
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
बोल्शेविस्ट प्रेमचंद का संघर्ष वरेण्य साहित्यकार श्री नारायण पाण्डेय द्वारा कथा-शिल्पी, उपन्यास-सम्राट प्रेमचंद पर केंद्रित सत्यान्वेषी समीक्षक के आत्मविश्वास तथा उसके उद्देश्य की सच्चाई से सत्य का अनुसंधान करती है।
प्रेमचंद के संघर्ष पर एक दुर्लभ एवं अनुपम आलोचनात्मक पुस्तक है, जो हिन्दी साहित्य के शिल्पी के संघर्ष के सभी पक्षों से पाठकों को अत्यन्त ही रूचिकर ढग से रसास्वादन कराती है। मुंशी प्रेमचंद की रचनाधर्मिता पर प्रेमचन्द का जीवन उनके व्यक्तित्व का आईना है।पहली बार 1987 में 9 अध्याय छपने वाली इस पुस्तक का 93 वर्षीय लेखक ने संशोधित स्वरूप दिया है। शतरंग प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित 124 पृष्टों की पुस्तक में कुल 12 आलेख है जिनमें 11 आलेख लेखक श्री नारायण पांडे के तथा एक आलेख आलोचक गोपाल प्रधान का इस पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। पुस्तक के पहले अध्याय में
प्रेमचंद का संघर्ष दूसरे अध्याय में प्रेमचंद की करतूत अथवा रंगभूमि 3.प्रेमाश्रम और रिज़रक्शन 4.घृणा के प्रचारक प्रेमचंद 5.सेवासदन : अखलाकी बेशर्मी 6.प्रेमचंद और अक्टूबर- क्रांति 7.प्रेमचंद व रवीन्द्रनाथ 8.प्रेमचंद की मानसिकता 9.प्रेमचंद और साम्प्रदायिकता 10.बोल्शेविस्ट प्रेमचंद 11.प्रेमचंद की साहित्य दृष्टि उपन्यास और परिशिष्ट-12. प्रेमचंद के समय से संवाद – गोपाल प्रधान प्रकाशित हुआ है।
प्रेमचन्द उन दिनों बड़े ही चाव से पढ़े जा रहे थे । प्रेमचन्द का प्रसिद्ध कहानी संग्रह ‘सोज-ए-वतन’ उर्दू में (1908 ई०) में आया था। इसके बाद ही हिन्दी में प्रकाशित हुआ। ध्यातव्य है कि ब्रिटिश हुकूमत ने सोजे वतन को जब्त कर लिया था। उसकी प्रतियाँ जला दी गई थीं। तब वे सरकारी नौकरी में हीथे । शायद इसलिए कोई दूसरी सजा नहीं मिली । प्रेमचंद का बच जाना हिन्दी साहित्य के लिए ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ साबित हुआ। स्वतः उनकी राष्ट्रीय-चेतना तीव्रतर हाती गई। सन् 1930 ई० के ‘विशाल भारत’ पत्रिका में उन्होंने स्वयं घोषित किया था कि इस समय मेरी सबसे बड़ी अभिलाषा यही है कि हम स्वतंत्रता संग्राम में सफल हों। इसके पूर्व उन्होंने 1920 ई० में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। साथ में यह भी स्मरणीय है कि उनकी पत्नी शिवरानी देवी आन्दोलन की एक सक्रिय कार्यकर्ता भी थीं।बोल्शेविस्ट प्रेमचंद का साहित्य (कहानी- उपन्यास) समाज को सजीवता के साथ एक उच्च आदर्श को प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित कर रहा था। अंततः देशवासियों में नवीन चेतना जागृत करना एक वर्ग के लिए पच नहीं रहा था। धारावाहिक रूप से उनकी कहानियों पर चोरी का आरोप लगाते हुए आलोचनात्मक लेखों के माध्यम से लगातार हमले हो रहे थे।
