दीपक कुमार त्यागी
देश में नोटों पर फोटो किस-किस राजनेता, महापुरुष व भगवान का लगना चाहिए, आजकल इस पर राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त राजनीति चल रही है। इस मुद्दे का आलाम उस कहावत की तरह हो गया है कि “घोड़े के नाल ठुकती देख मेंढकी ने भी पंजा बढ़ा दिया” यानी अब तो बड़े राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ इस फोटो लगवाने के मुद्दे पर अलग-अलग राज्यों के छोटे राजनेता भी अपने-अपने सुझाव मीडिया के विभिन्न सशक्त माध्यमों के द्वारा देने लग गए हैं। हालांकि अब भी बहुत सारे लोगों को यह लगता है कि इस तरह की स्थिति को देखकर नोट पर फोटो लगाने को तय करने वाले देश के विद्वान नीतिनिर्माता अब अपना अपना सिर पकड़ कर चुपचाप बैठे होंगे, वह देश के राजनेताओं के द्वारा नोटों पर विभिन्न फोटो लगाने के तरह-तरह के सुझावों वाले इस बिना सिर पैर के विशुद्ध राजनीति से प्रेरित अभियान को देखकर के बेहद आश्चर्यचकित हो रहे होंगे। वैसे मुझे लगता है कि मेरे आलेख के सभी सम्मानित पाठकों में से अधिकांश लोग मेरे इस मत से पूरी तरह से सहमत होंगे कि विश्व के अधिकतर देशों में नेताओं को वोट उनके द्वारा किए गए काम के आधार पर ही मिलता है। लेकिन हम भारतीय मतदाताओं के बेहद भावुक होने के चलते, हमारे देश में चुनावों में जीतने की राजनीति बहुत ही विचित्र हो गयी है। आज 21वीं सदी के आधुनिक भारत में राजनीति के हालात यह हो गए हैं कि देश में राजनेता के द्वारा किए गए अच्छे काम पर तो वोट कम मिलेंगे, लेकिन अगर कोई नेता जन भावनाओं से खेल खेलने में पूरी तरह से माहिर हैं तो वह मतदाताओं की भावनाओं से जुड़े मुद्दों को जनता के बीच उठाने का खेल खेलकर बात का बतंगड़ बनाकर चुनावी रणभूमि में विजय हासिल करने में बहुत आसानी से सफल हो सकता है। क्योंकि आज चुनावी रणभूमि में किसी प्रत्याशियों को भी जनता के द्वारा विजयश्री का आशीर्वाद देना मुद्दों की जगह देश में आम जनमानस की भावनाओं से खेलने की संभावनाओं पर ज्यादा मजबूती के साथ टिका हुआ है, हालांकि इस तरह की स्थिति लोकतांत्रिक व्यवस्था व देश के सर्वांगीण विकास के लिए उचित नहीं है, लेकिन फिर भी यह सब देश में जारी है।
देश की राजनीति में भावनाओं के उसी खेल से राजनीतिक लाभ लेने के चलते जब से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नए नोटों पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की तस्वीर छापने की मांग की है, तब से देश के विभिन्न हिस्सों में नोट पर अपनी पसंद का फोटो लगवाने की सियासत बहुत तेज हो गई है। सत्तारूढ़ और विपक्ष के नेता सियासी लाभ के अपने गुणा भाग के हिसाब से अपने-अपने चहेते नेताओं व महापुरुषों की तस्वीर नोटों पर छापने की मांग कर रहे हैं। किसी भी दल के नेता इस अघोषित प्रतियोगिता में पीछे नहीं रहना चाहते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा कांग्रेस के मनीष तिवारी, अधीर रंजन चौधरी व सलमान सोज। भाजपा के रामकदम, नितीश राणे। शिवसेना के अनिल परब, आरजेडी के प्रदेश महासचिव भाई अरुण कुमार आदि राजनेताओं ने, लक्ष्मी-गणेश, छत्रपति शिवाजी, बाबासाहेब आंबेडकर, बालासाहेब ठाकरे, लालू प्रसाद यादव व कर्पूरी ठाकुर आदि के फोटो नोटों पर लगाने के लिए अपने-अपने तर्क दिए हैं। वैसे मेरा देश के इन सभी सम्मानित राजनेताओं से निवेदन है कि नोट पर अपने पसंदीदा नेताओं, महापुरुषों व भगवान की फोटो लगवाने की मांग करने वालों कम से कम अपने झंडे, बिल्ले, बैनर, पोस्टर व विज्ञापन आदि में तो अपने बताए नेता, महापुरुष व भगवान के फोटो तो लगवा लो, फिर भविष्य में नोट पर फोटो लगवाने के अपने अगले कदम के बारे में विचार करना, लेकिन भाई लोगों यह भारत की राजनीति है यहां क्षणिक स्वार्थ के लिए राजनीति में कुछ भी संभव है।
हालांकि देश के बहुत सारे लोगों का स्पष्ट मानना है कि चुनावी लाभ की रणनीति के चलते ही देश में नोटों पर फोटो लगवाने का यह एक भावनात्मक अभियान नेताओं के द्वारा फिलहाल चलाया जा रहा है, धरातल पर बहुत सारे लोगों का मानना है कि अपने राजनीतिक फायदे को हासिल करने के लिए व आम जनमानस की बड़े पैमाने पर खड़ी विभिन्न प्रकार की ज्वलंत समस्याओं से बेहद चतुराई से ध्यान हटाने के लिए पक्ष व विपक्ष के द्वारा बिना कारण देश में एक नए विवाद को जन्म दिया जा रहा है। क्योंकि जल्द ही हिमाचल व गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं, वहीं साथ ही दूसरे राज्यों के नेता भी अपने राज्यों के मतदाताओं के बीच में मजबूत पैठ बनाने के लिए बिना सिर पैर के इस मुद्दे के विवाद को जमकर धरातल पर तूल देने के लिए राजनीतिक अखाड़े में कूद पड़े हैं। वहीं इस पूरे प्रकरण में भारत की करेंसी को कुछ राजनेताओं के द्वारा मजाक का प्रमुख पात्र बना दिया गया है, वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नोट पर अपने पसंदीदा राजनेताओं, महापुरुषों व भगवान की फोटो लगाकर डाल रहे हैं, हालांकि कानून की दृष्टि से देखें तो यह भारत की करेंसी से छेड़छाड़ करने का एक बेहद गंभीर प्रकृति के अपराध का मामला बनता है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस आपराधिक कृत्य को देश के कुछ ताकतवर लोगों के द्वारा अंजाम दिया जा रहा है, इसलिए कानून आंख मूंदकर तमाशबीन बनकर अभी तक तो चुपचाप बैठा हुआ है। हालांकि अगर देश में कोई आम आदमी इस तरह का अपराध कर देता, तो अबतक हमारे नेतागण पूरे देश को अपने सर पर उठाकर इतना हंगामा करते कि ऐसा करने वाले व्यक्ति पर इतनी संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होता कि वह वर्षों तक अपनी जमानत करवाने के लिए तरस जाता।