आदिवासियों का एक कुंभ मेला… जो हर साल दक्षिणी राजस्थान के बेणेश्वर में आयोजित होता है!!

A Kumbh Mela of tribals… which is organized every year in Beneshwar, Southern Rajasthan!!

बेणेश्वर में माघ पूर्णिमा पर वनवासियों का महाकुंभ आयोजित होता है

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल वागड़ अंचल के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों की सीमा पर स्थित बेणेश्वर धाम में सोम, माही और जाखम (विलुप्त) नदियों के त्रिवेणी संगम पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा पर आदिवासियों का विशाल कुंभ मेला लगता है। इस वर्ष जब 144 वर्षों के बाद प्रयागराज (इलाहाबाद) में भव्य महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, तो मुख्य मेला 12 फरवरी माघ पूर्णिमा पर बेणेश्वर में भरेगा। इस दृष्टि से इस बार बेणेश्वर मेले का अपना अलग महत्व होगा। यह देश का सबसे बड़ा आदिवासी मेला है जिसमें लाखों लोग पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं और अपने पारम्परिक स्नान, पूजा, अर्चना और तर्पण आदि कर्मकांडों के साथ अपने मृत परिजनों की अस्थियां भी यहीं विसर्जित करते हैं।

साबला (डूंगरपुर) में वागड़ के महान पैगम्बर मावजी महाराज के मंदिर के पास एक अनोखे टापू पर लगने वाला बेणेश्वर मेला हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ माह की शुक्ल एकादशी को शुरू होता है। बेणेश्वर मेला माही और सोम नदियों द्वारा निर्मित डेल्टा में लगता है। बेणेश्वर नाम यहां बने शिव मंदिर में स्थित पवित्र शिव लिंग से लिया गया है। बेणेश्वर का अर्थ ‘डेल्टा का स्वामी’ भी माना जाता है। किवदंती है कि नवाटापरा गांव की एक गाय अपने थनों से बहते दूध से इस शिव लिंग पर प्रतिदिन भगवान का दुग्धाभिषेक करती थी। गाय का मालिक हैरान होता था कि गाय के भरे हुए थन अचानक खाली कैसे हो जाते हैं? एक दिन वह गाय का पीछा करने लगा और यह देखकर दंग रह गया कि गाय अपने थनों से शिव लिंग का दुग्धाभिषेक कर रही थी। अचानक अपने मालिक को देखकर गाय घबराकर पीछे मुड़ी और भाग गई लेकिन उसके खुर से शिवलिंग टूट गया और तब से यहां टूटे हुए शिवलिंग की पूजा की जाती है। त्रिवेणी नदियों के पवित्र संगम बेणेश्वर धाम पर शिव, विष्णु और ब्रह्मा तीनों देवताओं के मंदिर हैं। यहां वाल्मीकि मंदिर भी है, जिसमें आदिवासियों की गहरी आस्था है। बेणेश्वर के तट पर निरंतर बहने वाली माही और सोम-जाखम नदियों के संगम पर आयोजित होने वाला यह मेला आदिवासियों का सबसे अनूठा मेला है। यही वजह है कि इसे ‘वनवासियों का महाकुंभ’ भी कहा जाता है।

माघ शुक्ल पूर्णिमा तक चलने वाले इस विशाल मेले में राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात से लाखों आदिवासी आते हैं। सोम और माही नदियों के पवित्र संगम पर डुबकी लगाने के बाद, आगंतुक भगवान शिव के मंदिर और आस-पास के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। यहां स्थित भगवान शिव मंदिर के पास भगवान विष्णु का भी एक मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण उस समय हुआ था जब भगवान विष्णु के अवतार मावजी ने यहां तपस्या की थी।

माघ शुक्ल पूर्णिमा तक चलने वाले इस विशाल मेले में राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात से लाखों आदिवासी आते हैं। सोम और माही नदियों के पवित्र संगम में डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालु भगवान शिव के मंदिर और आसपास के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। यहां स्थित भगवान शिव मंदिर के पास भगवान विष्णु का भी एक मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण उस समय हुआ था जब भगवान विष्णु के अवतार मावजी ने यहां तपस्या की थी।

बेणेश्वर मेले की शुरुआत माघ शुक्ल एकादशी को ध्वजारोहण के साथ होती है। बेणेश्वर मेले में हरि मंदिर, साबला के पीठाधीश्वर मावजी महाराज के 9वें उत्तराधिकारी अच्युतानंद महाराज हजारों श्रद्धालुओं के साथ जुलूस के रूप में साबला से बेणेश्वर धाम आते हैं और ध्वजारोहण के बाद बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं के साथ मेले की विभिन्न लोक रस्मों और पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं। आदिवासी भी बड़े समूहों में अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर, नाचते-गाते और अपने पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते हुए बेणेश्वर आते हैं।

