संस्कृति को सहेजना हैं तो परंपराओं को जानना होगा, जिसका जरिया लोक संगीत हैं .. . 

  • मेरा लक्ष्य नई पीढ़ी को परंपराओं से जोड़ना रहा – के.सी.मालू
  • राजस्थान फोरम की डेजर्ट सोल शृंखला में इस बार रूबरू हुए राजस्थानी लोक संस्कृति के सशक्त प्रहरी केसरी चंद मालू

गोपेंद्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली। हर महीने की तरह इस बार राजस्थान फोरम की बुधवार को जयपुर में आयोजित मासिक डेजर्ट सोल शृंखला में साहित्य और कला प्रेमियों से रूबरू हुवे राजस्थान सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार राजस्थान रत्न अवार्ड से विभूषित के .सी.मालू।

वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने अपने दिलचस्प सवालों से के.सी .मालू का सफर दिलकश अन्दाज़ में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।

के.सी.मालू ने बताया कि उनके पिता का नेपाल में बहुत बड़ा कारोबार था पर उस विरासत को छोड़ कर उन्हें हमेशा ही राजस्थानी संस्कृति ने अपने मोहपाश में जकड़े रखा।लोक संगीत के जरिए इतने मीठे बोल सुनकर मन किया कि इस विरासत को सहेजना हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य की अच्छी समझ ने मेरे काम को और आसान कर दिया। संगीत में उस समय कोई अच्छा साहित्य नहीं था। साहित्य से जुड़े लोग भी संगीत को हेय दृष्टि से देखते थे।

मैंने इस कार्य में बहुत संघर्ष झेला परंतु प्रसिद्धि के साथ-साथ धन भी बहुत कमाया।

उन्होंने बताया कि अलग-अलग वर्ग की महिलाओं से मिलकर पारंपरिक-गीतों को सुनना और समझना फिर उसे मधुर संगीत में डालना आसान तो नहीं था पर समय के प्रवाह के साथ सब होता चला गया। अपने काम से मैंने पारंपरिक संगीत को नई तरीके से प्रस्तुत किया। जिसके पीछे उद्देश्य यही था कि नई पीढ़ी में इन परंपराओं से जुड़ाव पैदा हो।आज के परिदृश्य में इन परंपराओं की बहुत जरूरत हैं ।अगर यह परंपरा अपने भीतर उतार ली जाए तो ना सास-बहू का झगड़ा हो ना पति-पत्नी।
उन्होंने यह भी बताया कि इस यात्रा में सरकार की तरफ से कभी कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिला। मैंने संगीत का यह महल बड़े संघर्षों से खड़ा किया हैं और आज ये जन-जन का संगीत बन गया हैं।

मालू ने बताया कि कलर्स पर दर्शकों का दिल जीतने वाले बालिका वधू सीरियल के संगीत ने सभी के दिल पर राज किया। उन्होंने कहा कि संस्कृति को सहेजना हैं तो परंपराओं को जानना होगा, जिसका जरिया लोक संगीत हैं ।

मालू ने कहा कि इस लोक संगीत और सुगम संगीत को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक कलात्मक पत्रिका भी होनी चाहिए और इसी सोच ने मासिक ‘स्वर-सरिता’ पत्रिका का सपना साकार किया।

इस अवसर पर कई गणमान्य साहित्यकार और कलाकार मौजूद रहें।
अंत में राजस्थान फोरम के सदस्य पद्मश्री रामकिशोर छिपा, इकराम राजस्थानी और अशोक राही ने स्मृति चिन्ह भेंट किया।

उल्लेखनीय है कि के.सी मालू के नाम से विख्यात केसरी चंद मालू का नाम राजस्थान के कला फलक पर राजस्थानी लोक संगीत के प्रहरी के रूप में पहचाना जाता है। वीणा संगीत समूह के अध्यक्ष मालू पिछले कई दशाब्दियों से यहां के लोक संगीत के अलावा सुगम संगीत के प्रचार प्रसार तथा राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

मालू “सुर संगम संस्थान” के माध्यम से हर साल भारत के 125 केन्द्रों पर संगीत प्रतियोगिताओं, राष्ट्रीय प्रसारण एवं राजस्थान दूरदर्शन और ई.टी.वी. पर धारावाहिकों का निर्माण, प्रसारण एवं निर्देशन, कला, संस्कृति एवं संगीत पर शोध परक बहुरंगी मासिक पत्रिका “स्वर सरिता” का 16 वर्षों से निरन्तर प्रकाशन करते आ रहे हैं। राजस्थानी घूमर की प्रतिस्थापना की दिशा में भी मालू का योगदान महत्वपूर्ण रहा है।

इनके योगदान के लिए राजस्थान सरकार ने इन्हें हाल ही में उन्हें अपना सर्वोच्च पुरस्कार राजस्थान रत्न अवार्ड प्रदान किया है। इससे पूर्व मालू को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी ने “समग्र कला साधना अवार्ड” और महाराणा मेवाड फाउंडेशन द्वारा प्रतिष्ठित “डागर घराना अवार्ड” से सम्मानित किया गया है।