ग्यारह गांवों के आदिवासी किसानों ने काली-मिर्च और हर्बल की खेती का लिया संकल्प

  • बस्तर में एक खामोश क्रांति ले रही आकार :धीरे धीरे”काली मिर्च” की खेती बन रही बस्तर के बहुसंख्य आदिवासी किसानों के नियमित आय का साधन
  • काली मिर्च के 20 पेड़ों से लिया 40 किलो बेहतरीन काली मिर्च का उत्पादन, बस्तर के किसान संतु राम और राजकुमारी मरकाम ने लिखी एक नई इबारत
  • मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर’ ने विकसित की है , काली-मिर्च की बहुउपयोगी अनूठी सफल प्रजाति एमबीडी -सोलह, यह बदलेगी किसानों की किस्मत
  • काली मिर्च और ऑस्ट्रेलियन टीक की युगलबंदी साबित हुई बेजोड़, इससे खेती में सबसे अधिक कमाई हुई संभव
  • 11-ग्यारह गांवों के आदिवासी किसानों को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने जैविक-खेती की दिलाई शपथ

दीपक कुमार त्यागी

25 दिसंबर देश दुनिया में “क्रिसमस” के त्यौहार मशहूर है। बस्तर में इसे “बड़ा-दिन” भी कहा जाता है। इस बार का 25 दिसंबर कई मायनों में बस्तर के 11-ग्यारह गांवों के किसानों के लिए सचमुच ‘बड़ा दिन’ साबित हुआ, जब इन का भ्रमण किया और यहां की जा रही काली-मिर्च की सफल खेती के साथ ही अन्य विभिन्न जड़ी बूटियों की जैविक पद्धति से की जा रही खेती को नजदीक से देखा समझा और परखा।

दरअसल ये 11-ग्यारह गांवों के प्रगतिशील किसान अपने ही क्षेत्र के संतु राम ,जानो बाई मरकाम, राजकुमारी मरकाम आदि आदिवासी किसानों द्वारा पिछले कुछ सालों से की जा रही काली-मिर्च की सफल खेती को देखकर स्वयं भी इसकी खेती करने हेतु प्रेरित हुए, और एकजुट होकर लगभग 61 किसान इस रविवार को प्रशिक्षण व मार्गदर्शन हेतु कोंडागांव स्थित “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म” आए थे, जहां उन्होंने लगभग पूरा दिन बिताया।

काली-मिर्च की सफल खेती बस्तर जैसे पिछड़े अंचल में ? वह भी आदिवासी किसानों के द्वारा? पहली बार सुनने में यह बात शायद हजम ना हो, लेकिन यह एक चमकदार हकीकत है। और इसे सफल कर दिखाया है बस्तर में पिछले पच्चीस वर्षों से जैविक तथा औषधीय कृषि कार्य में लगी संस्था मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने। सोने पर सुहागा यह कि प्रयोगशाला परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो गया है , कि बस्तर की इस काली मिर्च केऔषधीय तत्व पिपरिन लगभग 16% ज्यादा पाया जा रहा है। और इस कार्य का जिस व्यक्ति ने बीड़ा उठाया और इसे इस मुकाम तक पहुंचाया उनका नाम है डॉ राजाराम त्रिपाठी । यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है।बस्तर के दरभा विकास खंड के बेहद पिछड़े आदिवासी गांव ककनार में पैदा हुए, पले बढ़े तथा कालेज के व्याख्याता और बैंक अधिकारी के उच्च पदों से त्यागपत्र देकर, पिछले बीस वर्षों से काली मिर्च की इस नई प्रजाति के विकास में लगे डॉ त्रिपाठी ने अंततः नई प्रजाति एमडीबी-16 के विकास के जरिए यह सिद्ध कर दिखाया, कि केरल ही नहीं बल्कि भारत के शेष भागों में भी उचित देखभाल से इस विशेष प्रजाति की काली मिर्च की सफल और उच्च लाभदायक खेती की जा सकती है।

