करते हैं, भावनात्मक रूप से उन्हें उत्तेजित कर समाज में अशांति फैलाने का काम करते हैं। पिछले दिनों देश के एक प्रसिद्ध कथावाचक ने मध्य प्रदेश के बैतूल में लगभग एक सप्ताह तक लाखों लोगों को प्रवचन दिये। राज्य के सरकारी मंत्रियों व प्रशासनिक तंत्रों ने जिस प्रकार इस कथा के आयोजन में अपनी सक्रियता व दिलचस्पी दिखाई थी उसी से यह आभास होने लगा था कि यह ‘गुरु महाराज ‘ राज्य सत्ता द्वारा दिये गये इस सहयोग व समर्थन का हक़ ज़रूर अदा करेंगे। और वैसा ही हुआ भी। ‘गुरु श्री ‘ ने फ़रमाया कि ‘सनातन धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिये हर घर से एक बेटा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या बजरंग दल में ज़रूर भेजना चाहिये’। उन्होंने स्कूली शिक्षा की आलोचना करते हुये इसे पैसा कमाने वाली शिक्षा देने और नौकर पैदा करने का केंद्र बताया जबकि गुरुकुल शिक्षा पद्धति को नौकर नहीं बल्कि ‘राजा ‘ बनाने वाली शिक्षा का केंद्र बताया।
उक्त कथावाचक ने अपने प्रवचन के दौरान और भी कई विवादित बयान दिये जिसकी किसी वास्तविक गुरु से तो उम्मीद हरगिज़ नहीं की जा सकती। केवल कल्पना कीजिये कि यदि इनके सुझाव अनुसार स्कूल बंद कर दिये जायें और लोग अपने बच्चे पैदा कर किसी विशेष विचारधारा के संगठन या पार्टी को देने लगें तो इस देश की आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था का क्या हश्र होगा। देश का हर शिक्षा प्रेमी देश में स्कूल व कॉलेज की कमी की बात करता है,देश में ग़रीब बच्चों को पढ़ाई का समान अवसर मिल सके इसकेलिये ‘सब को शिक्षा के समान अवसर व अधिकार ‘ की बात उठाई जाती है। परन्तु आश्चर्य है कि लाखों की भीड़ को संबोधित करने वाला ‘गुरु ‘ कहता है कि विद्यालय ‘नौकर’ पैदा करने व पैसा अर्जित करने का माध्यम मात्र है ? हर व्यक्ति धन कमाने के लिये इन कथावाचकों जैसे न तो धर्म ज्ञान ‘ रखता है न कला न सामर्थ्य। लिहाज़ा केवल शिक्षा ही हर व्यक्ति की रोज़ी रोटी का साधन भी है और यही देश की तरक़्क़ी का मार्ग भी दिखाती है।
अब आइये कलयुग के इसी दौर में एक और गुरु की चर्चा कर स्वयं फ़ैसला करें कि वास्तव में गुरु घंटाल कहलाने का हक़दार कौन है और ‘परमेश्वर तुल्य गुरु ‘ कहलाने का हक़दार कौन ? गत दिनों उड़ीसा के गंजाम ज़िले के एक ऐसे शिक्षक के बारे में पता चला जो एक कॉलेज में अतिथि शिक्षक (लेक्चरर ) है। इसके अतिरिक्त नागेषु पात्रो नामक यह 31 वर्षीय शिक्षक दिन में तो कॉलेज में एक लेक्चरर के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हैं और रोज़ रात में अपने क़रीबी बेरहामपुर रेलवे स्टेशन पर क़ुली का काम करते हैं। नागेषु पात्रो क़ुली का काम अपने व अपने परिवार का पेट भरने के लिये नहीं करते बल्कि चूंकि वह अन्य बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देने के मक़सद से एक कोचिंग सेंटर भी चलाते हैं और उस निःशुल्क कोचिंग केंद्र में उन्होंने विज्ञान,गणित,अंग्रेज़ी आदि विषयों को पढ़ाने हेतु चार योग्य अध्यापक नियुक्त किये हैं जिनकी तन्ख़्वाह दस से 12 हज़ार रूपये प्रत्येक तक है,उसी वेतन के भुगतान के लिये पात्रो को क़ुली का काम करना पड़ता है। जबकि पात्रो ख़ुद हिंदी और उड़िया विषय कॉलेज में भी पढ़ाते हैं और कोचिंग में भी फ़्री पढ़ाते हैं।
भारत रत्न प्रो कलाम साहब कहते थे कि शिक्षकों से ज़्यादा से ज़्यादा शिक्षण कार्य लेने चाहिये और उन्हें अधिक से अधिक वेतन दिया जाना चाहिये। पूरी दुनिया का केवल प्रत्येक बुद्धिजीवी ही नहीं बल्कि जो लोग परिस्थितियां या दुर्भाग्यवश स्वयं शिक्षित नहीं हो सके वे भी जानते हैं कि शिक्षा व्यक्ति परिवार समाज और देश की तरक़्क़ी व आत्म निर्भरता का मुख्य आधार है। परन्तु एक कथावाचक गुरु की नज़रों में यह सब व्यर्थ है ? भारतीय समाज को भी नागेषु पात्रो के मिशन का अनुसरण करते हुये यथासंभव फ़्री शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये। और पात्रो जैसे गुरुओं को ही ‘परमेश्वर रुपी’ गुरुओं की श्रेणी में रखना चाहिये। और अतिवादी विचारों व राजनीति प्रेरित गुरुओं से सचेत रहना चाहिये। ये लोग शत प्रतिशत व्यवसायी लोग हैं जो लोगों की भावनाओं का दोहन कर अपना ‘धर्मोद्योग ‘ चलाते हैं।और यही इनके व्यवसाय का मुख्य आधार है। आज हमारे देश में लाखों गुरु ऐसे हैं जो नागेषु पात्रो की ही तरह ज़रूरत मंद बच्चों को मुफ़्त शिक्षा व कोचिंग आदि दे रहे हैं। वास्तव में तो यही हैं ‘परमेश्वर ‘ रुपी गुरु।