स्वच्छ जल की सुलभता: आज भी याद चुनौती !

Access to clean water: A challenge still remains!

सुनील कुमार महला

भौगोलिक दृष्टि से भारत विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से आज के समय दुनिया का सबसे बड़ा देश है। पाठकों को बताता चलूं कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के नवीनतम आंकड़ों से यह पता चलता है कि पिछले दशक में भारत की जीडीपी में 105 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, भारत की जीडीपी वर्तमान में 4.3 ट्रिलियन डॉलर है। वर्ष 2015 में जीडीपी 2.1 ट्रिलियन डॉलर थी।अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ ही सालों में भारत ने सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी के मामले में अपनी अर्थव्यवस्था को दोगुना से भी अधिक कर लिया है।सच तो यह है कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में जापान को पीछे छोड़ने के कगार पर है।जापान की जीडीपी वर्तमान में 4.4 ट्रिलियन डॉलर है और भारत 2025 की तीसरी तिमाही तक उस आंकड़े को पार कर जाएगा और यदि विकास की औसत दर इसी तरह जारी रही, तो भारत वर्ष 2027 की दूसरी तिमाही तक जर्मनी को भी पीछे छोड़ देगा, यह बहुत अच्छी बात है। आज भारत अंतरिक्ष से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो या चिकित्सा का क्षेत्र या कोई भी अन्य क्षेत्र, लगभग-लगभग सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति कर रहा है। यहां तक कि भारत ने पिछले सालों में देश ने अलग-अलग क्षेत्रों में विकास के नये कीर्तिमान रचे हैं और वर्तमान में भी भारत लगातार विकास और उन्नयन के पथ पर अग्रसर है, लेकिन स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के मोर्चे पर देश की प्रगति को संतोषजनक कतई नहीं कहा जा सकता है। कहते हैं कि ‘जल ही जीवन है।’ जल बिना मनुष्य सहित धरती के सभी प्राणियों/जीवों तथा वनस्पतियों का जीवन संभव नहीं है। जल, मानव, जीवों व वनस्पतियों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख प्राकृतिक व सीमित संसाधन है। यह न केवल ग्रामीण और शहरी समुदायों की स्वच्छता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी बहुत आवश्यक है।कहना ग़लत नहीं होगा कि स्वच्छ जल की उपलब्धता हर व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है, लेकिन आज भी बहुत से लोग स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं। बड़े महानगरों से लेकर छोटे शहरों, ग्रामीण दूर-दराज के इलाकों में आज भी स्वच्छ जल की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पाठक जानते होंगे कि पृथ्वी पर मौजूद पानी का 97% हिस्सा समुद्रों में है।धरती पर मौजूद मीठे पानी का 2.7% हिस्सा ही झील, नदी, और भूजल के रूप में है और मीठे पानी का 0.6% हिस्सा नदियों, झीलों, और तालाबों में है। गौरतलब है कि पृथ्वी पर मौजूद मीठे पानी का 2.4% हिस्सा ग्लेशियरों और ध्रुवों में जमा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से केवल 3% हिस्सा ही पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और इसमें से भी ज़्यादातर हिस्सा ग्लेशियरों और ध्रुवों में जमा है।आज दुनिया भर में कई लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं, भारत भी इनमें से एक है। वास्तव में दूषित पानी पीने से कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं और जल प्रदूषण की वजह से कई जलीय प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं। पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही देश के 302 जिलों के सर्वे को लेकर ‘लोकल सर्कल्स की रिपोर्ट’ सचमुच चिंताजनक है, जिसमें यह कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में तो 12 फीसदी घरों तक तो पाइप लाइन से पेयजल आपूर्ति ही नहीं हो पा रही और जिन्हें मिल भी रहा है उनमें भी महज छह फीसदी घरों को ही स्वच्छ जल सुलभ हो पा रहा है, क्या यह चिंताजनक बात नहीं है ? पाठकों को बताता चलूं कि नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 में जारी कम्पोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में बताया गया है कि देश भर के लगभग 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद और अन्य) वर्ष 2020 तक शून्य भूजल स्तर तक पहुँच जाएंगे एवं इसके कारण लगभग 100 मिलियन लोग प्रभावित होंगे। इतना ही नहीं,वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग, उसकी पूर्ति से लगभग दोगुनी हो जाएगी। आंकड़े बताते हैं कि देश में वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घनमीटर थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घनमीटर रह गई तथा वर्ष 2025 तक इसके और घटकर 1600 घनमीटर रह जाने का अनुमान है।आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 970 लाख लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है,जबकि देश के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन 70 प्रतिशत लोग प्रदूषित पानी पीने और 33 करोड़ लोग सूखे वाली जगहों में रहने को मजबूर हैं। बहरहाल,हम जानते हैं कि आज देश की आबादी लगातार बढ़ती चली जा रही है। शहरीकरण, औधोगिकीकरण में लगातार बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में बढ़ती आबादी, शहरीकरण और औधोगिकीकरण के बीच जल की जरूरतों को पूरा कर पाना कोई आसान काम नहीं है। जल के प्रति हमारी एक आम सोच यह भी है कि जल एक कभी भी नहीं समाप्त होने वाला धरती का बड़ा संसाधन है।हम आज पानी को व्यर्थ बहाते हैं। पानी की कीमत को हम नहीं समझते हैं। आज देश को बढ़ती आबादी के अनुरूप पाइप लाइनों के विस्तार, ट्रीटमेंट प्लांटों की संख्या में वृद्धि जैसी आधारभूत साधन-सुविधाओं की जरूरत है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने जल संरक्षण व स्वच्छ पेयजल की हर व्यक्ति तक उपलब्धता के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। आज देश में जल संरक्षण को लेकर तरह तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं, आम आदमी को जागरूक किया जा रहा है। पाठकों को बताता चलूं कि हर घर जल भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में वर्ष 2024 तक हर ग्रामीण घर में नल का पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई एक योजना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2019 के केंद्रीय बजट में इस योजना की घोषणा की थी। गौरतलब है कि अपनी स्थापना के बाद से, इस योजना ने भारत में घरेलू स्वच्छ नल के पानी की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार किया है। इस योजना के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नियमित और दीर्घकालिक आधार पर पर्याप्त मात्रा में निर्धारित गुणवत्ता वाला पीने का पानी उपलब्ध कराया गया है। इतना ही नहीं,ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक परिवार को नल कनेक्शन प्रदान करने हेतु जलापूर्ति अवसंरचना का विकास किया गया है।जलापूर्ति प्रणाली को दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करने हेतु विश्वसनीय पेयजल स्रोतों का विकास सुनिश्चित किया गया है। यहां तक कि धूसर जल का प्रबंधन तक किया गया है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि घरेलू प्रक्रियाओं (जैसे बर्तन धोना, कपड़े धोना और स्नान करना) से उत्पन्न अपशिष्ट जल को धूसर जल कहा जाता है। इतना ही नहीं,विभिन्न संस्थाओं, प्रयोगशालाओं, परीक्षण और निगरानी आदि के माध्यम से समुदायों की क्षमता निर्माण किया गया है, लेकिन इन सबके बावजूद भी क्या यह तथ्य चिंताएं पैदा नहीं करता है कि सर्वे में देश के 485 शहरों को मिलाकर मात्र 46 नगर पालिकाएं ही स्वच्छ पानी के लिए तय मापदंडों पर 100 प्रतिशत खरी उतरी है। शेष सभी जगह पानी स्वच्छ नहीं है। आज शहरों ही नहीं, गांवों में वाटर प्यूरीफायर,आर ओ लगने लगें हैं, क्यों कि पानी प्रदूषित है। कुछ लोग गांवों में फिटकरी पाउडर/ब्लीचिंग पाउडर वगैरह छिड़क कर तो कुछ लोग पानी को उबालकर और छानकर तक प्रयोग में ला रहें हैं अथवा कुछ लोग बाहर से (आर.ओ.) से पानी की सप्लाई अपने घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों में मंगवाते हैं।सच तो यह है कि इन सब उपायों के बावजूद लोगों को पीने का शुद्ध पानी प्राप्त करने के लिए काफी मशक्कत व परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। नीति आयोग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि स्वच्छ जल के अभाव में हर साल दो लाख से ज्यादा लोगों की जान जा रही है। पाठकों को बताता चलूं कि नीति आयोग की इसी रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 600 मिलियन लोगों को पानी के तनाव का सामना करना पड़ सकता है, जो भारत की अनुमानित आबादी का लगभग 40% है।एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में भारत में 0.5 मिलियन मौतें अस्वच्छ जल स्रोतों की वजह से हुई थीं। पाठकों को बताता चलूं कि दूषित जल पीने से मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, दिमागी बुखार, पेचिश, टाइफ़ॉइड, पीलिया, हैजा जैसी बीमारियां फैलतीं हैं। हाल फिलहाल, पेयजल की शुद्धता को लेकर शहरों का ही यह हाल है तो गांवों की स्थिति का तो सहज ही अंदाजा लगाया ज सकता है। पानी की दिक्कत सबसे ज्यादा मेट्रो शहरों और रेगिस्तानी इलाकों के लोगों को होतीं हैं और राजस्थान जैसे राज्य में तो आज भी दूर-दराज के इलाकों में पनिहारियों को कोसों कोसों से पानी लाना पड़ता है और पानी को घी की तरह फूंक-फूंक कर इस्तेमाल करना पड़ता है। आज जरूरत इस बात की है कि ‘जल जीवन मिशन’ को और आगे बढ़ाया जाए और इसकी सतत् निगरानी की जाए। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोगों के घरों तक शुद्ध पेयजल की आपूर्ति हो, क्यों कि स्वस्थ जनसंख्या ही देश व समाज के विकास में योगदान दे सकती है। इसके लिए सरकारों के साथ ही हम सभी को सामूहिकता से आगे आना होगा और प्रतिबद्धता, ईमानदारी के साथ काम करना होगा। हमें यह भी समझना होगा कि जल धरती पर उपलब्ध एक बहुत ही सीमित संसाधन है। हमें जल का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा।