
दीपक कुमार त्यागी
“इस वर्ष भी करोड़ों शिवभक्त कांवड़िए अपने आराध्य देवाधिदेव भगवान महादेव का जलाभिषेक करने के लिए बेहद आतुर हैं। कांवड़ यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के लिए पुलिस-प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शिवभक्त कांवड़ियों के बीच छिपे हुए चंद हुड़दंगियों की पहचान कर उन पर कानून का सख्त शिकंजा किस प्रकार से कसे। हालांकि कांवड़ यात्रा में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश का पुलिस-प्रशासन अपने लंबे अनुभव के दम पर इन चंद हुड़दंगियों की पहचान कर उनके खिलाफ जेल भेजने जैसी सख्त कार्रवाई निरंतर करने का कार्य करते हुए, शिवभक्त कांवड़ियों की सुरक्षा व अन्य व्यवस्थाओं का पूरा ध्यान रखने का कार्य बखूबी कर रहा है।”
हर वर्ष की तरह ही इस बार भी पवित्र श्रावण मास में देवाधिदेव भगवान महादेव के करोड़ों शिव भक्त को शांतिपूर्ण व भक्तिमय वातावरण में सकुशल कांवड़ यात्रा करवाना एक चुनौती पूर्ण कार्य है। जिसको संपन्न करवाने के लिए उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान का पुलिस-प्रशासन दिन-रात एक करके अपने पूरे दल-बल के साथ धरातल पर व्यवस्था बनाने में जुटा हुआ है। पुलिस-प्रशासन को कांवड़ियों की संख्या में इस वर्ष भारी इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है। ऐसी स्थिति में विशेषकर उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के पुलिस-प्रशासन के ऊपर पर एक तरफ तो जहां कांवड़ियों की चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था करने कि अहम जिम्मेदारी है, वहीं दूसरी तरफ इन करोड़ों शिवभक्त कांवड़ियों के लिए समुचित व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी है, जिसमें दोनों राज्यों का शासन व पुलिस-प्रशासन दिन-रात जुटा हुआ है।
वैसे देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों से वर्ष दर वर्ष कांवड़ लाने वाले शिवभक्तों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों पर पुलिस-प्रशासन के द्वारा जिस तरह से उत्तर प्रदेश में शिवभक्त कांवड़ियों का सेवाभाव के साथ पलक-पांवड़े बिछाकर के स्वागत किया जाता है और कांवड़ियों को किसी प्रकार की कोई असुविधा ना हो इसका माइक्रो लेवल पर विशेष ध्यान रखा जाता है, इस स्थिति ने कांवड़ियों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा करने का कार्य कर दिया है। भारी-भीड़ की स्थिति में कांवड़ियों की सुरक्षा के लिए एक फुलप्रूफ, चाक-चौबंद व्यवस्था करना बेहद चुनौती पूर्ण कार्य बन गया है। कांवड़ यात्रा में विशेषकर के उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पुलिस-प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि लाखों शिवभक्त कांवड़ियों के बीच छिपे हुए चंद अराजकता फैलाने की मंशा रखने वाले हुड़दंगियों की आखिरकार वह कैसे पहचान करें। हालांकि उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पुलिस-प्रशासन के पास भक्तों की इस तरह की भारी भीड़ को नियंत्रण करने व उनके लिए समुचित व्यवस्था करने का दशकों पुराना लंबा अनुभव है, जिस अनुभव के ही बलबूते पर ही इन दोनों राज्यों का सिस्टम हर वर्ष ऐसे मेलों में उत्पन्न विकट से विकट परिस्थितियों से भी आसानी से निपट लेता है।
लेकिन इस बार शुरूआती दिनों से ही कांवड़ियों की भारी भीड़ उमड़ रही है, शुरू के दिनों की बात करें तो प्रशासन के द्वारा 10 जुलाई से हरिद्वार में जल लेकर अपने गंतव्य स्थल पर जाने वाले कांवड़ियों की गिनती शुरू की गई थी। प्रशासन के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 10 जुलाई से लेकर 15 जुलाई मंगलवार की शाम 6:00 बजे तक 80 लाख 90 हजार कांवड़िए गंगा जल लेकर के अपने गंतव्य की तरफ़ वापस चल दिए, कांवड़ियों की यह संख्या प्रतिदिन बहुत तेज़ी से बढ़ती जा रही है, वहीं साथ ही चंद हुड़दंगियों के द्वारा बवाल भी किया जाने लगा है। जिसके चलते ही उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में शुरूआती दौर के दिनों में ही कांवड़ मार्ग के अधिकांश रास्तों को वन-वे तक करना पड़ गया है। हांलांकि इससे आम लोगों को काफ़ी असुविधा भी हो रही है। लेकिन पुलिस-प्रशासन क्या करें देश में जिस तरह का माहौल चल रहा है, उस स्थिति में कांवड़ियों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के लिए यह एक बेहद आवश्यक कदम है। इसलिए ही गंगा से लेकर मंदिर व कांवड़ यात्रा मार्ग पर अब चप्पे-चप्पे पर होमगार्ड, ट्रेफिक पुलिस, पुलिस, पीएसी, आरएएफ, एटीएस आदि का सख्त पहरा नज़र आने लगा है। घाटों पर एनडीआरएफ व गोताखोरों की टीम दल-बल के साथ तैनात हैं, कांवड़ यात्रा मार्ग पर जगह-जगह अग्निशमन विभाग के जांबाज भी तैनात हैं। वहीं पुलिस-प्रशासन के आला अधिकारी स्वयं पूरी टीम के साथ सड़कों पर उतरे हुए हैं और एक एक व्यवस्था को खुद परखने का कार्य कर रहे हैं।
क्योंकि इस बार शुरूआती दौर से ही कांवड़ यात्रा में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुए विवादों व तोड़फोड़ की कुछ घटनाओं ने पुलिस-प्रशासन को सोचने पर मज़बूर कर दिया है। क्योंकि इस बार विवाद के अधिकांश मामलों को बिना वजह की ही बात के बतंगड़ बनाकर के तूल देने के प्रयास किए गए, जिन्हें पुलिस-प्रशासन ने तत्काल ही समझदारी से सूझबूझ दिखाते हुए शांत करवाने का कार्य करते हुए, हुड़दंगियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही करते हुए माहौल को सामान्य करने का कार्य बखूबी किया है। विवादों की इन चंद घटनाओं के चलते ही कांवड़ियों की सुरक्षा व्यवस्था में लगा हुआ पुलिस-प्रशासन का पूरा सिस्टम अचानक से हाई अलर्ट मोड पर चला गया है, सरकार व सिस्टम कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह की लापरवाही व कोई भी चूक बिल्कुल भी नहीं चाहता है।
उदाहरणार्थ कांवड़ियों की सुरक्षा की बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सख्ती का आलम यह हो गया है कि गाजियाबाद तक में भी 14 जुलाई से ही रास्ते वन-वे या बंद कर दिए है। हालांकि रास्ते वन-वे होने से क्षेत्र के आम लोगों को जबरदस्त असुविधा हो रही है। लेकिन अलग कांवड़ यात्रा मार्ग ना होने से पुलिस-प्रशासन के पास अन्य कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। कांवड़ियों की सुरक्षा व्यवस्था को देखें तो इस बार उत्तराखंड में कांवड़ियों के जल भरने के सभी स्थान गोमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार आदि से लेकर के उत्तर प्रदेश तक में भी पूरे कांवड़ यात्रा मार्ग पर सीसीटीवी कैमरों व चप्पे-चप्पे पर पुलिस व अर्द्ध सैनिक बलों के सुरक्षाकर्मियों का जाल बिछा दिया गया है, कंट्रोल रूम में बैठकर सुरक्षा विशेषज्ञ चप्पे-चप्पे पर निगरानी रख रहे हैं।
