प्रतिभा पलायन को रोकने का बड़ा मौका

A great opportunity to stop brain drain

प्रो. महेश चंद गुप्ता

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी है। पहले जहां यह फीस लगभग 80 हजार रुपये थी, वहीं अब इसे 80 लाख रुपये तक बढ़ा दिया गया है। स्वाभाविक है कि अब पहले जितनी संख्या में भारतीय युवा अमेरिका नहीं जा पाएंगे। इस फैसले से दुनिया भर में उथल-पुथल मची है, जिसका फायदा उठाने की कोशिश चीन कर रहा है। उसने ‘के वीजा’ नामक नई श्रेणी की घोषणा की है जिसके तहत वह दुनिया भर के युवा वैज्ञानिकों और तकनीकी प्रोफेशनल्स को अपने यहां आकर्षित करना चाहता है। यह वीजा शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान तकनीक और व्यवसाय के क्षेत्र में अवसर उपलब्ध कराएगा।

भारत के लिहाज से यह स्थिति एक बड़ी चुनौती और अवसर दोनों लेकर आई है। चुनौती इसलिए क्योंकि अमेरिकी दरवाजे बंद होने के बाद चीन नए अवसर देकर हमारी प्रतिभाओं को अपने यहां खींच सकता है। अवसर इसलिए है क्योंकि यह भारत के लिए प्रतिभा पलायन रोकने का सुनहरा मौका है। अब जरूरत इस बात की है कि सरकार, उद्योग जगत और कॉर्पोरेट सेक्टर मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करें जहां हमारे युवा देश में रहकर ही अपने सपनों को साकार कर सकें। भारत हमेशा से ही शिक्षा और प्रतिभा के मामले में समृद्ध रहा है पर प्रतिभा पलायन हमारी बड़ी समस्या है। हर साल लाखों छात्र-छात्राएं इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट और रिसर्च के क्षेत्र में पढ़ाई पूरी करते हैं लेकिन अफसोस है कि उनमें से बड़ी संख्या में युवा विदेशों का रुख कर लेते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में शोध के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं, रोजगार के अवसर सीमित हैं और जो अवसर उपलब्ध हैं, उनमें योग्य प्रतिभा को सम्मान और सुरक्षा का अभाव है।

डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और आईटी प्रोफेशनल विदेश जाकर वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं जबकि उनकी प्रतिभा का लाभ भारत को मिलना चाहिए। एक तरफ हम युवाओं की शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च करते हैं, दूसरी ओर वे अवसरों की कमी के कारण देश छोड़ जाते हैं। यह भारत के विकास के लिए बड़ी हानि है। ट्रंप का वीजा फीस वृद्धि का कदम दुनिया के कई देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है लेकिन मुझे लगता है कि भारत को इसे सकारात्मक रूप में देखना चाहिए। जब अमेरिका में वीजा इतना महंगा हो गया है कि आम युवा वहां नहीं जा पाएंगे तो इससे स्वाभाविक रूप से प्रतिभा पलायन पर अंकुश लगेगा। यह स्थिति भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या इस मौके का उपयोग भारत कर पाएगा? अगर सरकार और उद्योग जगत ने युवाओं के लिए बेहतर माहौल तैयार किया तो वे भारत में ही रहकर काम करना पसंद करेंगे लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह संभावना है कि निराश युवा चीन की ओर आकर्षित हो जाएं।

चीन ने हालात को भांपते हुए तेजी से ‘के वीजा’ का विकल्प प्रस्तुत किया है। इस वीजा के माध्यम से वह दुनिया भर की प्रतिभाओं को अपने यहां शिक्षा, रिसर्च और बिजनेस में अवसर देने की योजना बना रहा है। ऐसा करके वह वैश्विक विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नेतृत्व के अपने लक्ष्य को पूरा करने की तमन्ना रखता है। यदि भारतीय युवा अमेरिका के बजाय चीन का रुख करने लगे तो यह हमारे लिए और भी गंभीर स्थिति होगी। क्योंकि एक तरफ तो भारत अपनी ही प्रतिभा से वंचित रह जाएगा और दूसरी ओर चीन हमारी ही ताकत का उपयोग करके आगे निकलने की कोशिश करेगा। ऐसे समय में हमें गहरा आत्म चिंतन की जरूरत है। इस समय यह बड़ा सवाल है कि क्या हमारे युवा विदेशों में ही अपनी क्षमता साबित करेंगे या फिर देश में रहकर भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे? इसका उत्तर देश की नीतियों और कार्यप्रणालियों पर निर्भर करता है।
वर्तमान में विश्व की टॉप 100 कार्पोरेट कंपनियों में उच्च पदों पर हमारे युवा हैं, जो उनके कामकाज को पूरे विश्व में फैलाने में सहायक हो रहे हैं। सुंदर पिचई (गूगल), सत्य नडेला (माइक्रोसॉफ्ट), अजय बंगा (विश्व बैंक), अरविंद कृष्णा (आईबीएम) और इंद्रा नूई (पेप्सीको) जैसे दिग्गज भारतीय मूल के लोगों ने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है। उनकी सफलता यह साबित करती है कि भारतीय मस्तिष्क वैश्विक स्तर पर किसी से कम नहीं है। सवाल यह है कि अगर प्रतिभावान युवाओं को देश में ही जरूरत अवसर और वातावरण मिल जाता तो क्या वे यहीं रहकर भारत को विश्व का नेतृत्व दिला सकते थे? इस सवाल का जवाब निश्चित रूप से हाँ में है।

देश के युवाओं को पिछले सत्तर साल में जो आधारभूत ढांचा, रिसर्च एंड डवलपमेंट की सुविधाएं, वेतन और अन्य सुविधाएं देनी चाहिए थीं, अगर वह दी गईं होतीं तो प्रतिभा पलायन की स्थिति न बनती।। हमारा देश तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन डिजिटल और तकनीकी क्षेत्र में हम अब भी कमजोर हैं। और तो और, हमारे पास अपना भरोसेमंद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं है। हम ई-मेल सेवा जैसी बुनियादी सुविधा के लिए भी विदेशी कंपनियों पर निर्भर हैं। हमें कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और चिप तकनीक में आत्म निर्भरता हासिल नहीं हुई है।आज भी हम रक्षा हथियारों व रक्षा उपकरणों, यात्री विमानों, लड़ाकू विमानों आदि के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। कम्प्यूटर व डिजिटली टेक्नोलॉजी, उच्च शिक्ष, डेटा प्रबंधन, अकाउंटिंग एवं फायनेंस मैनेजमेंट, ऑडिट एवं कन्सलटेंसी, रिसर्च टेक्नोलॉजी आदि पर हम विश्व टॉप संस्थानों पर पूर्णतया निर्भर हैं। हमें इस स्थिति को तीव्रगति से बदलना होगा। अन्यथा, हम विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे।

अपार युवा प्रतिभा मौजूद होने के बावजूद यह स्थिति चिंताजनक है। अगर हमारे युवाओं को आवश्यक संसाधन, शोध की सुविधाएं और आर्थिक सहयोग दिया जाए तो वे देश को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बना सकते हैं। इस मामले में सरकार और समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्रतिभा पलायन रोकने के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। सरकार को प्रतिभाशाली युवाओं को चिन्हित कर उनकी जरूरतों के अनुसार शोध, स्टार्टअप और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। औद्योगिक समूह रिसर्च और इनोवेशन में निवेश करें जिससे युवाओं को विश्व स्तरीय मंच मिले। कॉर्पोरेट सेक्टर को देश के भीतर ही आकर्षक वेतन और कार्य संस्कृति प्रदान करने का दायित्व उठाना चाहिए।

आज समय ने करवट ली है। प्रकृति भारत को परम वैभव पर देखना चाहती है। इसलिए भारत के सामने अनेक चुनौतियां आ रही हैं। अब समय इन चुनौतियों को अवसर में बदलने का है। कुल मिलाकर, अमेरिकी कदम भारत के लिए सकारात्मक है। इससे हमें ऐसे कदम उठाने की प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम अपनी प्रतिभा को यहीं रोकें और उन्हें ऐसे अवसर दें जिससे वे विदेश जाने की बजाय देश में ही काम करें। अगर हम अपने युवाओं को यहीं अवसर देंगे तो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। तकनीकी और डिजिटल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता संभव होगी। मेड इन इंडिया का सपना साकार होगा। अगर सरकार, उद्योग जगत और समाज इस दिशा में मिलकर काम करें तो भारत अपनी प्रतिभा के बल पर न केवल आत्म निर्भर बन सकता है बल्कि दुनिया को नई दिशा भी दे सकता है। तेजी से बदलते विश्व परिदृश्य में हमारे 145 करोड़ नागरिकों वाले देश का हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना अपरिहार्य है।
(लेखक विख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे हैं।)