नरेंद्र तिवारी
मध्यप्रदेश में जन सुविधाओं के क्या हाल है। क्या सचमुच प्रदेश विकसित राज्य की और कदम बड़ा रहा है ? क्या राज्य में लोक कल्याण से जुड़ा तंत्र जनता के जानमाल की रक्षा करने में सक्षम नजर आ रहा है ? क्या नागरिक समाज से जुड़ी सुविधाओं के बेहतर क्रियान्वयन की दिशा में राज्य सरकार का तंत्र ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा है ? इन सब प्रश्नों का जवाब प्रदेश में हाल में हुए हादसों में मिलता दिखाई दे रहा है। प्रदेश में हुए यह हादसे प्रदेश की सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोलते नजर आ रहे है। यह हादसे चीख–चीख कर शिकायत कर रहे है की मध्यप्रदेश में प्रशासनिक तंत्र में फैला व्यापक भष्ट्राचार जनहितों की अनदेखी कर रहा है। जनता के जानमाल की कीमत इस भष्ट्र तंत्र के लिए कुछ मायने नहीं रखती। इस तंत्र को महज अवैध कमाई से मतलब दिखाई देता है, क्या गुना में हुए बस हादसे जिसमे 13 निर्दोष यात्रियों की दुर्घटना के दौरान बस में लगी आग में जल जाने से मौत हो गई। इस हादसे में 16 से अधिक यात्री बुरी तरह झुलस गए। प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घटना पर गहरा दुख जताया है। मृतकों के परिवार को 4–4 लाख रु एवं घायलों को 50–50 हजार रु की आर्थिक सहायता दिए जाने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने घटना की जांच के निर्देश देते हुए कहा इस घटना के जो भी जिम्मेदार है उसे नही छोड़ेंगे। घटना के बाद गुना आरटीओ एवं सीएमओ को निलंबित कर दिया गया है। गुना एसपी के अनुसार बस में 30 सवारियां बैठी थी।
दुर्घटनाग्रस्त बस 15 साल पुरानी थी, इस बस का बीमा, परमिट भी नहीं था। फिटनस फरवरी 2022 को ही खत्म हो गया था। बस हादसा इतना भयावह था की रोंगटे खड़े हो गए। शवों को उठाने के दौरान शरीर के अंग गिर रहे थै। शव एक दूसरे से चिपक गए थै। अपनी मंजिल पर पहुंचने का इंतजार कर रहे यह यात्रीगण प्रशासनिक उपेक्षा के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठे।शवों की दुर्दशा ऐसी की परिजन भी अपने परिवार के व्यक्ति को पहचान नही पा रहे थै। गुना में घटित बस हादसा प्रदेश के परिवहन विभाग के भ्रष्ट आचरण, अनियमितता और अनदेखी का प्रमाण है। घटना उपरांत प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सख्ती दिखाई तब जाकर परिवहन विभाग सम्पूर्ण प्रदेश में बसों की चेकिंग करने में जुट गया। जैसे गहरी नींद में सोया जनता की परिवहन व्यवस्था को देखने वाला यह विभाग अचानक जाग गया हो। अब प्रदेश का आरटीओ विभाग प्रदेशभर में यात्री सुविधाओं के लिए संचालित बसों के परमिट, फिटनेस, बीमा आदि दस्तावेजों की जांच करने का दिखावा कर रहा है। गुना के इस ह्रदय विदारक हादसे को लेकर मध्यप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इसे संस्थागत हत्या का मामला बताया है। उन्होंने कहा ऐसा लगता है की गुना में समूची व्यवस्था भष्ट्राचार की अग्नि में जलकर स्वाहा हो गई।
दरअसल ऐसे हादसों से सबक लेने की आवश्यकता है। वर्तमान में प्रदेश में परिवहन व्यवस्था चरमराई हुई है। सड़को पर खटारा बसें दौड़ रही है। बस स्टेशनों पर एजेंटो का शासन है। यह ऐजेंट पुलिस के अवैध कमाई के जरिए है। यह इंदौर, भोपाल, ग्वालियर या जबलपुर की स्थिति नहीं अमूमन सारे मध्यप्रदेश के बस स्टेशनों का एक सा चित्र है। बरसो से बस स्टेशनों की एक ही कहानी है। मध्यप्रदेश राज्य परिवहन निगम जब तक था। नागरिकों को अपनत्व नजर आता था। बस के चालक, परिचालक परिवार की तरह जिम्मेदारी निभाते नजर आते थै। राज्य परिवहन निगम के स्थान पर निजी बसों का संचालन किया जाने लगा। एक रास्ते पर एक ही समय चलने वाली बसें संचालको के विवाद का कारण है। बस स्टेंडो पर सवारियों के लिए झगड़े आम होने लगे। दूसरे राज्य की बसों को ऐजेंट सवारी नहीं बिठाने से रोक देते है। महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्य की बसों को जो प्रायवेट बसों से कम किराया भी लेती है। जिसकी बैठक व्यवस्था भी एमपी में संचालित प्रायवेट बसों की तुलना में बेहतर और सुविधाजनक है। अनेकों बार इन बसों के चालको, परिचालको को प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर में सरवटे बस स्टैड पर एजेंटो की ज्यादती का सामना करना पड़ा। इस ज्यादती से यात्री भी नहीं बच सके है। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में एजेंटों की सवारी बैठाने की लड़ाई प्रतिदिन का किस्सा है। हर शहर का बस स्टेंड इन एजेंटों की खींचतान का गवाह बना हुआ है। यह खींचतान आपसी विवाद का कारण बनी हुई है। बसों में सवारी बैठाने की इस लड़ाई ने शहरो में बस माफियाओं को जन्म दिया। इन बस माफियाओं के तार राजनीति से भी जुड़े हुए है और इनकी आरटीओ विभाग से भी मिलीभगत है। यह मिलीभगत जनता की जान की दुश्मन बनी हुई है। इसी तरह सवारियों को बैठाने पर हुए विवाद में प्रदेश के बड़वानी जिले की सेंधवा तहसील के करीब बालसमद आरटीओ बैरियर से कुछ दूरी पर 21अगस्त 2011 को हुए विवाद में सेंधवा से इंदौर की ओर जा रही सांई ट्रेवल्स की बस को रोककर अशोका ट्रेवल्स के तीन कर्मचारियों ने पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी थी। उक्त हादसे में 15 लोगो की मौत हो गई थी। यह दर्शनाक और हृदय विदारक घटनाक्रम जिसने भी देखा दहल गया। बस में शव राख हो गए थै। परिजन अपने परिवार के सदस्यों तक को नहीं पहिचान सके, उनकी निशानियां ही पहिचान बन पाई। घटना के बाद बड़वानी जिले के सेंधवा आए तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भावुक हो गए थै। उन्होंने भी सख्ती दिखाई थी। लग रहा था आमजन की महती जरूरत बनी परिवहन व्यवस्था में सुधार होगा? किंतु 2011 से 2023 तक परिवहन व्यवस्थाओं में कोई सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा। ऐसा लगता है, निर्दोष यात्रियों की जान के साथ खेला जा रहा है। गुना का उक्त हादसा संस्थागत हत्या के मामले जैसा ही ही नजर आता है। गुना में ही नहीं हादसा तो प्रदेश के खंडवा के घासपुरा इलाका में भी 27 दिसंबर की शाम 7:45 बजे घटित हुआ यहां एक मकान में संचालित अवैध गैस गोडाउन में जो रहवासी बस्ती में स्थित था। गैस की रिफलिंग करते समय आग लग गई। देखते ही देखते हड़कंप मच गया। एक–एक कर चालीस गैस सिलेंडरों में विस्फोट हुआ। इस हादसे में 7 लोग घायल हुए। बताते है की 100 से भी अधिक गैस सिलेंडर यहां रखे थै। घटना के बाद आसपास के घरों को तुरतफुरत खाली कराया गया। क्या गैस सिलेंडरों का इतने बड़े पैमाने पर संग्रहण कर रहवासी बस्ती में रखे जाना उचित है ? क्या यह नागरिकों की जान से खिलवाड़ नहीं है ? वह तो समय शाम का था। रहवासी जाग रहे थै। यह आगजनी देर रात हुई होती तो जानमाल के भारी नुकसान से इंकार नहीं किया जा सकता है। एक आम नागरिक को अपनी घरलू गैस की टंकी का कनेक्शन लेने और टंकी प्राप्त करने में काफी जद्दोजहद करना पड़ती है। इसके विपरित धंधेबाज बड़ी मात्रा में टंकिया जुटा लेते है। खंडवा में भी उक्त व्यक्ति बरसो से गैस सिलेंडरों का संग्रहण कर रहा था। स्थानीय पार्षद के अनुसार अनेकों बार प्रशासन को इसकी सूचना दी गई थी। प्रशासन का इतनी बड़ी संख्या में रहवासी बस्ती में टंकियों के संग्रहण को न रोक पाना जनहित की अनदेखी है। गैस रिफलिंग और घरेलू गैस का वाहनों में अवैध रूप से भरे जाने का गोरखधंधा हर शहर, गांव और बस्ती में प्रशासन की नाक के नीचे चल रहा है।
अवैध कमाई का यह जरिया आमजन की जान का दुश्मन साबित हो सकता है। ऐसा नहीं है की आग के इस खेल के दुष्परिणाम प्रदेश ने नहीं भोगे हो, 12 सितंबर 2015 में झाबुआ के पेटलावद में अवैध रूप से रखी गई जिलेटिन की छड़ों के गोदाम में हुआ विस्फोट 78 बेगुनाह लोगो की जान का दुश्मन बन गया था। इस हादसे में मृतकों के शरीर के चीथड़े उड़ गए थै। सरकार है की सबक लेती नही गुना और खंडवा की कोताही भी सबक का संकेत दे रही है। प्रदेश की नई सरकार के मुखिया मोहन यादव इन घटनाओं से सबक लेकर सख्ती और सर्तकता का माहौल हर दम बनाए रखेंगे। सरकार की सख्ती आमजन के हित में होना चाहिए। प्रशासनिक व्यवस्थाओं में व्याप्त भष्ट्राचार आमजन के हितों को प्रभावित करता है। यह हादसे सरकार की शिकायत करते प्रतीत हो रहे है। आशा है। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री इन हादसों से सबक लेकर जनहित में प्रशासनिक अनियमितता पर सख्ती करेंगे। जनसामान्य के जानमाल की रक्षा करना, जनता को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य सरकार का अनिवार्य दायित्व है।