किताबों की अपनी एक अनोखी दुनिया

A unique world of books

विजय गर्ग

आज के डिजिटल युग में, जहाँ ज्ञान उँगलियों के एक स्पर्श भर में उपलब्ध है, वहाँ भी किताबों की अपनी एक अनोखी दुनिया है। किताबें केवल पढ़ने की वस्तु नहीं, बल्कि महसूस करने का माध्यम हैं। जब कोई पाठक किसी पुस्तकालय से किताब उधार लेता है, तो वह केवल शब्द नहीं ले जाता — वह भावनाओं, विचारों और अनुभवों की एक पूरी दुनिया अपने साथ ले जाता है।

हर किताब में एक इतिहास होता है — उन हाथों का, जिन्होंने उसे छुआ; उन आँखों का, जिन्होंने उसके अक्षरों में अर्थ खोजे; और उन दिलों का, जिन्होंने उसकी कहानियों में खुद को पाया। किसी पुराने पन्ने की हल्की सिलवट, किसी कोने पर लिखा छोटा-सा नोट — यह सब उस किताब में जीवंत मानवीय उपस्थिति का प्रमाण हैं।

किताबें हमें उस समय से जोड़ती हैं जब संवाद केवल शब्दों में नहीं, अनुभूतियों में होता था। वे हमें सिखाती हैं कि ज्ञान केवल सूचना नहीं होता, बल्कि आत्मा से आत्मा का संपर्क होता है। जब कोई किताब हमारे हाथों से निकलकर किसी और के पास जाती है, तो उसके साथ हमारी अनुभूति भी आगे बढ़ती है — जैसे कोई नदी अपने प्रवाह में जीवन की निरंतरता बहा ले जाती है।

अगर सच में किताबों से प्रेम है, तो अपने श्रम से उन्हें जुटाइए। किताबें पाने का आनंद तभी होता है जब उन्हें पाने में थोड़ी मेहनत, थोड़ा इंतज़ार और बहुत-सा लगाव शामिल हो। वो किताबें, जिन्हें आपने अपनी पहली तनख्वाह से खरीदा हो, जिनके पन्नों पर कॉफ़ी के निशान हों या जिनमें आपकी उंगलियों के मोड़ से पन्ने मुड़े हों — वही किताबें आपके जीवन का हिस्सा बनती हैं। किताबों से प्रेम का अर्थ यह नहीं कि आप उन्हें जमा कर लें या दूसरों से माँगकर अपने रैक में सजा लें। किताबों से प्रेम का अर्थ है — उन्हें पढ़ना, उनसे प्रश्न करना, उनसे बहस करना और कभी-कभी उनसे असहमति जताना। किताबें जीवित प्राणी की तरह हैं — वे संवाद चाहती हैं, मौन नहीं।

किताबों का यह साझा अनुभव हमें एक अदृश्य बंधन में जोड़ता है। हम शायद उस पिछले पाठक को नहीं जानते जिसने उसे पढ़ा था, न ही उस अगले को जो इसे पढ़ेगा, लेकिन उन सबके बीच एक साझा भावना होती है — ज्ञान, जिज्ञासा और मानवीय संवेदना की।

लोग कहते हैं कि देश में लाइब्रेरियाँ नहीं हैं, इसलिए वे व्यक्तिगत संग्रहों से किताबें माँगते हैं। पर क्या सच में ऐसा है? मेरे अपने शहर में डॉ. कामिल बुल्के की लाइब्रेरी है — शब्दों और भाषाओं का अद्भुत संग्रह। राज्य पुस्तकालय और ब्रिटिश लाइब्रेरी — दोनों ही ज्ञान के खज़ाने से भरे पड़े हैं। मैंने अपनी पढ़ाई के दिनों में इन्हीं लाइब्रेरियों से किताबें लीं, घंटों वहीं बैठकर पढ़ा। उन पन्नों की महक, लकड़ी की अलमारियों की ठंडक और पुराने कागज़ की स्याही में घुली हुई ख़ामोशी आज भी मेरे मन में जीवित है।

लाइब्रेरी जाना एक अनुशासन सिखाता है। किताबों के साथ समय बिताने की एक लय बनती है। वहाँ आपको केवल ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि धैर्य और विनम्रता भी मिलती है। आज जब सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध है, तब भी असली किताबों की दुनिया की तुलना नहीं की जा सकती। डिजिटल पन्ने रोशनी देते हैं, लेकिन कागज़ के पन्ने आत्मा देते हैं।

इसलिए, किताबें उधार नहीं ली जातीं — वे जी जाती हैं, महसूस की जाती हैं। वे हमें सिखाती हैं कि हर पंक्ति में एक धड़कन होती है, हर शब्द में एक भावना। किताबें केवल पढ़ने का साधन नहीं, आत्मा को छू लेने वाली अनुभूति हैं।