रविवार दिल्ली नेटवर्क
दरभंगा : संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को ‘याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्यवहार विचार’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय की अध्यक्षता में मुख्यालय के दरबार हॉल में आयोजित इस संगोष्ठी में पहली बार उत्तर एवं दक्षिण भारत के विद्वानों का समागम हुआ और व्यवहार विचार पर जमकर व्याख्यान भी सुनने को मिला। संस्कृत विश्वविद्यालय एवम सदविद्या परिपालन ट्रस्ट, चेन्नई के सामूहिक सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रो. पांडेय ने कहा कि मिथिला-कांची दोनों न्याय की भूमि रही है। दोनों के न्याय शास्त्रों में भी एकरूपता है। इसलिए विभिन्न मुद्दे पर उत्तर व दक्षिण के विद्वानों का अब यहां समागम होते रहेगा। आगे उन्होंने कहा कि न्याय शास्त्रों में धर्मशास्त्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। न्याय शास्त्र व धर्म शास्त्र के प्रयोग से विधि व्यवस्था सुदृढ़ होती है। उन्होंने कहा कि व्यवहार में दंड की व्यवस्था होनी चाहिए। वहीं, उद्घाटन भाषण देते हुए प्रोवीसी प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि न्यायिक प्रकिया में संशोधन की जरूरत है। पौराणिक व्यवस्था में बदलाव की दरकार है। वस्तु स्थिति स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत गर्म मुल्क है लेकिन व्यवस्था के तहत अधिवक्ताओं को गर्मी के मौसम में भी काला कोट व गाउन पहनना पड़ता है जो शारीरिक व मानसिक रूप से कष्टकारी होता है। हमारे न्याय शास्त्रों में वर्णित व्यवस्था को भी इस मामले में लागू किया जा सकता है। याज्ञवल्क्य स्मृति का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि न्याय पाने की व दिलाने की एक समय सीमा निर्धारित होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि याज्ञवल्क्य स्मृति से ही व्यवहार शब्द लिया गया है जिसे आज न्यायालय के लिए भी उपयोग किया जाता है। विषय प्रवर्तन करते हुए व्याकरण के विद्वान प्रो. सुरेश्वर झा ने भी याज्ञवल्क्य स्मृति के विभिन्न पक्षों का विस्तार से वर्णन किया।
पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि दरबार हाल में आयोजित चार सत्रों की संगोष्ठी के आयोजक संस्कृत विश्वविद्यालय के दो दो पूर्व कुलपति प्रो0 शशिनाथ झा एवं प्रो0 रामचन्द्र झा, सदविद्या परिपालन ट्रस्ट के सदस्य आईआईटियन व धर्मशास्त्र के विद्वान श्रीकृष्णन् वेङ्कटरामन व ए. आर. मुकुन्दन, श्रीचन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती विश्वमहाविद्यालय, इन्थॉर, तमिलनाडु के संस्कृत एवं भारतीय संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. आर. नवीन ने सम्बोधित किया। सभी वक्ताओं ने संस्कृत में ही याज्ञवल्क्य स्मृति पर विचार व्यक्त किया और विस्तार से बताया कि किस तरह आज भी उनका न्याय व व्यवहार दर्शन प्रासंगिक है। इसके अलावे दरभंगा व्यवहार न्यायालय के अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम डॉ रमाकांत शर्मा ने भी संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि याज्ञवल्क्य स्मृति व्यवहार ने सम्पूर्ण देश को खासकर न्यायिक क्षेत्र में सभी को एक सूत्र में बांध कर रखा है। याज्ञवल्क्य स्मृति भारतीय विधि शास्त्र की रीढ़ है। न्याय में उनका दर्शन आज भी सापेक्ष्य है। अन्य आमंत्रित विद्वानों में शामिल सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वराणसी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजीव रंजन सिंह, बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व संस्कृत विभाग अध्यक्ष प्रो. इन्द्रनाथ झा समेत संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा के पूर्व धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीपतित्रिपाठी ने भी याज्ञवल्क्य स्मृति व धर्मशास्त्र के विभिन्न सूत्रों व सूक्तों पर वृहत चर्चा की। धर्म शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो0 दिलीप कुमार झा के संयोजकत्व में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का पग व चादर से कुलपति प्रो0 पांडेय ने सभी का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कुलसचिव प्रो0 ब्रजेशपति त्रिपाठी ने कौटिल्य व विद्यापति के दर्शन पर भी कार्यक्रम आयोजित करने की वकालत की।