‘सरस्वती’ अप्रैल 1926, संपादक देवीदत्त शुक्ल ने ‘विचार-विमर्श’ के अन्तर्गत ‘प्रेमचंद की करतूत अथवा रंगभूमि’ शीर्षक से एक रचना छापी, लेखक थे अवधेश उपाध्याय । ‘खत का मजमून’ देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि फर्दे जुर्म किस तरह का रहा होगा। अवधेश जी गणित के विद्वान् थे, जैसा वे खुद कहते हैं। प्रेमचंद ने ‘रंगभूमि’ की एक प्रति इनको पढ़ने को दी थी। इनका कहना है, ‘मैं प्रेमचन्द की लगभग सब कृतियों को पढ़ चुका हूँ।’ जब प्रेमचंद के खत लिख देने पर गंगा-पुस्तक-माला’ से इन्हें पुस्तक मिल गई तो उसे लेकर घर चले गये, और ‘पंजाब मेल’ की चाल से उसे पढ़ने लगे, मगर जैसे-जैसे पढ़ते गये वैसे-वैसे हताश होते गये। दो दिन में ग्रन्थ को समाप्त कर दिया। लेकिन वह ‘प्रेमाश्रम’ का ही नूतन संस्करण
पड़ा। पढ़ने के बाद जब अवधेश जी प्रेमचंद से मिले तो उन्होंने कहा, “यह तो वैनिटी फेयर है ।’ प्रेमचंद ने कहा- ‘वैनिटी फेयर तो सामाजिक है, पर रंगभूमि राजनैतिक है।’ इसके सिवा उन्होंने और कुछ मिक नहीं कहा।'[पृष्ठ 12 से] इसी तरह”जिन सज्जनों ने ‘वैनिटी फेयर’ पढ़ा है, वे तो यह आलोचना पढ़कर कदाचित् लेखक के आक्षेप पर दाँतों उँगली लेंगे, जिन लोगों ने उसे नहीं पढ़ा है उनसे मेरा यही अनुरोध है कि वे उसे पढ़कर आप फ़ैसला कर लें। मगर जिन लोगों ने अँग्रेजी नहीं पढ़ी है, उनके मन में भ्रम का हो जाना स्वाभाविक है। उनका भ्रम शांत करने के लिए मैं ये पंक्तियाँ लिखना अपना कर्तव्य समझता हूँ ।
उपाध्याय जी दोनों पुस्तकों में समानता दिखाते हैं। आक्षेप यह करते हैं कि दोनों नामों में समानता है। आप ‘वैनिटी फेयर’ का अर्थ करके यह दिखाने की चेष्टा करते हैं कि उसका अर्थ भी रंगभूमि है । लेकिन ‘रंगभूमि’ का यह अर्थ कदापि नहीं है। दोनों पुस्तकों के नाम में ही उनके लेखकों का उद्देश्य और आदर्श छिपा हुआ है। थैकरे मानव हृदय की क्षुद्रताओं की आलोचना करता है, समाज की कृत्रिमता पर आघात करना ही उसका उद्देश्य है। उसकी निगाह समाज की कमजोरियों पर ही रहती है। ‘रंगभूमि’ का उद्देश्य जीवन का एक दूसरा ही आदर्श जनता के सामने रखना है।[पृष्ठ 18 से] सब प्रकार के हमलों के बीच अपनी अध्ययन-शक्ति, अनुभूति, मनोवृत्ति और नैतिक बल के कारण अपनी लेखनी चलाते रहे। प्रेमचंद को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए और उनके समकालीन समय को समझने के लिए पुस्तक अत्यंत उपयोगी है।
पुस्तक : बोल्शेविस्ट प्रेमचंद का संघर्षलेखक : श्री नारायण पाण्डेय
शतरंग प्रकाशन
प्रकाशक : शतरंग प्रकाशन एस-43, विकास दीप बिल्डिंग
द्वितीय तल, स्टेशन रोड, लखनऊ-226001 फोन: 8787093085 Ltp284403@gmail.com
मूल्य: 350/-