राजस्थान सरकार राजस्थानी को तुरंत राजभाषा बनाये

राजस्थानी युवा समिति का अलवर में राजवीर सिंह चलकोई की अगुवाई में “हेलों मायड़ भासा रौ” का आयोजन

रविवार दिल्ली नेटवर्क

नई दिल्ली। राजस्थान के सिंह द्वार अलवर में सोमवार को राजस्थानी युवा समिति द्वारा एक अनूठा कार्यक्रम “हेलों मायड़ भासा रौ” का आयोजन हुआ ।इसकी अगुवाई समिति के राष्ट्रीय सलाहकार राजवीर सिंह चलकोई ने की।

राजस्थानी भाषा की जागरूकता को लेकर राजस्थानी युवा समिति राजस्थान में संभाग स्तर पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। समिति ने जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, वाराणसी में हजारों राजस्थानियों को राजस्थानी की मान्यता के लिए विगत कई वर्षों से हो रहे आन्दोलन से अवगत करवाने के बाद अब अलवर में इस भोळावणी उच्छब “हेलों मायड़ भासा रौ” का आयोजन किया।

हजारों की संख्या में उपस्थित युवाओ को सम्बोधित करते हुए राजवीर सिंह चलकोई ने भारत सरकार से राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता देने और राजस्थान सरकार से राजस्थानी को तुरंत राजभाषा बनाने की माँग की। राजवीर ने बताया कि नई शिक्षा नीति में स्थानीय मातर भाषाओं को राजभाषा बनाने का प्रावधान किया गया है ताकि छात्र छात्राएँ आसानी से शिक्षा ग्रहण कर सकें।

उन्होंने कई सौ साल पहले बृज बोली में बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा लिखे दोहे सुनाकर ये प्रमाणित किया कि बृज,मेवाती और अन्य सभी बोलियां राजस्थानी भाषा का शताब्दियों से अभिन्न अंग रहीं है एवं ये बोलियां मिलकर ही राजस्थानी भाषा का निर्माण करती है।

राजवीर ने लिपि के प्रश्न पर उत्तर देते हुए बताया कि मुड़िया एवं महाजनी ये सब हमारी लिपिया रही है । जिस तरह संविधान की 8वी अनुसूची में 10 भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती है उसी प्रकार राजस्थानी को भी मान्यता मिलने पर एक और भाषा भी जुड़ सकती है।

अलवर से समिति का मत स्पष्ठ करते हुए राजवीर ने कहा अब अगर करीब 8 करोड़ राजस्थानियों की मायड भाषा को सम्मान नहीं मिलेगा तो परिणाम भुगतना सरकार की जिम्मेदारी होगी।

राजवीर ने बताया मेवाती और बृज का भी राजस्थानी भाषा में उतना ही महत्व है जितना राजस्थान की अन्य बोलियों का है ।
इतिहासविद राजवीर ने युवाओं से राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय उदाहरणों के साथ संवाद किया एवं तथ्यों पर बात करते हुए बताया कि जब मेवाड़ के महाराणा का लिखा खत हसन खां मेवाती समझ सकता है तो इसका मतलब है राजस्थानी एक ही भाषा है बस बोलियां अलग अलग है।

राजवीर के ओजस्वी भाषण को सुन कर अलवर के युवाओं ने एक स्वर में राजस्थानी को राजभाषा बनाने का समर्थन किया और हजारों युवाओं ने राजस्थानी भाषा को राजभाषा बनाने की शपथ ली।