रीड के इस्तीफे के बाद भारतीय हॉकी टीम के चीफ कोच के लिए कई नाम चर्चा में

  • हॉकी इंडिया ने भारत के चीफ हॉकी कोच के लिए मांगे आवेदन
  • भारत के लिए चाल्र्सवर्थ और हरेन्द्र की जोड़ी हो सकती है सबसे बेहतर

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : ग्राहम रीड के भारत के हॉकी विश्व कप में निराशाजनक प्रदर्शन कर नौवें स्थान पर रहने के बाद चीफ कोच के पद से इस्तीफे को हॉकी इंडिया ने तुरंत मंजूर कर इसके लिए इस पद के लिए तुरंत ही नए आवेदन मंगाए हैं।भारत के चीफ हॉकी चीफ कोच के रूप में कार्यकाल हालांकि 2024 के पेरिस ओलंपिक था। रीड के साथ ही भारत के एनालिटिकल कोच ग्रेग क्लार्क और साइंटिफिक एडवाइजर मिचेल डेविड पेमबर्टन ने भी अपने पद छोड़ दिए थे। भारतीय पुरुष हॉकी टीमों के लिए इन दोनों पदों के लिए हॉकी इंडिया ने नए आवेदन मांगे हैं। इनके लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख 15 फरवरी रखी गई है।

दरअसल रीड के इस्तीफे का समय भारतीय हॉकी टीम के लिए बहुत परेशान करने वाला है। भारतीय हॉकी टीम के लिए 2024 में पेरिस ओलंपिक के लिए सीधे क्वॉलिफाई करने के लिए इस साल २३ सितंबर से 8 अक्टूबर, हांगजू(चीन) तक होने वाले एशियाई खेलों में हॉकी में स्वर्ण पदक जीतना अहम है। भारतीय हॉकी टीम के पास सात महीने बाकी हैं। ऐसे में हॉकी इंडिया के लिए ग्राहम रीड की जगह नया काबिल कोच तलाशना बेहद मुश्किल होगा। भारत में यूं भी हॉकी विश्व कप में नाकामी के बाद जिस तरह चीफ कोच को पद से हटाने का चलन सा हो गया है उसके लिए कोई भी बहुत काबिल कोच इसके आसानी से तैयार नहीं होगा। 2024 के ओलंपिक के चलते कोई भी नामी कोच इस समय खाली नहीं है।

रीड के इस्तीफे के बाद हॉकी इंडिया द्वारा निकाले विज्ञापन के जरिए मांगे गए आवेदन के बाद भारत के चीफ हॉकी कोच पद के लिएं बुढ़ाते कोच नीदरलैंड के सीजफ्राइड आइकमैन(63 बरस), रोलैंट ओल्टमैंस(68 बरस) के साथ भारत के पूर्च कोच शुएर्ड मराइन (48 बरस) के साथ , 2019 तक भारत के चीफ कोच रहे फिलहाल अमेरिकी पुरुष टीम के कोच हरेन्द्र सिंह(56 बरस) ,स्पेन के कोच मैक्स कालडास(50 बरस), बेल्जियम के सहायक कोच न्यूजीलैंड के शेन मैकलियाड, ऑस्ट्रेलिया के जे स्टैसी जैसे कई नामों की चर्चा हैं। किसी के भी फिलहाल इसके लिए अभी तक औपचारिक रूप से आवेदन करने की पुष्टिï नहीं हुई है। एक दिलचस्प बात यह है कि हॉकी इंडिया के हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर का पद भी खाली है। चार ओलंपिक में ऑस्ट्रेलिया की नुमाइंदगी करने वाले और बतौर चीफ कोच दो विश्व कप और दो ओलंपिक में अपने देश को दो-दो बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक जिताने वाले रिक चाल्र्सवर्थ सबसे बेहतर विकल्प हो सकते हैं। बेशक चाल्र्सवर्थ भावुक हैं लेकिन अपने अंदाज में किसी टीम को तैयार करने और संवारने के लिए उसका खाका बना मंजिल तक पहुंचाना तो चाल्र्सवर्थ से सीखे। उनके साथ हरेन्द्र सिंह भारत के लिए चीफ कोच के लिए सबसे बढिय़ा विकल्प हैं। हाई परफॉर्मेंस डायेक्टर चाल्र्सवर्थ और चीफ कोच के रूप में हरेन्द्र सिंह की जोड़ी भारतीय हॉकी के लिए सबसे बेहतर हो सकती है और उसे बहुत आगे ले जा सकती है। चाल्र्सवर्थ बहुत कम समय के लिए भारत के हॉकी डायरेक्टर भी रहे लेकिन भारतीय हॉकी संघ (आईएचएफ) के तत्कालीन अध्यक्ष केपीएस गिल से टकराव के चलते उन्होंने यह जिम्मेदारी तोड़ दी।

चाल्र्सवर्थ को हॉकी इंडिया के हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर की और हरेन्द्र सिंह को यदि चीफ कोच की जिम्मेदारी यदि लंबे समय के लिए दी जाए तो भारतीय हॉकी टीम 2023 के एशियाई खेलों में तो स्वर्ण जीत ही सकती है 2024 के पेरिस ओलंपिक में भी बहुत आगे तक जा सकती है।

हरेन्द्र सिंह बतौर चीफ कोच जूनियर भारत को 2016 में लखनउ में जूनियर हॉकी विश्व कप और दो बरस ही भुवनेश्वर में 2018 में सीनियर विश्व हॉकी विश्व कप के क्वॉर्टर फाइनल में पहुंचाने में कामयाब रहे थे। बदकिस्मती से नीदरलैंड के हाथों विवादास्पद क्वॉर्टर फाइनल में 1-2 से हार से भारत विश्व कप से बाहर जरूर हुआ था लेकिन उसने तब दिखाया कि टीम को मुश्किलों से लडऩा आता है। वह भारत की मौजूदा टीम के ज्यादातर खिलाडिय़ों की ताकत और कमजोरियों के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से जानते हैं। अमेरिका की पुरुष टीम के चीफ कोच पद छोडऩे के लिए भी एक धारा रहती है। हरेन्द्र भी बतौर कोच एफआईएच का सबसे बड़ा लेवल चार कोर्स कर चुके हैं और इस लिहाज से वह दुनिया में मॉडर्न हॉकी में किसी से कम नहीं हैं। हरेन्द्र भी अपने अंदाज में भारतीय टीम को आगे ले जाना चाहते हैं। यहां जरूरी होगा कि भारत के पूर्व कप्तान हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की , महासचिव भोलानाथ सिंह को भारतीय हॉकी के हित को जेहन में रखकर चाल्र्सवर्थ को हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर और पुरुष हरेन्द्र सिंह को चीफ कोच की बाबत चुनने की बाबत सोचें। हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की को खुद यह समझना होगा कि केवल विदेशी होने से कोच टीम की किस्मत नहीं संवार सकता। दिलीप टिर्की को खुद याद होगा कि 2004 में एथेंस ओलंपिक से कुछ ही महीने पहले ही जर्मनी के गेरहार्ड राख के रूप में भारत के पहले विदेेशी कोच के रूप में नियुक्त करने से टीम की क्या दुर्गत बनी थी।