अखिलेश जीत से अहंकार नहीं पालें, बीजेपी के हश्र से लें सबक

Akhilesh should not be proud of victory, learn a lesson from the fate of BJP

संजय सक्सेना

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के हौसले इस समय काफी बुलंद हैं। उनकी पार्टी ने यूपी की 80 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की है। इसी के बाद वह यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 और 2019 में 62 और अबकी 2024 में 33 सीटें एवं यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में 312 तथा 2022 में 273 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमलावर हैं। ऐसा होना स्वभाविक भी है,उन्हें(अखिलेश यादव) अपने नेतृत्व में पहली बार लोकसभा चुनाव में 37 सीटों पर जीत का स्वाद चखने को मिला है।इससे पहले अखिलेश की जीत रिकार्ड ना के बराबर था।वह समाजवादी पार्टी की बागडोर संभालने के बाद लगातार जीत के लिये तरस रहे थे। 2012 के विधान सभा चुनाव, जो समाजवादी पार्टी द्वारा मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़े गये थे गये थे,उसमें समाजवादी पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था,लेकिन चुनाव जीतने के बाद मुलायम ने अपनी जगह बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था,जिसका लेकर पार्टी में मनमुटाव भी देखने को मिला था। तब से लेकर आज तक समाजवादी पार्टी यूपी से लेकर दिल्ली तक के चुनाव में अपनी पैठ नहीं बना पाई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को यूपी की 80 सीटों में से मात्र 05 सीटों पर एवं 2019 में सीटों पर जीत हासिल हुई थी। सपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के साथ मिलकर और अबकी 2024 का लोकसभा चुनाव कांगे्रस के साथ मिलकर लड़ा था।वहीं 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव जो उसने कांगे्रस के साथ मिलकर लड़ा था उसमें सपा को मात्र 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा था और 2022 में भी बहुत अच्छा करने के बाद भी 125 सीटों पर उसकी जीत का आकड़ा ठहर गया था।

लब्बोलुआब यह है कि अखिलेश को सपा का नेतृत्व संभाले दस वर्ष हो चुके हैं। इन दस वर्षो में सपा को चार बड़ी हार और कई छोटी-छोटी हार का भी सामना करना पड़ा था। दस वर्षो के बाद पहली बार 2024 के आम चुनाव में में उनकी पार्टी की जीत का ग्राफ बढ़ा जरूर है,लेकिन यह बढ़त इतनी नहीं थी,जितना सपा प्रमुख द्वारा प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। भाजपा की यूपी में चार सीटें ही समाजवादी पार्टी से कम आई हैं और इसकी वजह बीजेपी के प्रति जनता की नाराजगी से अधिक उसके(बीजेपी)भीतर की खींचतान थी। बहरहाल, अखिलेश अपने हिसाब से राजनीति करने के लिये स्वतंत्र हैं,लेकिन उनका अहंकार उचित नहीं है।जीत की खुशी में किसी धर्म का मजाक नहीं उड़ाया जा सकता है। दुखद यह है कि अखिलेश यादव जाने-अंजाने ऐसा कर रहे हैं, जिस तरह मुलायम सिंह ने सत्ता में रहते कारसेवकों पर गोली चलाई और फिर इसके महिमामंडित किया था,उसी तरह से आज अखिलेश यादव अयोध्या से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की जीत के बाद कर रहे हैं।इसके लिये वह सीधे तौर पर तो कुछ नहीं करते हैं,लेकिन उनके संकेत की राजनीति का यही निचोड़ नजर आता है कि आज भी समाजवादी पार्टी प्रभु श्रीराम की विरोधी है। यहां तक की संसद में भी अखिलेश ऐसा ही कर रहे हैं। 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और सांसद अखिलेश यादव ने सदन में बोलते हुए बीजेपी सरकार पर जमकर हमला बोला,इसमेे किसी को आपत्ति भी नहीं थी। अखिलेश ने पेपर लीक मुद्दा, अयोध्या, जाति जनगणना, एमएसपी, ओपीएस, अग्निवीर योजना जैसे कई मुद्दों के सहारे बीजेपी सरकार को घेरा तो यूपी का जिक्र करते हुए कहा कि जुमला बनाने वालों से विश्वास उठ गया। सपा प्रमुख ने पेपर लीक मामले को लेकर भी सरकार पर सवाल उठाए। कहा कि यूपी में परीक्षा माफिया का जन्म हुआ है। पेपर लीक मुद्दे पर बोलते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘पेपर लीक क्यों हो रहे हैं? सच तो यह है कि सरकार ऐसा इसलिए कर रही है ताकि उसे युवाओं को नौकरी न देनी पड़े।‘‘ वहीं ईवीएम पर समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘.ईवीएम पर मुझे कल भी भरोसा नहीं था, आज भी नहीं है भरोसा, मैं 80 में 80 सीटें जीत जाऊं तब भी नहीं भरोसा होगा। वह बोले ईवीएम का मुद्दा खत्म नहीं हुआ है।‘‘अखिलेश कहते हैं कि यहां हारी हुई सरकार विराजमान है।

ये चलने वाली नहीं गिरने वाली सरकार है। आवाम ने हुकूमत का गुरूर तोड़ा जनता कह रही, सरकार गिरने वाली है। संविधान रक्षकों की जीत हुई है। अखिलेश ने कहा, ‘‘देश के सभी समझदार और ईमानदार मतदाताओं को धन्यवाद जिन्होंने देश के लोकतंत्र को एकतंत्र बनाने से रोका। आवाम ने तोड़ दिया हुकुमत का गुरुर, दरबार तो लगा है पर बड़ा गमगीन बेनूर।‘‘ सपा प्रमुख ने कहा, ‘‘कहने को यह सरकार कहती है कि ये फिफ्थ लार्जेस्ट इकोनॉमी बन गई है, लेकिन यह सरकार क्यों छुपाती है हमारे देश की पर कैपिटल इनकम किस स्थान पर पहुंची है? वल्र्ड हंगर इंडेक्स पर कहां खड़े हैं, नीचे से कहां है?‘‘मगर जब अखिलेश से राहुल गांधी के हिन्दुओं को हिंसक बताये जाने वाले बयान पर प्रतिक्रिया मांगी जाती है तो वह इधर-उधर की बात करने लगते हैं।

खैर,सपा प्रमुख अखिलेश यादव की बातों में दम तो लगता है,लेकिन वह यह नहीं याद रखते हैं कि समाजवादी पार्टी में किस तरह से नकल माफिया सक्रिय रहते थे। सरकारी नौकरियां निकलने से पहले इनकी भर्ती के लिये सौदा हो जाता था। दबंग समाजवादी नेता कैसे थानों थानों पर ‘कब्जा’ कर लेते थे।सरकारी टेंडर के लिये कैसे खून-खराबा होता था। भू माफिया किस तरह से जमीनांे पर कब्जा कर लेते थे। लड़कियों का सड़क पर चलना मुश्किल हो गया था। कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलराज फैल गया था। इसी को मुद्दा बनाकर बीजेपी ने 2017 के विधान सभा चुनाव में सत्ता से उखाड़ कर फेंक दिया था। अखिलेश पर हिन्दुओं को दलित, ओबीसी के नाम पर बांटने पर भी आरोप लगता रहता है,परंतु वह इस पर कुछ नहीं बोलते हैं।वह यह भी नहीं बताते हैं कि पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जिस कांगे्रस से हमेशा दूरी बनाकर चलते थे,उससे उन्होंने कैसे हाथ मिला लिया।

अच्छा होता कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव आम चुनाव में मिली जीत से आनंदित होते,लेकिन वह आनंदित से अधिक अहंकार में डूबे ज्यादा नजर आ रहे हैं,जबकि वह अहंकार में डूबी बीजेपी का हश्र देख चुके हैं।