
आम आदमी पार्टी के दिन लदने लगे
केतन सिंहा
आम आदमी पार्टी फिर से अपना जनाधार लौटाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में राज्यो के प्रभारियों और सहप्रभारियों की घोषणा और दिल्ली में जिला और मंडल स्तर पर समितियों का गठन कर पार्टी यह मानकर चल रही है कि बहुत जल्द प्रदेश भाजपा की दिल्ली सरकार से लोगों का मोहभंग और विश्वास टूटेगा और आम आदमी पार्टी फिर से आमलोगों से दिलों में अपनी जगह बनाने में सफल होगा।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए साल 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान मे जन लोकपाल आंदोलन से सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों की छवि राष्ट्रीय स्तर पर फैली थी। अन्ना हजार के मना करने के बाद भी अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में साल 2012 में आम आदमी पार्टी बनाई गई और पहली बार ही 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिह्न के साथ 28 सीटें लेकर कांग्रेस के साथ सरकार बना ली। कांग्रेस के साथ इस बेमेल जोड़ी का अंत 49 दिनों के बाद ही 14 फ़रवरी 2014 को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण केजरीवाल के त्यागपत्र के साथ समाप्त हो गया। लेकिन बहुत कम दिनो में ही पार्टी का जनाधार इस कदर बढ़ी की दोबारा चुनाव में विधान सभा की 70 सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा कर इतिहास रच दिया। कांग्रेस ने दोबारा खाता भी नही खोला जो आज तक बरकरार है। आप का ग्राफ दिल्ली से बढ़कर पंजाब तक फैल गया। छह राज्यों में उसके विधायक जीत गए। लेकिन एक के बाद एक बड़े नेताओं का जेल जाना भी घमंडी केजरीवाल की आंखे नहीं खोल सकी और इस साल दिल्ली का जो परिणाम आया उससे इस पार्टी का दुर्दिन गिनाना शुरु कर दिया। दस सालों के बाद जिसकी कल्पना भी केजरीवाल ने नहीं की थी , वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद सामने आ गया। भाजपा को 70 सीटों वाली दिल्ली में 48 सीटों के साथ बहुमत मिला वहीं आम आदमी पार्टी 22 सीटों में ही सिमट गई। पार्टी प्रधान अरविंद केजरीवाल, उपप्रधान मनीष सिसोदिया, तीसरे नंबर के सत्येंद्र जैन, सौरभ भारद्वाज और दुर्गेश पाठक सरीखे कई नेता चुनाव हार गए। इससे पार्टी अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी कि दिल्ली नगर निगम में उसकी सत्ता छिन गई। भाजपा ने वहा भी मेयर बनाकर आप को पटखनी दे दी।
आप की पराजय और पार्टी में बगावत तब चौकाने और झटका देने वाली सामने आई जब मई में दिल्ली नगर निगम में एक के बाद एक बाबी किन्नर सहित 16 पार्षदों ने बगावत कर आम आदमी पार्टी (आप) से इस्तीफा देकर इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी (आईवीपी) बना लिया। छह बार के पार्षद मुकेश गोयल और वरिष्ठ नेता हेमचंद गोयल की उपस्थिति में बगावती ने नई पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी के अध्यक्ष मुकेश गोयल ने कहा कि दिल्ली को आम आदमी पार्टी से बहुत उम्मीदें थी, लेकिन आप ने उन उम्मीदों को तोड़ दिया। स्थाई समिति के गठन को लटकाए रखने सहित आम आदमी पार्टी एक भी कार्य नहीं किया। इसकी वजह से हमने इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी बनाई और इसमें लगातार लोगों का समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी में और भी बहुत लोग आएंगे। हम भाजपा और आप के सभी पार्षदों से आग्रह करते हैं कि वह मुद्दों की राजनीति के लिए हमारी पार्टी में शामिल हो। कोरोना काल के दौरान शराब की बिक्री के कारण वो बदनाम हो गए। लोगों को भी मौका मिला कि वो ये कह सकें कि ये चरित्र के बारे में बोलता है और दूसरी तरफ़ शराब की बात करता है। आप के वे सभी नेता इसी बिना पर जेल गए, जिनसे जनता बहुत कुछ उम्मीद लगाए बैठी थी। जनता में सन्देश गया कि केजरीवाल बोलते कुछ और है, करते कुछ और है। तमाम लोक लुभावनी नारे, दिल्ली में मिल रही फ्री की रेवड़िया के बाद भी जनता ने घमंडी नेताओ को धूल चटा दिया है। जिस इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संगठन ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा जनहित की उपेक्षा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। उसी भ्र्ष्टाचार के दल-दल में एक के बाद एक नेता फसते चले गए, नतीजा सबके सामने है।
बताया जा रहा है कि विधान सभा चुनाव हारने के बाद दिल्ली की राजनीति से केजरीवाल की अरुचि ने यह स्थिति पैदा कर दी है कि अब पार्टी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगने लगने लगा है। आप के ज्यादातर आला नेता पंजाब और गुजरात पर ध्यान देना दे रहे हैं और दिल्ली को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया गया। यही कारण है कि जहां से पार्टी की शुरुआत हुई, रिकार्ड बनाए और केंद्र सरकार को ललकारा वहीं से उसके पराजय की पटकथा लिखनी शुरू हो गई है। कयास है कि पंजाब की तरह बहत कम दिनों में ही छह राज्यं उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, उत्तराखंड में बगावत की बू आने वाली है। दिल्ली के बाद केजरीवाल ने पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी की मौजूदा कांग्रेस सरकार को हराकर भारी जीत हासिल कर आप राज्य पार्टी संयोजक भगवंत मान जैसे मुख्यमंत्री का भी विरोध शुरू हो गया। पंजाब से आप विधायक एचएस फूलका व सुखपाल खैरा द्वारा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़े और खैरा के इस्तीफ़े के मज़मून में पार्टी नेतृत्व पर उठाए गए सवाल बहुत कुछ याद दिला रही है। अन्ना आंदोलन के बाद आप पार्टी बनने के बाद शामिल होकर दो चुनाव लड़ने वाले फूलका अब कह रहे हैं कि आप पार्टी नहीं बननी चाहिए क्योंकि पार्टी बनने से आंदोलन ख़त्म हो गया। वहीं खैरा आप नेतृत्व के कथित अहंकार व सुप्रीमो-कल्चर पर सवाल उठाते हुए आप द्वारा कांग्रेस से भविष्य में गठबंधन की अटकलों को इस्तीफे़ का कारण बताते हैं। 2015 में राष्ट्रीय टीम से प्रशांत भूषण व योगेन्द्र यादव के साथ ही एक सांसद डॉक्टर धर्मवीर गांधी ने भी आप के शीर्ष नेतृत्व की कथित सुप्रीमो-कल्चर के ख़िलाफ़ पंजाब में आवाज़ उठाई। पार्टी नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के कारण पार्टी ने दो सांसदों डॉक्टर गांधी और खालसा को पार्टी से निलंबित कर दिया।
इसी बीच ‘एक्सचेंज पालटिक्स’ के तहत आम आदमी पार्टी ने 26 फरवरी को चुनाव से बहुत पहले लुधियाना पश्चिम उपचुनाव के लिए राज्यसभा सांसद, उद्योगपति संजीव अरोड़ा को अपना उम्मीदवार घोषित कर आने वाले दिनों में अरविंद केजरीवाल को राज्यसभा में भेजने का रास्ता साफ कर दिया है। लुधियाना पश्चिम के विधायक गुरप्रीत गोगी की आत्महत्या के बाद यह सीट खाली हुई थी। महत्वपूर्ण यह है कि अभी तक इस सीट पर चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा नहीं की है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि संजीव अरोड़ा राज्यसभा के सदस्य के रूप में इस्तीफा चुनाव लड़ने से पूर्व देंगे या फिर उपचुनाव में जीतने के बाद करेंगे, लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को राज्यसभा में भेजने का रास्ता साफ हो जाएगा। दिल्ली में चुनाव हारने के बाद से ही राजनीतिक हलकों में यह चर्चा चल रही है कि अरविंद केजरीवाल पंजाब में सक्रिय होंगे लेकिन वह किस रूप में होंगे इसको लेकर तरह तरह की अटकलें है। अब राज्यसभा सदस्य संजीव अरोड़ा को लुधियाना पश्चिमी से उपचुनाव में उतारने की घोषणा होने के बाद से कम से कम यह साफ हो गया है कि संजीव अरोड़ा को न केवल यहां से जितवाने के लिए सरकार पूरा जोर लगाएगी बल्कि उन्हें कैबिनेट में लिया जाएगा। इस समय भगवंत मान की कैबिनेट में दो मंत्रियों के स्थान खाली हैं। कभी आम आदमी पार्टी की ओर से विपक्ष के नेता रहे कांग्रेस के विधायक सुखपाल खैरा ने एक्स पर लिखा कि आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा सदस्य संजीव अरोड़ा को लुधियाना पश्चिम से उम्मीदवार बनाकर यह तय कर दिया हैं कि अरविंद केजरीवाल पीछे के दरवाजे से राज्यसभा जाएंगे। उन्होंने लिखा कि केजरीवाल ने अरोड़ा को पंजाब में कैबिनेट में जगह दिलाने के लिए रिश्वत दी है ताकि उनकी राज्यसभा सीट हड़प सकें। पंजाब कांग्रेस के बड़े नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी दावा किया कि अरविंद केजरीवाल 100 फीसदी पंजाब से ही राज्यसभा जाएंगे।
केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भविष्य को लेकर इसलिए कयास लगने लगे हैं कि चूंकि इस वक्त पार्टी कई तरह की कानूनी और प्रशासनिक मुश्किलों में घिर गई है। पार्टी इस समय अपने वजूद को बचाने के लिए दोबारा लड़ रही है ताकि उसे वही लोकप्रियता फिर से मिल सके जिसके खिलाफ उसने राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त किया था। मई में ही दिल्ली हार के बाद संगठन में बड़े बदलाव कर नेताओं को नई जिम्मेदारी देकर पार्टी उत्तरप्रदेश पर खास फोकस करने का मन बनाया है। 2027 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने वहा पर खास फोकस किया है। उत्तरप्रदेश के लिए चार आला नेताओं को सह प्रभारी बनाया गया है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ने एक साथ कई राज्यों के प्रभारी और सह-प्रभारी नियुक्त कर अपने रूठे और दरकिनार किए गए कई नेताओं को नई जिम्मेदारियों की घोषणा करते हुए कई राज्यों के लिए प्रभारियों और सह-प्रभारियों की सूची जारी की है। इनमे तिमारपुर से टिकट काटे गए दिलीप पांडे को पार्टी का ओवरसीज कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया है। जितेंद्र सिंह तोमर को मध्य प्रदेश, राजेश गुप्ता को कर्नाटक, ऋतुराज गोविंद को हिमाचल प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उत्तराखंड के प्रभारी महेन्द्र यादव बनाए गए हैं। केरल में शेली ओबेरॉय, महाराष्ट्र में प्रकाश जारवाल, राजस्थान में धीरेज टोकस, तेलंगाना में प्रियंका कक्कड़, तमिलनाडु में पंकज सिंह और लद्दाख में प्रभाकर गौर को प्रभारी बनाया गया है। पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में विजय फुलारा और उत्तराखंड में घनेंद्र भारद्वाज को सह-प्रभारी बनाकर यह सन्देश भी देने की कोशिश की है कि अब नए लोगो को भी संगठन में सक्रिय किया जा रहा है।
आप के पूर्व सहयोगी नेता बोले–
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की पराजय के बाद आप के पूर्व नेता और स्वराज इंडिया पार्टी के सह-संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि दिल्ली चुनाव के नतीजे भाजपा की जीत कम और ‘आप’ की हार ज्यादा हैं। कहीं न कहीं आप से निराशा, उदासी थी। आप ने शुरू में राजनीति का ढर्रा बदलने की राजनीति का माडल दिखाया था। पर इसके बाद पार्टी राजनीति के पुराने ढर्रे में समा गई। सभी सुख सुविधाएं लेकर जनता में अपना विश्वास खो दिया। निशुल्क बिजली महिलाएं को बस में यात्रा भी उसकी चालबाजी को जिता नहीं सका अलबत्ता चुनाव परिणाम और उसके बाद तितर-बितर की स्थिति सबके सामने है। जबकि किसी समय केजरीवाल के सहयोगी रहे और कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि दिल्ली की जनता ने तय कर लिया था कि अरविंद केजरीवाल को हराना है। अगर हम साथ लड़ते तो और भी बुरा हश्र होता। दीक्षित ने कहा कि दिल्ली की जनता ने किसी को हराया नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाया है। दिल्ली की जनता ने तय कर लिया था कि केजरीवाल को हराना है। संदीप दीक्षित ने शराब नीति, शीशमहल, खराब सड़कें और भ्रष्टाचार का भी जिक्र करते हुए कहा कि आगे भी पार्टी का बुरा हाल वाला है।
कांग्रेस नेता बोले–
कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने और मिलकर चुनाव लड़ने को एक भूल बताया। वहीं दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। अजय माकन ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर होने और दिल्ली की दुर्दशा का एक बड़ा कारण दस साल पहले कांग्रेस की ओर से केजरीवाल सरकार को समर्थन देना था। माकन यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि केजरीवाल को अगर एक शब्द में परिभाषित किया जा सकता है तो वह शब्द है फर्जीवाल। माकन ने कहा कि केजरीवाल की कोई विचारधारा नहीं है सिवाय अपनी निजी महत्वाकांक्षा के। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने भी केजरीवाल की हार पर कहा कि आप को अब जनता की अदालत में जाने की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि जब केजरीवाल को सत्ता और पद का लालच ही नहीं है तो फिर क्यों भगवान की शरण में जा रहे हैं ?
भाजपा नेता बोले–भाजपा नेता वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि आप की सरकार ने दिल्ली में सिर्फ वादे किए, लेकिन हकीकत में जनता को धोखा दिया। दिल्ली में प्रदूषण, पानी, बिजली और सड़क जैसी समस्याएं जस की तस बनी हुई थी। उन्होंने कहा कि उन्हें जनता से माफी मांगने की जरूरत है। असल में वह पंजाब में बिखरती आम आदमी पार्टी को संभालने और राज्यसभा चुनाव की रणनीति बनाने जा रहे हैं। सचदेवा ने कहा अरविंद केजरीवाल जनता के किसी काम नहीं आते, बल्कि जनता के पैसों से अपनी मौज-मस्ती में लगे हुए थे। दिल्ली में हाल ही में हुए नगर निगम में आप को करारी हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद आम आदमी पार्टी को जनता के बीच जाकर आत्मचिंतन करना चाहिए।