ऋतुपर्ण दवे
बहुत जल्द आने वाला दौर खुल जा सिमसिम से कम नहीं होगा। तब अली बाबा और चालीस चोर एक गुफा में रखे खजाने तक पहुँचने खातिर दरवाजा खोलने और बन्द करने के लिए सिमसिम बोला करते थे। आज इशारे, बोली या चेहरे के संकेतों से बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता हासिल होती जा रही है। इसमें दो राय नहीं कि 21वीं सदी का यह दौर एआई यानी आर्टीफीसियल इण्टेलीजेन्स या कृत्रिम बुध्दिमत्ता का है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई। लेकिन निर्णायक मुकाम तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लगा। इसका मतलब ये नहीं कि यह एकाएक पैराशूट से आ गिरा और दुनिया में छा गया। एआई 1970 के दशक में लोकप्रिय होने लगा था जब जापान इसका अगुवा बना। 1981 आते-आते सुपर कम्प्यूटर के विकास की 10 वर्षीय रूपरेखा तथा 5वीं जेनरेशन की शुरुआत ने रफ्तार दी। जापान के बाद ब्रिटेन भी चेता उसने एल्बी प्रोजेक्ट तो यूरोपीय संघ ने भी एस्पिरिट की शुरुआत की। अधिक गति देने या तकनीकी रूप से विकसित करने के लिए 1983 में कुछ निजी संस्थानों ने एआई के विकास खातिर माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी संघ बना डाला।
सच तो यही है कि एआई की कहां-कहां और कैसी दखल होगी जिसकी न तो कोई सीमा है और न अंत। हर दिन नए-नए फीचरों के साथ करिश्माई तकनीक पहले से बेहतर विकल्पों के साथ परिवर्तनों, सुधार या विकसित होकर सामने होती है। दुनिया सबसे पहले इसके सहज रूप रोबोट से रू-ब-रू हुई जो सबकी पहुंच में नहीं रहा। लेकिन इस तकनीक ने घर-घर दस्तक देकर अपनी निर्भरता खूब बढ़ाई। अब साल भर में मोबाइल, टीवी, गैजेट्स आउटडेटेड लगने लगते हैं। आगे क्या होगा अकल्पनीय है। सच है कि कृत्रिम बुध्दि की दौड़ इंसानी बुध्दि पर भारी दिखने लगी है।
एआई ने व्यापार के पूरे तौर तरीके बदल दिए। हरेक उद्योग, व्यापार इसके बिना अधूरा और अनुपयोगी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि या फिर नागरिक शासन प्रणाली सबमें जबरदस्त दखल बेइन्तिहा है। आसमान में सैटेलाइट, उड़ता हवाई जहाज, पटरी पर दौड़ती रेल-मेट्रो सभी कृत्रिम मेधा के नियंत्रण में है। घर में साफ-सफाई से लेकर खाना बनाना, टीवी ऑन-ऑफ करना, चैनल बदलना, एसी चालू-बंद करने जैसे सारे काम एआई आधारित होते जा रहे हैं। कल सुरक्षा व्यवस्थाएँ भी मानव रहित तकनीक पर आधारित होकर अधिक चाक चौबंद होना तय है। भारत में डीआरडीओ सहित कई स्टार्टअप पर काम चल रहा है। स्वचलित स्वायत्तता के एआई वाले दौर में कल्पना से भी बेहतर उपकरण होंगे जो ज्यादा प्रभावी, आक्रामक तथा सटीक यानी चूक रहित होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन भी देश की आत्मनिर्भता में एआई को लेकर सकारात्मक है। 21वीं सदी का भारत टेक्नोलॉजी में मजबूत बन रहा है। प्रधानमंत्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से समाज की बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल खोजने के पक्षधर हैं। वो प्रौद्योगिकी आधारित जीवन सुगमता यानी ‘ईज ऑफ लिविंग यूजिंग टेक्नोलॉजी’ पर मंशा जता चुके हैं। उन्होंने वन नेशन-वन राशन-कार्ड, जेएएम यानी जनधन-आधार-मोबाइल की त्रिवेणी, डिजी लॉकर, आरोग्य सेतु और को-विन ऐप, रेलवे आरक्षण, आयकर प्रणाली से जुड़ी शिकायतों के ‘फेसलेस’ निपटान और सामान्य सेवा केंद्रों के उदाहरण दिए। एआई से जनसंवाद भी आसान हुआ और लोगों को जल्द समाधान भी मिलने लगा। अब सच्चाई यही है कि जन शिकायतों और निपटारे के बीच इंसान नहीं सिर्फ निष्पक्ष तकनीक है।