गांव जड़कोंगा ,कांटागांव विकासखंड माकड़ी जिला कोंडागांव बस्तर के संतुराम मरकाम, राजकुमारी मरकाम, रमेश साहू सहित कई आदिवासी किसान साथी मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से कई वर्षों पूर्व जुड़े हुए हैं। इस महती कार्य में तत्कालीन जनपद अध्यक्ष माकडी जानो बाई मरकाम और रमेश साहू पूर्व जनपद अध्यक्ष विश्रामपुरी की भी प्रमुख भूमिका रही। जैविक खेती तथा हर्बल खेती की ओर अग्रसर इन किसानों ने काली मिर्च के पौधे भी अपने घर की बाड़ी में लगे साल अर्थात सरई के पेड़ों पर लगाए थे। संतु राम मरकाम याद करते हुए बताते हैं कि लगभग 7 सात साल पहले डॉ राजाराम त्रिपाठी ने उन्हें काली मिर्च के 30 पौधे बरसात के दिनों में लगाने हेतु निशुल्क दिए थे, तथा लगाने का तरीका भी बताया था। जिसे उन्होंने अपने घर की बाड़ी में पहले से ही लगे हुए साल के पेड़ों की तनों के निकट रोप दिया। पौधे भली-भांति लग भी गए ,किंतु गर्मियों में साल (सरई) के सूखे पत्तों के नीचे आग लग जाने के कारण कुछ पौधे मर गए, फिर भी 20 पौधे बच गए । जिनमें पिछले 3- 4 वर्षों से काली मिर्च के फल आ रहे हैं । इन 20 काली-मिर्च के पौधों से उन्हें इस साल कुल 40 किलो काली मिर्च प्राप्त हुई है।जिसे कि उन्होने मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथ मिलकर ₹500 प्रति किलो की दर से विक्रय किया ।₹20000 बीस हजार का पूरा भुगतान भी उन्हें तत्काल नगद प्राप्त हो गया।बिना किसी खर्चे के एवं बिना किसी विशेष मेहनत मशक्कत के इस ₹20000 बीस हजार की अतिरिक्त कमाई से मुझे तथा मेरे परिवार वालों को भी बड़ी प्रसन्नता हुई । हम लोगों की काली मिर्च की खेती और इसकी कमाई को देखकर आसपास के 11 गांव के किसानों ने यह तय किया कि इस वर्ष वह लोग भी वह सभी अपने खेतों में पहले से ही स्थित साल, महुआ, आम आदि के खड़े पेड़ों पर काली मिर्च की बेल लगाएंगे। संतु राम जी कहते हैं कि इस सिलसिले में हम लोगों ने गांवों में लगातार बैठकें की और अब आसपास के 11 गांवों के प्रगतिशील किसानों ने इस वर्ष काली मिर्च तथा अन्य औषधीय फसल लगाने का निर्णय लिया है। आज फार्म पर आकर हम ने काली मिर्ची खड़ी फसल को देखकर इसके अन्य व्यावहारिक पहलू को भी समझा है। साथ ही हमने शक्कर से 25 गुना मीठी पत्तियों वाली स्टीविया , सफेद मूसली ,ड्रैगन फ्रूट की लगी हुई फसल देखी साथ ही हमने सात आठ साल में ही तैयार होने वाले और सागौन से भी बढ़िया लकड़ी देने वाले किसानों के लिए बहुत ही अच्छा मुनाफा देने वाले ऑस्ट्रेलियन टीक का तैयार प्लांटेशन भी देखा। यहां सब कुछ जैविक पद्धति से हो रहा है इसे देखकर हमारा भी आप विश्वास बढ़ा है अब हम सब भी जैविक खेती को ही अपना आएंगे।

हमने खुद अपनी आंखों से देखा किऑस्ट्रेलियन टीक के एक एक पेड़ पर 70- 80 फीट ऊंचाई तक लगभग 15 से 20 किलो तक काली मिर्ची लदी हुई है, और इन आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों की गोलाई हमने अपने हाथों से नापी है जोकि औसतन 5 फीट के आसपास है। फार्म भ्रमण तथा प्रशिक्षण के उपरांत सभी किसानों का हर्बल चाय स्वागत किया गया।

मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के जैविक खेती के सफल मॉडल को देखकर सभी किसानों का जैविक खेती के प्रति विश्वास बढ़ा है। कार्यक्रम में 61इकसठ किसानों ने भविष्य में अब जैविक खेती ही करने का संकल्प भी लिया।

फार्म भ्रमण प्रशिक्षण हेतु पधारे सभी किसानों को मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग त्रिपाठी, बलई चक्रवर्ती, श्री शंकर नाग , कृष्णा नेताम, कृष्ण कुमार पटेरिया, संपदा समाजसेवी समूह के अध्यक्ष जसमति नेताम के द्वारा जैविक खेती तथा का काली मिर्च ऑस्ट्रेलिया की आदि की खेती की के पर ही व्यावहारिक जानकारी तथा प्रशिक्षण दिया गया, और सभी किसानों को आगे भी निरंतर मार्गदर्शन और 25 प्रशिक्षण देने हेतु आश्वस्त किया।

कार्यक्रम के अंत में मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के संस्थापक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने 11- ग्यारह गांवों से आए सभी आदिवासी किसानों को जैविक खेती की शपथ दिलाई।

। इस संदर्भ में आगे की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि इसकी खेती के इच्छुक किसानों को इसे लगाने से लेकर इसकी मार्केटिंग तक पूरा सहयोग किया जाता है। आगे उन्होंने कहा कि बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है यहां इसकी सफलता की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं, यह योजना बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के किसानों की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है। हम भरसक कोशिश कर रहे हैं किंतु निजी प्रयासों की अपनी परेशानियां और सीमाएं होती हैं। सरकार अगर चाहे तो उसके लिए यह गेमचेंजर बन सकती है किंतु इसके लिए पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर समुचित व्यावहारिक कार्य योजना बनाने,तथा उसके क्रियान्वयन में हर स्तर पर भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक लगाना बहुत जरूरी है। भ्रष्टाचार अगर दाल में नमक की भांति हो, वहां तक तो ठीक है, पर दाल में अगर दाल ही गायब हो और केवल नमक ही नमक हो तो भला कैसे काम चलेगा?
कार्यक्रम में मुख्य रूप से जानो बाई मरकाम संतु राम मरकाम, राजकुमारी मरकाम, कंवल सिंह ,मनोज मरकाम,तेजश कुमार,सम्पत मरकाम,रामूराम मरकाम ,गंगाराम मरकाम,जयराम ,लछिमनाथ,पीलाराम शोरी ,कैलाश मरकाम,शिवलाल मरकाम,नरसिंह मरकाम,सोपसिंह मरकाम,जितेन्द्र मरकाम ,शंकर ,दयाराम मण्डावी ,दयाराम,चंदन सिंह ,लच्छ राम महावते ,मनीराम मरकाम ,बेवरूराम आदि प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया।