गोपेन्द्र नाथ भट्ट
आम आदमी पार्टी (आप) की आतिशी नेता आतिशी शनिवार को दिल्ली की तीसरी और सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री बन गईं।इसके साथ ही आम आदमी पार्टी के पांच विधायक गोपाल, सौरभ भारद्वाज, इमरान हुसैन, कैलाश गहलोत और मुकेश अहलावत ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली है।
आतिशी ने शनिवार शाम को मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली। दिल्ली के राज निवास में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने आतिशी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। इसके साथ ही आतिशी कांग्रेस नेता शीला दीक्षित और भाजपा नेता सुषमा स्वराज के बाद दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गयी हैं। शीला दीक्षित 15 वर्षों से अधिक समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही जबकि सुषमा स्वराज इस पद पर मात्र 52 दिनों तक ही इस पद पर रह पाई। आतिशी दिल्ली के निवर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की काफी विश्वास पात्र मानी जाती हैं। आतिशी ने मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही अरविंद केजरीवाल के पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया । साथ ही घोषणा की कि मैं मात्र चार महीने मुख्यमंत्री रहूंगी । मैं केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली विधान सभा के चुनाव जीतने तक ही इस पद पर हूं।दिल्ली शराब नीति मामले में जेल से रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और आतिशी को नया मुख्य्मंत्री बनाने का ऐलान किया था। साथ ही कहा था कि वह जनता की अदालत में जाएंगे और जनता से फिर से निर्वाचित होने के बाद ही सीएम पद की कुर्सी पर बैठेंगे। शुक्रवार की रात केजरीवाल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया ।
दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी आतिशी ने साल 2013 में आम आदमी पार्टी में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा था और 11 सालों में वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गईं। साल 2023 में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के शराब नीति मामले में जेल जाने के बाद आतिशी ने शिक्षा मंत्री का पद संभाला था। बाद में केजरीवाल के भी जेल में जाने के बाद वह दिल्ली सरकार में कैबिनेट में मंत्री के रूप में वित्त, राजस्व, पीडब्ल्यूडी, बिजली, सेवा, महिला और बाल विकास विभाग सहित 14 मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुकी हैं। वह पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की काफी भरोसेमंद रही हैं और उन्होंने मनीष सिसोदिया के सलाहकार के रूप में काम किया था। केवल अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ही नहीं, पार्टी के अन्य नेताओं और आम कार्यकर्ताओं के साथ भी आतिशी के बहुत ही अच्छे संबंध हैं और वह पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं की पसंद मानी जाती है।इसके साथ ही बड़ी बात यह है कि वह पार्टी के किसी भी गुट से नहीं जुड़ी हुई हैं और इससे आतिशी के सीएम बनने से पार्टी में बिखराव की कोई संभावना नहीं है।
केजरीवाल ने आतिशी को बहुत ही भरौसे के साथ अपना उत्तराधिकारी चुना हैं।आतिशी के मात्र 11 साल की राजनीति में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की कहानी बहुत दिलचस्प है।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आतिशी को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में जिस कारक से सबसे ज्यादा काम किया है वह हैं केजरीवाल का उन पर भरोसा। केजरीवाल ने चाहे संगठन का काम हो या फिर सरकार में विभिन्न मंत्रालय का काम हो,उन पर सबसे ज्यादा भरोसा किया था। शराब नीति मामले में पार्टी के एक के एक बाद एक नेताओं पर ईडी का शिकंजा कसता गया। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन और बाद में केजरीवाल को जेल जाना पड़ा।ऐसे में आतिशी ने पार्टी और संगठन की मजबूती से बागडोर संभाली और पार्टी के साथ-साथ केजरीवाल का विश्वास भी अर्जित किया। इसके अलावा अरविंद केजरीवाल जब जेल में थे, तो उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल का सदा साथ दिया. वह हर समय सुनीता केजरीवाल के साथ दिखीं। उन्होंने इन नाजुक पलों में पार्टी नेता से ज्यादा एक परिवार की भूमिका निभाई और केजरीवाल के पूरे परिवार को संभालने में काम अहम काम किया। इसके साथ ही स्वाति मालीवाल ने जब पार्टी पर आरोप लगाया तो आतिशी एक मजबूत ढाल के रूप में पार्टी के सामने खड़ी हो गयी।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आतिशी ने संगठन सरकार और प्रशासन में अपने कामकाज के बलबूते पर बहुत ही कुशलता हैके साथ काम कर अपनी श्रमता का परिचय दिया । आतिशी की प्रशासनिक योग्यता इस बात से साबित हो गई कि उन्होंने केजरीवाल के मंत्रिमंडल में शिक्षा, लोकनिर्माण, वित्त सहित कुल 14 मंत्रालय का कामकाज कुशलता पूर्वक संभाला। आतिशी को मिली जिम्मेदारी से समझा जा सकता है कि पार्टी और केजरीवाल का उन पर कितना भरोसा था। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि आतिशी की छवि बहुत ही साफ सुधरी है और उन्होंने ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थान से शिक्षा हासिल की है। ऐसे में उनकी शैक्षणिक और प्रशासनिक योग्यता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। जिस तरह से केजरीवाल को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने आईआरएस की नौकरी छोड़कर राजनीति सेवा के लिए चुना था। उसी तरह से आतिशी की योग्यता और क्लीन इमेज को पार्टी आने वाले चुनाव में भुनाएंगी। दिल्ली शराब नीति मामले में आप पार्टी के एक के बाद एक नेताओं पर ईडी का शिकंजा कस रहा था। ऐसे समय में आतिशी पार्टी की बुलंद आवाज बनीं। उन्होंने उस समय पार्टी को संभाला, जब पार्टी को सबसे ज्यादा एक मजबूत और सशक्त नेता की जरूरत थी। पार्टी के नेता एक ओर कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर आतिशी मीडिया के जरिए जनता में आम आदमी पार्टी की आवाज बलुंद कर रही थी। आतिशी एक कुशल वक्ता हैं। आतिशी के भाषण दिल छूने वाले होते हैं। वह अपनी भाषण से लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। उन्होंने पार्टी नेताओं का जमकर बचाव किया और बीजेपी पर लगातार हमला बोलती रही।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पकड़ और विस्तार के पीछे महिलाओं का आम आदमी पार्टी को समर्थन महत्वपूर्ण सम्बल माना जाता है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना की घोषणा की थी। इस योजना के तहत दिल्ली की 50 लाख महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपए दिये जा रहे हैं। इसके साथ ही महिलाओं को दिल्ली परिवहन निगम की बसों में कोई भी किराया नहीं लगता है।आधी आबादी को आप का बड़ा वोट बैंक माना जाता है।आतिशी का महिला होना ने उनके सीएम पद तक पहुंचने की राह को आसान कर दिया, क्योंकि आतिशी सीएम बनने के साथ ही वह दिल्ली की तीसरी सबसे छोटी उम्र की महिला मुख्यमंत्री हो गयी हैं और अगले विधासनभा चुनाव में एक महिला सीएम के नेतृत्व मुद्दे पर भी आम आदमी पार्टी जनता के मध्य जा सकती हैं।
चुनाव आयोग द्वारा तय समयावधि के अनुसार दिल्ली में अगले वर्ष 2025 में विधानसभा के चुनाव होने है। आप पार्टी के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल 9 वर्ष से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहें है जो कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के 15 वर्षों तक लगातार और सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने के रिकार्ड से कम है लेकिन यदि अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में आने वाले विधानसभा चुनाव जीत कर फिर से मुख्यमंत्री बनते है तो शीला दीक्षित के रिकार्ड की बराबरी तक पहुंच सकते है। इधर भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में 2998 यानी 26 वर्षों से सत्ता के बाहर है। एक समय था जब पंडित नेहरू इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के दौरान भी दिल्ली में भाजपा का बबदबा था और मदन लाल खुराना प्रो केदारनाथ सहानी और बाद में डॉ हर्षवर्धन जैसे नेताओं की तूती बोलती थी लेकिन बाद में देश की राजधानी दिल्ली में दिनों दिन भाजपा का ग्राफ गिरता रहा। भाजपा को इस बात की कसक है और उसका हीर्ष नेतृत्व चाहता है कि यह केन प्रकारने दिल्ली के किले पर फिर से किस कब्जा होवे। लोकसभा के चुनावों में भाजपा यहां अच्छा प्रदर्शन करती है लेकिन विधान सभा अभी भी सपना ही है। पिछले तीन दशकों में कांग्रेस और भाजपा के वोट बैंक पर आप पार्टी ने कब्जा कर लिया है जिसके बलबूते पर अरविन्द केजरीवाल का अभ्युदय हुआ। हालांकि आप पार्टी अब कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन का हिस्सा है लेकिन विधान सभा चुनाव में इनकी नीति अकेला चलो वाली है,जिसके चलते वे इस बार हरियाणा विधान सभा चुनाव में भी अपने दम पर ही चुनाव लड़ रही है।गुजरात विधान सभा चुनाव में करीब 13 प्रतिशत वोट लेकर आप पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का तमगा ले चुकी है और पंजाब में अपनी सत्कार बनाने के बाद अरविन्द केजरीवाल की महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। उनका निशाना दिल्ली के तख्त पर है।
भाजपानीत एन डी ए सरकार ने हाल ही वन नेशन वन इलेक्शन की सिफारिशों को स्वीकार किया है और संसद के शीतकालीन सत्र में तदसंबंधित विधेयक भी पारित होने की संभावना है।
ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि देश में जिन विधानसभाओं के निकट भविष्य में चुनाव होने है उसे लेकर मोदी सरकार आने वाले दिनों में क्या फैसला लेने वाली है? यदि इन विधान सभाओं के कार्यकाल समाप्त होते ही वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया जाता है तो सत्ता में पुनः लोटने का सपना देखने वाले नेताओं के लिए दिल्ली दूर की कोड़ी ही साबित होगी।