हां तकनीक का मतलब सिर्फ यह भी नहीं कि लोग इण्टरनेट और डिजिटल टेक्नालॉजी तक सीमित रहें। अब एआई सपोर्टेड ऐसी मशीनें आएंगी जो इंसानी भावनाओं को भी पहचानेंगी। आगे रोबोट और ड्रोन युध्द के मैदान और अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटर में काम करते दिखें तो हैरानी नहीं होगी। एआई पढ़ाने से लेकर भाषण, एंकरिंग से लेकर किचेन व घरों की साफ-सफाई और तमाम कामों में सक्षम हो रही है। इसके फायदे और भविष्य सबको समझ आने लगे हैं। कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों तथा उर्वरकों का दुरुपयोग रोकने व पशु-पक्षियों से फसल बचाव की क्रान्ति की शुरुआत हो चुकी है। शायद ही कोई क्षेत्र बचे जो इससे अछूता रहे। खेल के मैदानों में एक-एक मूवमेण्ट और माइक्रो सेकेण्ड तक हुई गतिविधियों की रिकॉर्डिंग से साफ-सुथरे फैसलों का दौर सामने है। कॉर्पोरेट सेक्टर, रियल स्टेट, विनिर्माण या मशीनों का संचालन यानी सब कुछ एआई आश्रित होकर कामियाब हो रहे हैं।
एआई की बैंकों, वित्तीय संस्थानों के डेटा को व्यवस्थित, सुरक्षित और प्रबंधित करने के साथ तमाम स्मार्ट और डिजिटल कार्डों के सफल संचालन के साथ समुद्र के गहरे गर्भ में खनिज, पेट्रोल, ईंधन की पतासाजी और खुदाई में भूमिका जबरदस्त है। सबने देखा दिल्ली की चालक रहित मेट्रो या दुनिया में बिना ड्राइवर की ऑटोपायलट कार के भविष्य की शुरुआत और टेसला को लेकर उत्साह।
एआई तकनीक से जल्द ही चौक-चौराहों पर बिना पुलिस के अचूक स्मार्ट पुलिसिंग की पहरेदारी दिखेगी। अनेकों खूबियों से लैस 360 डिग्री घूमने में सक्षम कैमरे जो हरेक गतिविधियों को भांपने, पहचानने में दक्ष तथा कंट्रोल रूम में तैनात टीम को चुटकियों में सूचना साझा कर मौके पर पहुंचाने में मददगार होंगे। वहीं सड़क दुर्घटनाओं को रोकने खातिर वरदान बन हरेक वाहन में ऐसी सेंसर प्रणाली विकसित भी हो सकेगी जो खुद-ब-खुद सामने वाली गाड़ी की स्थिति, संभावित चूक या गड़बड़ी को रीड कर स्वतः नियंत्रित हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस पर भारत में भी काम चालू है। नागपुर में हैदराबाद की एक संस्था के साथ प्रोजेक्ट ‘इंटेलिजेंट सॉल्यूशंस फॉर रोड सेफ्टी थ्रू टेक्नोलॉजी एंड इंजीनियरिंग’ यानी आईआरएएसटीई तकनीक वाहन चलाते समय संभावित दुर्घटना वाले परिदृश्यों को पहचानेगी और एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम यानी एडीएएस की मदद से ड्राइवरों को सचेत करेगी। भारतीय सड़कों खातिर लेन रोडनेट यानी एलआरनेट से लेन के निशान, टूटे डिवाइडर, दरारें, गड्ढे यानी आगे खतरे की पहले ही जानकारी ड्राइवर को हो जाएगी। ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस का उदाहरण सामने है जो हमें आसमान से धरती की अनजान जगह पर बिना किसी से पूछे सुरक्षित रास्ते से पहुंचाता है। लोकेशन शेयर करने पर मूवमेण्ट की जानकारी देने जैसा सारा कुछ एआई की ही देन है।
भारत सहित दुनिया का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग, बिग डाटा इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, रियल टाइम डाटा और क्वांटम कम्युनिकेशन में शोध, प्रशिक्षण, मानव संसाधन और कौशल विकास, स्मार्ट मोबिलिटी, स्मार्ट हेल्थकेयर, स्मार्ट कंसट्रक्शन जैसे स्टार्टअप्स को लेकर जबरदस्त होड़, निवेश और क्षमताएँ विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित है। इससे तकनीक क्षेत्र में अत्याधिक रोजगार बढ़ेगा तो कई दूसरे क्षेत्रों में कुछ बुरा असर भी दिखेगा। इसको समझने, सीखने और दक्ष होने खातिर साक्षरता भी तो बढ़ेगी। जब ज्यादातर इंसानी जरूरतें जो इंसान पूरा करते थे मशीनें पूरी करने लगेंगी तो ज्यादा आबादी वाले देशों में नई बहस तय है। सही भी है जो तमाम धार्मिक ग्रन्थों में किसी न किसी रूप में लिखा है और जिसका सार यही कि ‘परिवर्तन प्रकृति का नियम’ है। कह सकते है कृत्रिम बुध्दिमत्ता भी उसी का एक हिस्सा है बस उफान देखना बाकी है।