Aadhar कार्ड होगा Voter आईडी से लिंक, फर्जी वोटिंग पर लगाम कसने की तैयारी

Aadhar card will be linked to Voter ID, preparations underway to curb fake voting

प्रदीप शर्मा

चुनाव आयोग वोटर आईडी कार्ड को आधार से जोड़ना चाहता है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है फर्जी मतदान को रोकना। मंशा चाहे जितनी भी सही हो, लेकिन इस काम में कानूनी से लेकर राजनीतिक तक, कई चुनौतियां हैं। विवादों के लंबे इतिहास को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि कोई भी कदम सभी पक्षों को विश्वास में लेकर और जरूरत के हिसाब से उठाया जाए।

साल 2021 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन के बाद आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की अनुमति मिली। चुनाव आयोग ने तब जनता से उनके आधार नंबर मांगते हुए कहा था कि यह स्वैच्छिक है यानी जिसे दोनों डॉक्युमेंट लिंक करने हैं वह करे और जो नहीं चाहता, वह न करे।

आयोग के पास 66.23 करोड़ आधार नंबर आ चुके हैं। हालांकि इन्हें अभी तक वोटर आईडी से लिंक नहीं किया गया है। वजह है 2023 में हुआ अदालती केस। सुप्रीम कोर्ट में जब यह मामला पहुंचा, तो यही आरोप लगाया गया था कि आयोग के अनुसार प्रक्रिया स्वैच्छिक है, लेकिन जानकारी जुटाने के लिए जो फॉर्म लागू किया गया, उससे यह बात पता नहीं चलती। यही सवाल अब भी कायम रहेगा।

दूसरी बड़ी चिंता है लोगों की प्राइवेसी को लेकर। आज प्राइवेट डेटा लीक सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। जब आधार और वोटर आईडी का डेटाबेस मिल जाएगा, तो इसे सिक्योर करने की चुनौती भी ज्यादा बड़ी होगी। ऐसे सॉफ्टवेयर और टूल की जरूरत पड़ेगी, जिससे लोगों के मन में किसी तरह की आशंका न रहे।

इस मामले के राजनीतिक पहलू पर नजर डालना भी जरूरी है। हाल में तृणमूल कांग्रेस ने डुप्लिकेट वोटर आईडी का मुद्दा उठाया। इससे पहले भी तमाम प्रमुख दल अपनी चिंता जता चुके हैं। जाहिर तौर पर चुनाव आयोग का मकसद यही है कि डुप्लिकेसी को खत्म किया जाए और हर एक वोट वैध हो। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने विदाई भाषण में बायोमीट्रिक पहचान की खासियत पर बात की थी। लेकिन, मसला है कि अभी पूरी प्रक्रिया स्वैच्छिक है। अगर यह आगे भी स्वैच्छिक रहती है तो आयोग को पूरा डेटा कैसे मिलेगा और जब पूरा डेटा ही नहीं होगा तो डुप्लिकेसी को कैसे खत्म किया जाएगा?

आयोग ने स्पष्ट किया कि प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रासंगिक प्रावधानों का सख्ती से पालन करेगी। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, ईसीआई ने जोर देकर कहा कि आधार केवल पहचान के प्रमाण के रूप में कार्य करता है, नागरिकता के रूप में नहीं। यूआईडीएआई और ईसीआई विशेषज्ञों के बीच तकनीकी परामर्श जल्द ही इस मामले पर शुरू होगा।

“जबकि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, मतदान का अधिकार केवल भारत के नागरिक को दिया जा सकता है; एक आधार कार्ड केवल एक व्यक्ति की पहचान स्थापित करता है,” आयोग ने कहा।

“इसलिए, यह निर्णय लिया गया कि ईपीआईसी को आधार से जोड़ना केवल संविधान के अनुच्छेद 326, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4), 23(5) और 23(6) के प्रावधानों के अनुसार और डब्ल्यूपी (सिविल) संख्या 177/2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार किया जाएगा। तदनुसार, यूआईडीएआई और ईसीआई के तकनीकी विशेषज्ञों के बीच तकनीकी परामर्श जल्द ही शुरू होने वाला है,” इसने कहा।

इस बीच, पदभार ग्रहण करने के एक महीने से भी कम समय में, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने लंबे समय से लंबित चुनावी चुनौतियों का समाधान करने के लिए सक्रिय और निश्चित उपायों की एक श्रृंखला शुरू की है, जिनमें से कुछ दशकों से अनसुलझी हैं।

भारत के चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, इन कदमों का उद्देश्य आगामी चुनावों से पहले चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता, समावेशिता और दक्षता को बढ़ाना है।

चुनाव आयोग 31 मार्च, 2025 से पहले निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों, जिला चुनाव अधिकारियों और मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के स्तर पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित करने के लिए तैयार है। इस पहल का उद्देश्य चुनाव प्रबंधन के हर स्तर पर राजनीतिक दलों के साथ सीधा जुड़ाव बढ़ाना है, यह सुनिश्चित करना है कि उनकी चिंताओं और सुझावों को जमीनी स्तर पर सुना जाए।

सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि आधार को किसी भी सरकारी प्रक्रिया से जोड़ने के लिए साबित करना जरूरी होगा कि यह वाकई जरूरी है और इससे कोई नुकसान नहीं होगा। याद रखना होगा कि यह प्रक्रिया केवल प्रशासनिक नहीं, चुनावी व्यवस्था पर जनता के भरोसे से जुड़ी हुई है।