राहुल गाँधी की अलवर यात्रा से उभरा सवाल, क्यों नहीं दिखता अपने नेताओं का भ्रष्टाचार

उमेश जोशी

अलवर की दो दिन की यात्रा के बाद राहुल गाँधी आज बुधवार को अपनी अगली पदयात्रा के लिए रवाना हो गए और कई सवाल पीछे छोड़ गए। राहुल गाँधी की अलवर यात्रा के दौरान दो नेता सबसे आगे रहे या यूं कहें उन्हें सबसे अधिक तवज्जो दी गई। राजस्थान सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग तथा कारागार विभाग के मंत्री टीका राम जूली और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह पूरे शो के दौरान राहुल गाँधी के इर्द गिर्द ही रहे।

दोनों नेता कई कारणों से जनता के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं। पिछले साल नवंबर में राजस्थान कैबिनेट में फेरबदल किया गया था। रविवार 21 नवम्बर को 15 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। शपथ लेने वाले विधायकों की सूची 20 नवंबर को ही काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ट्विटर पर जारी कर दी थी। इस सूची में टीकाराम जूली का भी नाम था। शपथ ग्रहण से पहले काँग्रेस विधायकों की नाराजगी सामने आने लगी थी। काँग्रेस विधायक जौहरी लाल मीणा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था- “हमारे अलवर जिले में टीकाराम जूली एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं। उनका परिवार वसूली में शामिल है। मैंने पार्टी नेतृत्व से गुजारिश की है उन्हें मंत्री पद से हटाया जाए लेकिन मेरे विरोध के बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया है। मैं इसके खिलाफ हूँ।”

जूली के बारे में आम जनता की धारणा विधायक जौहरी लाल मीणा से अलग नहीं है। फिर भी ऐसी छवि वाला व्यक्ति मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चहेता है। वरना क्या वजह हो सकती है कि पार्टी के कई विधायकों के कड़े विरोध के बावजूद जूली को मंत्रिमंडल से नहीं हटाया गया। अलवर जिले में यह भी चर्चा है कि जूली पार्टी फंड के लिए पैसा देते हैं और फंड के लिए धन देने वाले मंत्री, भले वो भ्रष्ट ही क्यों ना हों, अशोक गहलोत चहेते होते हैं।

अगले साल विधानसभा चनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव हैं। इन चुनावों के लिए पार्टी को धन की जरूरत पड़ेगी। कड़े नियमों के कारण कॉर्पोरेट सेक्टर से पार्टी के लिए फंड लेना अब आसान नहीं है इसलिए अशोक गहलोत के सामने अगले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए फंड इकट्ठा करने की बड़ी चुनौती है। अशोक गहलोत की मजबूरी कहें या भ्रष्ट नेताओं को तवज्जो देने की काँग्रेस की संस्कृति कहें, जूली मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की गोद में बैठ गए।

ऐसे कितने ही मामले हैं जहाँ जूली की ईमानदारी संदेहास्पद रही है। हालांकि संदेह की गुंजाईश तब ख़त्म हो जाती है जब जूली की अपनी ही पार्टी का विधायक उन्हें खुलेआम भ्रष्ट बता देता है।

राहुल गाँधी की अलवर यात्रा के दौरान एक रैली की गई। अशोक गहलोत ने राहुल गांधी की नजरों में जूली के नंबर बढ़ाने के लिए विशाल रैली की खूब तारीफ की; उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि अलवर के इतिहास में इतनी विशाल रैली कभी नहीं हुई। गहलोत ने यह भी कहा कि यह रैली नहीं, रेला था। गहलोत को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान में काँग्रेस की सरकार होने की वजह से रैली कामयाब रही है, इसलिए नहीं कि उनके चहेते रैली आयोजन का बंदोबस्त कर रहे हैं। सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर विशाल रैली का आयोजन करने में कोई महानता नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि विरोधियों पर ऊँगली उठाने वाले राहुल गाँधी को जूली का रिपोर्ट कार्ड क्यों नहीं दिखाई देता।

पूर्व मंत्री जितेन्द्र सिंह को भी राहुल गाँधी की यात्रा में काफी अहमियत दी गई। जितेंद्र सिंह के बारे में आम धारणा है कि वे जिले में किसी को पनपने नहीं देते। पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को भी उनसे मिलने में पसीने आ जाते हैं। ‘खम्मा घणी’ कह कर जितेंद्र सिंह के दरबार में जगह पाने वाले चंद लोगों ने ऐसा व्यूह रचा हुआ है कि उसे तोड़ कर आसानी से कोई जितेन्द्र सिंह तक नहीं पहुँच सकता। वो अभी तक राजाओं वाले अंदाज में कामकाज करते हैं, भले ही आजादी के बाद रजवाड़े खत्म हो गए। राहुल गाँधी ऐसे नेताओं के बूते अलवर की राजनीति में धमक बनाना चाहते हैं। जिस शहर अलवर में जितेन्द्र सिंह रहते हैं, उस शहर में पिछले लोकसभा चुनाव में वे 45 हजार वोट से हारे थे। जनता से दूर रहेंगे तो यही हाल होगा। अगला चुनाव भी हारने के लिए ही लड़ेंगे।
अलवर की चुनावी राजनीति में राहुल गाँधी की पदयात्रा का असर कितना होगा, यह तो कहना मुश्किल है लेकिन पदयात्रा के इंतजामात में जिन नेताओं को तवज्जो दी गई है उन्होंने कई सवाल हवा में छोड़ दिए हैं।