वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में आरटीआई से सम्बंधित समीक्षा बैठक आहूत

A review meeting regarding RTI was convened under the chairmanship of Virendra Pratap Singh, State Information Commissioner, Uttar Pradesh

दीपक कुमार त्यागी

  • जन सूचना अधिकारी तय समय के भीतर सही और सटीक सूचना उपलब्ध कराना सुनिश्चित करायें: वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त
  • समय की आहट सुनिए और जिस भूमिका के लिए आप चुने गए हैं, उसे तन-मन से निष्ठापूर्वक निभाइए: वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त
  • जन सूचना को अपनी ड्यूटी में शामिल कीजिए: वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त

गाजियाबाद : महात्मा गांधी सभागार, कलेक्ट्रेट में वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में आरटीआई के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं की लम्बित शिकायतों और अपीलों की समीक्षा बैठक आहूत हुई। मुख्य विकास अधिकारी अभिनव गोपाल ने वीरेन्द्र प्रताप सिंह, राज्य सूचना आयुक्त को पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। इसके साथ ही जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा सभी अतिथियों को स्वागत किया गया।

बैठक के दौरान बताया गया कि सूचना का अधिकार का उद्देश्य प्रशासन में पारदर्शिता लाना, भ्रष्टाचार मिटाना, दायित्वबोध जगाना और जनसहभागिता बढ़ाना है। साथ ही इसका उद्देश्य सुशासन तथा अधिक प्रभावशाली कार्यव्यवस्था सुनिश्चित करना है। सूचना का अधिकार कानून भारतीय नागरिकों के सशक्तीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। उत्तर प्रदेश सूचना आयोग का प्रयास है कि लंबित वादों का जल्द से जल्द निस्तारण हो। जनता की समस्याओं का समाधान हो और अधिकारियों पर अनावश्यक दबाव भी न आए। सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध धारा 20 (1) के तहत 25 हजार रुपये तक का अर्थदंड सुनाने और धारा 20 (2) के तहत विभागीय कार्रवाई की संस्तुति करने का प्रावधान है। स्थितियाँ संदिग्ध होने पर आयोग स्वयं जांच कर सकता है अथवा जांच का आदेश दे सकता है। मेरा मानना है कि कोई भी अधिकारी दंड और जांच को आमंत्रित करके अपना करियर दागदार नहीं करना चाहेगा। जो भी विभागीय प्रमुख यहाँ उपस्थित हैं, आप सबसे मेरा यही कहना है कि आप अपने जनसूचना अधिकारियों के द्वारा तय समय के भीतर सही और सटीक सूचना उपलब्ध कराना सुनिश्चित करायें।

उन्होने बैठक के दौरान कहा कि मैं एक उदाहरण से अपनी बात स्पष्ट करूंगा। लखनऊ में मत्स्य विभाग के एक वरिष्ठ अफसर सेवानिवृत्त हुए। उनकी चिकित्सा प्रतिपूर्ति की लाखों रुपये की धनराशि फंसी हुई थी। बीमारी से जर्जर हो गए थे। फिर भी तीन साल तक विभाग और अस्पताल के चक्कर काटते रहे। विभाग और अस्पताल एक दूसरे पर टालते रहे। कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। इसके बाद वे कोर्ट चले गए। मुकदमा चलते एक साल बीत गया। उनके एक मित्र ने सुझाव दिया कि आरटीआई लगाइए। मेरे समक्ष सुनवाई में विभागीय अधिकारी आए तो मैंने कहा, एक दिन आप भी रिटायर होंगे। आप भी इन्हीं की तरह दौड़ेंगे तो कैसा लगेगा? वे झेंप गए। उन्होंने एक माह का समय मांगा। अगली सुनवाई में मैंने नोटिस भेजकर अस्पताल और विभाग दोनों को बुलाया। नोटिस पढ़ने के बाद उन्होंने आपस में समन्वय बनाकर अड़चन दूर की और अगली पेशी पर चेक लेकर आए।

इसी तरह एक अधिकारी की सेवा पुस्तिका ही गायब हो गई थी। उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में चार सुनवाई और चेतावनी के बाद अंततः उनकी नई सेवा पुस्तिका बना दी गई है।

इस तरह के अनेक मामले हैं जिनमें हताश और निराश नागरिकों को त्वरित राहत दिलाई गई है। जनसमस्याओं के त्वरित निपटारे के लिए राज्य सूचना आयोग एक प्रभावशाली मंच है। इसमें आप सबका सहयोग चाहिए। आरटीआई के ऐसे अनेक मामले आयोग तक आ जाते हैं, जिनका निपटारा प्रथम अपीलीय अधिकारी के स्तर पर हो सकता था। इससे आयोग पर वादों का बोझ बढ़ता है और गुणवत्तापूर्ण सुनवाई पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। समय की आहट सुनिए और जिस भूमिका के लिए आप चुने गए हैं, उसे तन-मन से निष्ठापूर्वक निभाइए। जन सूचना को अपनी ड्यूटी में शामिल कीजिए।

