विनोद सिन्हा
विकल्प की राजनीति का राग अलापने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपने किए गए वादों से मुकरने में माहिर है। फ्री की राजनीति करने वाले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता में अपना स्थान बना लिया। हालिया नगर निगम चुनाव में सबसे बड़ा दल बनकर सामने आए। अब जब दिल्ली के महापौर की प्रक्रिया जारी है, तो वो विपश्यना करने के नाम पर दिल्ली से बाहर छुट्टी मनाने निकल गए। यह पहली बार नहीं है, जब वो दिल्ली में अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराते दिखे हैं।
दिल्ली की जिस जनता को फ्री में पानी और बिजली कुछ दिनों तक मिला, अब उनके घर भी इसका बिल आने लगा है। अनाधिकृत कॉलोनी में पानी की आपूर्ति बाधित है। कुछ इलाकों में पानी आता है, लेकिन वह गंदगी और दुर्गंध से भरा हुआ है। कूड़े के पहाड़ को हटाने के नाम पर निकाय चुनाव में खूब पोस्टरबाजी हुई, लेकिन यह नारा भी उनका चुनावी ही लग रहा है। करीब तीन सप्ताह का समय बीतने को है, इस काम की शुरुआत नहीं हुई है। हां, उनके सिपहसालार जरूर मीडिया से बात करते समय सेखी बघारते हैं। आप नेताओं ने दिल्ली के लोगों को कैंपेन के दौरान ये समझाने की कोशिश की कि अगर पार्टी को नगर निगम में बहुमत मिली तो सारे काम बिलकुल वैसे ही होंगे जैसे दिल्ली सरकार में हो रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की टीम जगह जगह पहुंच कर बता रही थी कि जिस तरह दिल्ली के लोगों के लिए बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल, यात्रा, तीर्थ यात्रा और तमाम इंतजाम और सुविधायें मुहैया करायी जा रही हैं, नगर निगम में भी पार्टी के सत्ता में आ जाने के बाद ऐसी सुविधाओं को और विस्तार मिलेगा।
अरविंद केजरीवाल खुद भी एक सवाल से जूझ ही रहे होंगे कि दिल्ली विधानसभा से बाहर की चुनावी राजनीति में वो हर बार फेल क्यों हो जाते हैं। नगर निगम चुनाव में कुछ खास तो नहीं ही कर पाते, आम चुनाव में तो कांग्रेस भी पछाड़ देती है – और कई सीटों पर तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है। मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल ने कभी भी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन नहीं किया। भाजपा शासित केंद्र सरकार के साथ नूरा-कुश्ती भी इसीलिए करते हैं कि ताकि अपनी नाकामी छिपाते हुए जनता को गुमराह कर सकें। दिल्ली वासियों को राशन चाहिए तो केजरीवाल ने इस पर भी भाजपा के साथ आरोप प्रत्यारोप की सियासत शुरू कर दी है। हैरानी की बात यह कि केजरीवाल घर घर राशन पहुंचाने के लिए तो उतावले हाे रहे हैं जबकि उस अनाज की कोई सुध ही नहीं ले रहे जो दक्षिणी दिल्ली के एक स्कूल में पड़ा पड़ा सड़ गया।
अब तक अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली की व्यवस्था को बेहतर न कर पाने के पीछे केंद्र और स्थानीय नगर निगम से उचित सहयोग न मिल पाने का कारण बताने का अवसर होता था। लेकिन नगर निगम में काबिज होने के बाद उनके पास ऐसा कोई अवसर नहीं होगा। दिल्ली में वायु प्रदूषण को कंट्रोल न कर पाने पर केजरीवाल तत्कालीन पंजाब सरकार के द्वारा किसानों को पराली जलाने से न रोक पाने को जिम्मेदार ठहराते थे। लेकिन जब उनके हाथ पंजाब की सत्ता भी आ गई, उन्हें दिल्ली के प्रदूषण से निबटने में केंद्र की बाधा दिखाई पड़ने लगी। लेकिन चूंकि दिल्ली की साफ-सफाई की जिम्मेदारी पूरी तरह नगर निगम और दिल्ली सरकार के बीच का मामला है, सम्भवतः अब उनके पास किसी दूसरे को जिम्मेदार ठहराने का कोई अवस्था उपलब्ध नहीं होगा।
अब दिल्ली नगर निगम पर आम आदमी पार्टी के मेयर का कब्जा होगा। लेकिन इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल के सिर पर कांटों भरा ताज भी सज गया है। उन्हें 2025 के अगले विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के ‘कूड़े के पहाड़’ को खत्म करने या उसे छोटा करने की बड़ी चुनौती से जूझना पड़ेगा। केजरीवाल सरकार के कामकाज में दिल्ली की स्थिति लगातार खराब हुई है। सरकार ने इस दौरान कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जिसके ऊपर दिल्ली के लोग गर्व कर सकें। केजरीवाल सरकार ने लोगों से वायदा किया था कि वे लोगों को मुफ्त वाई-फाई, लाखों सीसीटीवी और अन्य सुविधाएं प्रदान करेंगे। लेकिन दिल्ली की वर्तमान स्थिति यह है कि लोग वाई-फाई कनेक्शन का इंतजार कर रहे हैं।
पूरे देश ने देखा है कि अरविंद केजरीवाल सरकार कोरोना की स्थिति संभालने में असफल हो रही थी और इस कारण केंद्र सरकार को दखल देना पड़ा। अगर केंद्र सरकार ने दखल कर दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाओं को न बढ़ाया होता तो महामारी में दिल्ली को बड़ा संकट झेलना पड़ सकता था। ऐसे में दिल्ली सरकार को अपनी उस असफलता को स्वीकार करना चाहिए। अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि यमुना जल्दी ही साफ-सुधरी हो जाएगी और लोग यहां पर यमुना आरती का दर्शन करने आएंगे। लेकिन अब केजरीवाल सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने सरकार के उसी वायदेे को दुहराया है और अगले तीन साल में यमुना साफ करने की बात कही है। मंत्री का यह बयान ही साबित करता है कि अरविंद केजरीवाल सरकार अपना पुराना वायदा निभाने में नाकाम रही है। अरविंद सरकार को कम से कम यमुना के मामले पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
प्रदूषण दिल्ली की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। इस सर्दी दिल्ली के कई लोगों को सांस संबंधी बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। खासतौर पर उन लोगों को जो अस्थमा के मरीज हैं या जो हाल ही में कोरोना संक्रमण से उबरे हैं। लोकल सर्कल के सर्वे के अनुसार दिल्ली-एनसीआर के 44 फीसद लोगों ने माना कि उन्हें प्रदूषण से संबंधित बीमारियां जैसे खांसी, जकड़न और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हुईं और उन्हें डॉक्टर के पास या अस्पताल जाकर इलाज कराना पड़ा। पिछले दो वर्षों में केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में भी फसड्डी सी साबित हुई है। दिल्ली के सिर्फ 31 फीसद लोग ही मानते हैं कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अच्छा कोशिश की है, जबकि 45 फीसद लोग दिल्ली सरकार की कोशिशों को खराब या बदतर मानते हैं। आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव लड़ी है और पिछले विधानसभा चुनाव में पारदर्शिता पार्टा का प्रमुख हथियार भी रहा।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)