कांवड़ यात्रा में सुरक्षा व्यवस्था का आलम देंखे तो गाजियाबाद जनपद में ही, पुलिस कमिश्नर जे. रविंद्र गौड़, जिलाधिकारी दीपक मीणा, नगरायुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक, मुख्य अग्निशमन अधिकारी राहुल पाल व अन्य सभी आवश्यक विभागों के मुखिया अपनी पूरी टीम के साथ चौबीसों घंटे मुस्तैद खड़े हुए नज़र आते हैं। कांवड़ियों की सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर पुलिस कमिश्नर जे. रविंद्र गौड़ ने जनपद के करीब 80 किलोमीटर लंबे कांवड़ मार्ग को 124 बीटों में विभाजित कर अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने चार स्थाई कंट्रोल रूम, एक मुख्य कंट्रोल रूम, दो सब कंट्रोल रूम और आठ स्टैटिक कंट्रोल रूम बनाए हैं। कांवड़ मार्ग को 1657 सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में रखा गया है। 71 बैरियर लगाए गए हैं। 33 सार्वजनिक घोषणा प्रणाली बनाई गई है। 1560 पुलिस स्वयंसेवक व 10587 शांति समिति के सदस्य तैनात हैं।
पीआरवी एवं चीता मोबाइलों को कांवड़ मार्ग में और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर लगाया गया है। घाटों पर एनडीआरएफ की टीम तैनात की गयी हैं। दमकल की 12 गाड़ियां विभिन्न स्थानों पर तैनात हैं, कांवड़ यात्रा मार्ग पर लगें शिविरों की अनुमति देते समय ही आग से बचाव हेतु अग्निरोधी यंत्र, रेत की बाल्टी एवं पानी का ड्रम रखवाने के लिए शिविर आयोजकों को निर्देशित किया गया है। कांवड़ शिविरों में विद्युत सुरक्षा उपायों के किये जाने का निर्देश दिए गए हैं। कांवड़ मार्ग के निकट कोई नया बखेड़ा खड़ा ना हो इसके लिए मीट, मछली और अंडा आदि की दुकानों को बंद करवा दिया गया है। किसी प्रकार की कोई दुर्घटना ना घट जाये इसलिए कांवड़ की ऊंचाई 10 फुट एवं चौड़ाई 12 फुट तक रखने के निर्देश दिए गए है। डाक कांवड़ में मानकों के अनुसार म्यूजिक सिस्टम पर 75 डेसीबेल तक का ही शोर मान्य है। यहां आपको बता दें कि इसी तरह की चाक-चौबंद व्यवस्था उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के पूरे कांवड़ यात्रा मार्ग के सभी जनपदों में की गई है।
इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था के बाद भी पुलिस-प्रशासन के सामने कांवड़ यात्रा मार्ग पर आने वाले दिनों किसी भी तरह से माहौल खराब करने वाले लोगों से निपटने की बड़ी चुनौती खड़ी है। यात्रा के दौरान कांवड़ छूने, कांवड़ के वाहनों से टकराने, छुटपुट बातों का बतंगड़ ना बने उससे निपटने की चुनौती है। वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से देश में छोटे-बड़े की शर्म, भाईचारा और सामाजिक समरसता, आपसी सहयोग का भाव दिन-प्रतिदिन तेज़ी से कम होता जा रहा है, कांवड़ यात्रा में इसका प्रभाव अब स्पष्ट रूप से नज़र आने लगा है, जिसके चलते ही अब बिना सिर-पैर के विवाद तक भी कांवड़ यात्रा में चंद हुड़दंगी पैदा करने लगे हैं। कांवड़ यात्रा को सकुशल संपन्न कराने को लेकर पुलिस-प्रशासन जबरदस्त ढंग से सक्रिय है। सुरक्षा के मद्देनजर नियमित रूप से डॉग स्कवायड, बम निरोधक दस्ता और लोकल इंटेलीजेंस की टीम के साथ पुलिस चेकिंग अभियान चलाते हुए, कांवड़ यात्रा को सकुशल संपन्न करवाने में दिन-रात व्यस्त हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारे आराध्य देवाधिदेव भगवान महादेव के आशीर्वाद से कांवड़ यात्रा दिव्य अलौकिक बन कर सकुशल संपन्न होगी।