ललित गर्ग
आचार्य महाश्रमण भारत की संत परम्परा के महान् जैनाचार्य है, जिस परंपरा को महावीर, बुद्ध, गांधी, आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने अतीत में आलोकित किया है। अतीत की यह आलोकधर्मी परंपरा धुंधली होने लगी, इस धुंधली होती परंपरा को आचार्य महाश्रमण एक नई दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यह नई दृष्टि एक नए मनुष्य का, एक नए जगत का, एक नए युग का सूत्रपात कही जा सकती है। वे आध्यात्मिक इन्द्रधनुष की एक अनूठी एवं सतरंगी तस्वीर हैं। उन्हें हम ऐसे बरगद के रूप में देखते हैं जो सम्पूर्ण मानवता को शीतलता एवं मानवीयता का अहसास कराता है। इस तरह अपनी छवि के सूत्रपात का आधार आचार्य महाश्रमण ने जहाँ अतीत की यादों को बनाया, वहीं उनका वर्तमान का पुरुषार्थ और भविष्य के सपने भी इसमें योगभूत बन रहे हैं। विशेषतः उनकी विनम्रता और समर्पणभाव उनकी आध्यात्मिकता को ऊंचाई प्रदत्त रह रहे हैं। भगवान राम के प्रति हनुमान की जैसी भक्ति और समर्पण रहा है, वैसा ही समर्पण आचार्य महाश्रमण का अपने गुरु आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति रहा है। 10 मई 2022 को राजस्थान के सरदारशहर में आचार्य श्री महाश्रमण को ‘युगप्रधान’ अलंकरण प्रदत्त किया जा रहा है, यह उनकी जन्म भूमि भी है, जहां 13 मई 2022 को वे अपना षष्ठीपूर्ति जन्मोत्सव भी मनायेेंगे।
आचार्य महाश्रमण जन्म से महाश्रमणता लेकर नहीं आए थे, महाश्रमण कोई नाम नहीं है, यह विशेषण है, उपाधि और अलंकरण है। गुरुदेव तुलसी ने इसे नामकरण बना दिया और आचार्य महाप्रज्ञ ने इसे महिमामंडित कर दिया, क्योंकि उपाधियाँ भी ऐसे ही महान् पुरुषों को ढूँढ़ती हैं जिनसे जुड़कर वे स्वयं सार्थक बनती हैं। ‘युगप्रधान’ की भी ऐसा ही अलंकरण है। उनके वैशिष्ट्य का राज है उनका प्रबल पुरुषार्थ, उनका समर्पण, अटल संकल्प, अखंड विश्वास और ध्येय निष्ठा। एमर्सन ने सटीक कहा है कि जब प्रकृति को कोई महान कार्य सम्पन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिये एक प्रतिभा का निर्माण करती है।’ निश्चित ही आचार्य महाश्रमण भी किसी महान् कार्य की निष्पत्ति के लिये ही बने हैं। ऐसे ही अनेकानेक महान् कार्यों उनके जीवन से जुड़े हैं, उनमें एक विशिष्ट उपक्रम है अहिंसा यात्रा। आचार्य श्री महाश्रमण ने दिनांक 9 मार्च 2014 को राजधानी दिल्ली के लाल किला प्राचीर से अहिंसा यात्रा का शुभारंभ किया था और इसी दिल्ली में 27 मार्च 2022 को आठ वर्षीय इस ऐतिहासिक, अविस्मरणीय एवं विलक्षण यात्रा का समापन तालकटोरा स्टेडियम में होना एक सुखद संयोग है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आनलाइन उद्बोधन हुआ तो रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह एवं लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिडला ने इस अवसर पर साक्षात् सम्बोधित किया।
आचार्य महाश्रमण ने उन्नीस राज्यों एवं भारत सहित तीन पड़ोसी देशों की करीब सत्तर हजार किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए अहिंसा और शांति का पैगाम फैलाया। करीब एक करोड़ लोगों को नशामुक्ति का संकल्प दिलाया। नेपाल में भूकम्प, कोरोना की विषम परिस्थितियों में इस यात्रा का नक्सलवादी एवं माओवादी क्षेत्रों में पहुंचना आचार्य महाश्रमण के दृढ़ संकल्प, मजबूत मनोबल एवं आत्मबल का परिचायक है। आचार्य महाश्रमण का देश के सुदूर क्षेत्रों-नेपाल एवं भूटान जैसे पडौसी राष्ट्रों सहित आसाम, बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि में अहिंसा यात्रा करना और उसमें अहिंसा पर विशेष जोर दिया जाना अहिंसा की स्थापना के लिये सार्थक सिद्ध हुआ है। क्योंकि आज देश एवं दुनिया हिंसा एवं युद्ध के महाप्रलय से भयभीत और आतंकित है। जातीय उन्माद, सांप्रदायिक विद्वेष और जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं का अभाव- ऐसे कारण हैं जो हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं और इन्हीं कारणों को नियंत्रित करने के लिए आचार्य महाश्रमण अहिंसा यात्रा के विशिष्ट अभियान के माध्यम से प्रयत्नशील बने थे।
भारत की माटी में पदयात्राओं का अनूठा इतिहास रहा है। असत्य पर सत्य की विजय हेतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा की हुई लंका की ऐतिहासिक यात्रा हो अथवा एक मुट्ठी भर नमक से पूरा ब्रिटिश साम्राज्य हिला देने वाला 1930 का डाण्डी कूच, बाबा आमटे की भारत जोड़ो यात्रा हो अथवा राष्ट्रीय अखण्डता, साम्प्रदायिक सद्भाव और अन्तर्राष्ट्रीय भ्रातृत्व भाव से समर्पित एकता यात्रा, यात्रा के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। भारतीय जीवन में पैदल यात्रा को जन-सम्पर्क का सशक्त माध्यम स्वीकारा गया है। ये पैदल यात्राएं सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक यथार्थ से सीधा साक्षात्कार करती हैं। लोक चेतना को उद्बुद्ध कर उसे युगानुकूल मोड़ देती हैं। भगवान् महावीर ने अपने जीवनकाल में अनेक प्रदेशों में विहार कर वहां के जनमानस में अध्यात्म के बीज बोये थे। जैन मुनियों की पदयात्राओं का लम्बा इतिहास है। वर्ष में प्रायः आठ महीने वे पदयात्रा करते हैं। लेकिन इन यात्राओं की श्रृंखला में आचार्य श्री महाश्रमण ने नये स्तस्तिक उकेरे हैं।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण तो इस युग के महान् यायावर हैं। वे नंगे पांव पदयात्रा करते हैं। शहरों, देहातों, खेड़ों और ग्रामीण अंचलों में जाकर सामूहिक एवं व्यक्तिगत जनसम्पर्क करते हैं। समाज के नैतिक और आध्यात्मिक स्तर को उन्नत बनाने तथा चरित्र और अहिंसा का प्रशिक्षण देने हेतु धर्म, दर्शन, इतिहास, अणुव्रत और सामयिक समस्याओं पर चर्चा करते हैं। लोगों को व्यसनों से मुक्त कर उनकी चेतना में नैतिक उत्क्रांति के बीज वपन करते हैं, समस्त पूर्वाचार्यों से एक विशेष कालखंड में सर्वाधिक लम्बी पदयात्रा करने के फलस्वरूप आचार्य श्री महाश्रमण को ”पांव-पांव चलने वाला सूरज“ संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तो यहां तक कहा है कि ”आचार्य श्री महाश्रमण अहिंसा की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं, आपकी अहिंसा यात्रा नैतिक क्रांति की मशाल बनकर मानव-मानव को अध्यात्म के प्रशस्त पथ पर सतत अग्रसर होने की प्रेरणा दे रही है।“
निश्चित ही आचार्य महाश्रमणजी आत्मरंजन या लोकरंजन जैसी धुंधली जीवन दृष्टि से प्रेरित होकर परिव्रज्या नहीं करते। उनके सामने उद्देश्य है-समाज के मूल्य मानकों में परिवर्तन कर उसे ऊँचे जीवन मूल्यों के अनुरूप ढालना। मानव जीवन के अंधेरे गलियारों में चरित्र का उजाला फैलाना। यात्रा जल की हो या मनुष्य की, उसकी अर्थवत्ता का आधार सदैव समष्टि का हित ही होता है। जल का प्रवाह धरती के कण-कण को हरियाता है, तो रस धार बन जाता है और यायावर समाज का निर्माण और उत्थान करता हुआ निरन्तर आगे बढ़ता है, तो कहलाता है युग पुरुष, युग निर्माता, युगप्रधान।
स्वल्प आचार्य शासना में आचार्य महाश्रमण ने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। कृष्ण, महावीर, बुद्ध, जीसस के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, कबीर, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा से ऐसे जीवन मूल्यों को चुन-चुनकर युग की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य उन्होंने किया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों-विचारों से अस्पर्शित रहा हो। योग, तंत्र, मंत्र, यंत्र, साधना, ध्यान आदि के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या विस्फोट, पर्यावरण, हिंसा, जातीयता, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण, भ्रूणहत्या और महंगाई के विश्व संकट जैसे अनेक विषयों पर भी अपनी क्रांतिकारी जीवन-दृष्टि प्रदत्त की है। जब उनकी उत्तराध्ययन और श्रीमद् भगवद गीता पर आधारित प्रवचन शृंखला सामने आई, उसने आध्यात्मिक जगत में एक अभिनव क्रांति का सूत्रपात किया है। आचार्य महाश्रमण के निर्माण की बुनियाद भाग्य भरोसे नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, पुरुषार्थी प्रयत्न, समर्पण और तेजस्वी संकल्प से बनी है। हम समाज एवं राष्ट्र के सपनों को सच बनाने में सचेतन बनें, यही आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा है और इसी प्रेरणा को जीवन-ध्येय बनाना हमारे लिए शुभ एवं श्रेयस्कर है।