केवल ऐसी सूचना दी जाएगी जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद है अथवा उसके नियंत्रण में है। जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना या सूचना की व्याख्या करना या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है। सूचना के अंतर्गत ‘क्यों’ वाले प्रश्नों के उत्तर देना अपेक्षित नहीं है।

ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता, अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित तथा विदेश के साथ सम्बन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो अथवा किसी अपराध को करने की प्रेरणा मिलती हो।ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से विधान मण्डल के विशेषाधिकार की अवहेलना होती हो अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज नहीं दिए जाएंगे। तृतीय पक्ष की सूचना नहीं दी जाएगी। किसी व्यक्ति की निजी जन‌कारी आरटीआई के अंतर्गत नहीं दी जाएगी। यदि उसमें व्यापक लोकहित है तो विचार हो सकता है। सूचना इतनी विस्तृत नहीं होनी चाहिए कि उसे जुटाने में कार्यालय का सामान्य कामकाज ठप हो जाय। 500 शब्दों से अधिक का सूचना आवेदन विस्तृत कहकर निरस्त किया जा सकता है। कोई आरटीआई कार्यकर्ता यदि बड़ी संख्या में सूचना आवेदन देता है तो आप सूचना आयोग को लिख कर दे सकते हैं कि उनके इस तरह सूचना माँगने कार्यालय का काम प्रभावित हो रहा हैं

जन सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सूचना माँगने वाले व्यक्तियों को युक्तियुक्त सहायता प्रदान करें। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सूचना प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह अंग्रेजी अथवा हिन्दी भाषा में लिखित अपना आवेदन प्रस्तुत करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित रूप से आवेदन देने में असमर्थ है, तो जन सूचना अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे व्यक्ति को लिखित रूप में आवेदन तैयार करने में युक्तियुक्त सहायता करेगा। यदि कोई दस्तावेज संवेदनात्मक रूप से निःशक्त व्यक्ति को उपलब्ध कराना अपेक्षित है, तो जन सूचना अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को समुचित सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि वह सूचना प्राप्त करने में सक्षम हो सके। यदि दस्तावेज की जाँच करनी हो, तो उस व्यक्ति को ऐसी जाँच के लिए उपयुक्त सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

जन सूचना अधिकारी किसी भी अन्य अधिकारी से ऐसी सहायता मांग सकता है, जिसे वह अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक समझता हो। अधिकारी, जिससे सहायता मांगी जाती है, जन सूचना अधिकारी को सभी प्रकार की सहायता प्रदान करेगा। ऐसे अधिकारी को जन सूचना अधिकारी माना जाएगा और वह अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा, जिस प्रकार कोई अन्य जन सूचना अधिकारी होता है। जन सूचना अधिकारी के लिए यह उचित होगा कि जब वह किसी अधिकारी से सहायता मांगे तो उस अधिकारी को उपर्युक्त प्रावधान से अवगत करा दे।

अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए अपने संगठन, इसके क्रियाकलाप, कर्तव्यों और अन्य विषयों आदि के ब्यौरों का स्वतः प्रकटन करना बाध्यकारी है। धारा 4 की उप-धारा (4) के अनुसार, इस प्रकार से प्रकाशित जानकारी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में जन सूचना अधिकारी के पास सुलभहोनी चाहिए। इससे आवेदनों की संख्या में कमी आएगी।
आम तौर पर जिस तरह की सूचनाओं मांगी जाती हैं, उनको देखें और उसी पैटर्न पर सूचनाएँ तैयार करके संरक्षित कर लें, उसे ऑनलाइन उपलब्ध करा दें। इससे लोगों को एक ही स्थान पर सूचना मिल जाएगी और वादों की संख्या में कमी आएगी।

बैठक में आरटीआई विशेषज्ञ अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह चौहान, निजी सचिव शरफुज्जमां प्रशासन से सीडीओ अभिनव गोपाल, एडीएम ई रणविजय सिंह, एडीएम एल/ए विवेक मिश्र, एडीएम एफ/आर सौरभ भट्ट, आईएएस दीपक सिंघनवाल ज्वांइट मजिस्ट्रेट/एसडीएम लोनी, आईएएस श्री अयान जैन, सीएमओ डॉ.अखिलेश मोहन सहित नगर निगम से अपर नगर आयुक्त जंग बहादुर यादव व पुलिस विभाग से डीसीपी ग्रामीण सुरेन्द्र नाथ तिवारी, एडीसीपी प्रोटोकॉल आनन्द कुमार, डीसीपी ट्रांस हिण्डन निमिष पाटिल, एडीसीपी ट्रैफिक सच्चिदानन्द सहित सभी विभागों के अधिकारीगण/जन सूचना अधिकारी उपस्थित रहे। बैठक के अंत में सभी अतिथियों को मोमेंटों देकर सम्मानित किया गया।