बाणेश्वर मेला दरअसल तीन मेलों का संगम है। एक मेला भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें बाणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है, दूसरा मेला संत मावजी की पुत्रवधू जनकुंवर द्वारा विष्णु मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए आयोजित किया जाता है। साबला हरिमंदिर के मुख्य पुजारी विशाल जुलूस के साथ मेला स्थल पर पहुंचते हैं और नदी में डुबकी लगाते हैं। फिर लक्ष्मी नारायण मंदिर में रात में पीठाधीश्वर की आरती की जाती है और रासलीला का आयोजन किया जाता है। तीसरा मेला आदिवासियों की आस्था से जुड़ा है जिसमें वे पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते हैं, पूजा-अर्चना और तर्पण करते हैं और अपने मृत परिजनों को श्रद्धांजलि देते हैं। बेणेश्वर महा मेले के सभी दिनों में भगवान के मंदिरों में अलग-अलग तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। माघ शुक्ल पूर्णिमा को हलवा (शीरा), माघ कृष्ण प्रतिपदा को दाल-बाटी और चूरमा, द्वितीया को दाल-बाटी, तृतीया को पूरी-शीरा, चतुर्थी को दाल-रोटी, पंचमी को मोदक, दाल-बाटी आदि का भोग लगाया जाता है। मेले में हजारों आदिवासी एकत्रित होते हैं और मावजी महाराज की आगम वाणी सुनते हैं, भजन गाते हैं और अगले वर्ष के लिए समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

बेणेश्वर धाम में माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर दर्शनार्थी अपने मृत परिजनों की मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हुए उनकी अस्थियों को संगम तीर्थ में विसर्जित करते हैं। इस मेले में आदिवासी पंडितों द्वारा पूजा-अर्चना करवाते हैं तथा अपने परिजनों के साथ संगम में कतार में खड़े होकर कमर तक पानी में उतरकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके विधिवत अस्थियों को विसर्जित करते हैं।

इस भव्य मेले में जादू के शो व करतबों का प्रदर्शन तथा शाम को लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत संगीत व नृत्य के कार्यक्रम पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। संगम तट व बीच में छोटे-छोटे टापुओं पर आदिवासी लोग आटा गूंथते हैं तथा ईख जलाकर बाटियां सेंकते हैं तथा गुड़, शक्कर व घी मिलाकर चूरमा भी बनाते हैं तथा भगवान को दाल, बाटी व चूरमा का भोग लगाने के बाद परिवार के सदस्यों के साथ सामूहिक भोजन करते हैं। इस मेले में अनेक सरकारी व गैर सरकारी प्रदर्शनियां, सांस्कृतिक कार्यक्रम व करतब भी दिखाए जाते हैं। मेला बाजारों में इस आदिवासी बहुल वागड़ क्षेत्र के सभी प्रकार के लघु उद्योग व कुटीर उद्योग तथा अन्य उत्पादों की सजीव झांकियां देखने को मिलती हैं। इन मेला बाजारों में छोटे-बड़े रेस्टोरेंट, जलपान गृह, सौंदर्य प्रसाधन, बर्तन, गन्ने का रस, लोहा, लकड़ी, दूध, खिलौने, प्लास्टिक का सामान, चाय, पत्थर का सामान, खादी के वस्त्र, सजावट का सामान, श्रृंगार का सामान, जूते, चप्पल, रेडीमेड कपड़े आदि की दुकानें भी लगती हैं।

लोगों का मानना ​​है कि बेणेश्वर के त्रिवेणी संगम से जुड़ी सोम नदी अगर पहले पूरे प्रवाह के साथ बहे तो उस साल चावल की अच्छी फसल होती है। वहीं अगर माही में पानी पहले बहे तो समय अच्छा नहीं माना जाता। बेणेश्वर धाम का उल्लेख वैदिक पुराणों में भी मिलता है और इसे भगवान विष्णु के वामन अवतार और निष्कलंक कलगी अवतार से भी जोड़कर देखा जाता है। पिछले सालों में संगम के पास नदियों के गहरे पानी में प्राचीन अवशेष मिलने की बात भी कही जाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजीव गांधी समेत देश के कई अन्य नेता भी बेणेश्वर में पूजा-अर्चना कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 अप्रैल 2014 को लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी रैली को संबोधित करने बेणेश्वर आए थे। उस समय वे गुजरात के सीएम थे। चौपड़ में उन्होंने अपने भविष्य के बारे में जाना था और उनके प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी सच साबित हुई थी।

बेणेश्वर दक्षिणी राजस्थान के ऐतिहासिक शहर डूंगरपुर से लगभग 70 किमी और बांसवाड़ा और सलूम्बर से 45 किमी दूर स्थित है। इसका निकटतम उपखंड मुख्यालय आसपुर केवल 24 किमी दूर है। उदयपुर का निकटतम महाराणा प्रताप डबोक हवाई अड्डा लगभग 130 किमी दूर है।