अखिलेश का हरियाणा में समर्थन, क्या कांग्रेस यूपी उपचुनाव और भविष्य में वैसा ही सहयोग दिखाएगी?

Akhilesh Yadav Support in Haryana, Will Congress Show Similar Support in UP Bipoles and in Future?

अजय कुमार

सपा प्रमुख अखिलेश यादव का हरियाणा विधानसभा चुनाव से पीछे हटना और कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला राजनीति के खेल में एक बड़ा बदलाव लाया है। यह कदम न केवल हरियाणा की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी इसके गहरे प्रभाव हो सकते हैं। अखिलेश यादव ने इस निर्णय के साथ एक महत्वपूर्ण संकेत दिया है कि सपा की प्राथमिकता बीजेपी को हराने की है, न कि अपने राजनीतिक हितों की रक्षा करना।

अखिलेश यादव ने हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव से अपनी पार्टी के कदम पीछे खींचने की घोषणा की। यह निर्णय तब आया जब कांग्रेस ने सपा को हरियाणा में अधिक सीटें देने से इंकार कर दिया। कांग्रेस की इस स्थिति ने अखिलेश यादव को एक नई रणनीति अपनाने पर मजबूर किया। अखिलेश ने स्पष्ट किया कि सपा की प्राथमिकता बीजेपी को हराना है और इसके लिए वे हर त्याग करने को तैयार हैं। उन्होंने ट्वीट किया कि यह समय अपने राजनीतिक लाभ की सोचने का नहीं, बल्कि जनता के दुख-दर्द को समझने और बीजेपी की सियासत से उन्हें मुक्ति दिलाने का है।

सपा ने हरियाणा चुनाव के लिए 17 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई थी। पार्टी की प्रदेश इकाई ने जुलाना, सोहना, बावल, बेरी, चरखी-दादरी, और बल्लभगढ़ जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपनी नजर गड़ी थी। लेकिन जब कांग्रेस ने सपा को एक सीट से ज्यादा देने से मना कर दिया, तो अखिलेश ने इस स्थिति का सामना करते हुए हरियाणा चुनाव से अपने कदम पीछे खींचने का निर्णय लिया। इस फैसले के साथ उन्होंने कांग्रेस को पूरा समर्थन देने का ऐलान किया है, जिससे उनकी पार्टी की इस चुनावी लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना बनी है।

अखिलेश यादव का यह त्याग कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती और एक मौका दोनों है। यदि कांग्रेस यूपी और महाराष्ट्र में सपा की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती, तो इसका असर दोनों दलों के रिश्तों पर पड़ सकता है। अखिलेश का हरियाणा में दिया गया समर्थन कांग्रेस को एक ऐसा मौका प्रदान करता है जिससे वह बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना सके। लेकिन इसके बदले में कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि वह सपा की उम्मीदों पर खरी उतर सकती है।

उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बार उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा है कि उनकी पार्टी इन उपचुनावों में 10 में से 5 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह घोषणा कांग्रेस की महत्वाकांक्षाओं को दर्शाती है, लेकिन अखिलेश यादव का कहना है कि कांग्रेस को उपचुनाव में केवल एक या दो सीटें ही मिलेंगी। उनकी पार्टी की रणनीति मौजूदा पांच सीटों को बचाए रखने और एनडीए की पांच सीटों पर कब्जा जमाने की है।

अखिलेश यादव का यह कदम यूपी में कांग्रेस के लिए एक मुश्किल स्थिति उत्पन्न कर सकता है। कांग्रेस ने 2024 लोकसभा चुनाव में छह सीटें जीतने के बाद से उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने की योजना बनाई है। राहुल गांधी लगातार यूपी का दौरा कर रहे हैं और कांग्रेस ने 2027 विधानसभा चुनाव के लिए 100 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रखा है। अब देखना होगा कि क्या कांग्रेस उपचुनाव में सपा की अपेक्षाओं को पूरा कर पाएगी।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी सपा ने 10 सीटों पर अपना दावा ठोका है। पार्टी ने मुंबई और ठाणे जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल और उत्तर भारतीय मतदाताओं वाली सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है। सपा ने महाराष्ट्र में अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। पार्टी ने उम्मीदवारों की सूची तैयार कर ली है और अब चुनावी मैदान में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

अखिलेश यादव ने हरियाणा में कांग्रेस को पूरा समर्थन देकर एक स्पष्ट संदेश दिया है कि सपा की प्राथमिकता बीजेपी को हराना है। अब कांग्रेस को यह तय करना होगा कि वह इस समर्थन का जवाब कैसे देती है। अगर कांग्रेस ने सपा की उम्मीदों को पूरा नहीं किया और यूपी और महाराष्ट्र में सपा की अपेक्षाओं को नजरअंदाज किया, तो इसका असर दोनों दलों के रिश्तों पर पड़ सकता है।

हरियाणा में सपा द्वारा दिखाए गए त्याग के बाद, कांग्रेस पर दबाव है कि वह यूपी और महाराष्ट्र में सपा को उचित सम्मान दे। कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि वह सपा के साथ अपने रिश्ते को मजबूत कर सकती है और बीजेपी के खिलाफ एक प्रभावी मोर्चा बना सकती है। अगर कांग्रेस ने इस मौके को सही तरीके से इस्तेमाल किया, तो यह चुनावी गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

सपा और कांग्रेस के बीच का यह राजनीतिक खेल न केवल हरियाणा, यूपी, और महाराष्ट्र की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे विपक्षी गठबंधन की राजनीति पर भी गहरा असर डालेगा। अखिलेश यादव ने हरियाणा में दिखाए गए त्याग के साथ एक नई राजनीतिक दिशा दी है, और अब कांग्रेस को यह साबित करना होगा कि वह इस समर्थन का सही इस्तेमाल कर सकती है। कांग्रेस और सपा के रिश्तों का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि वे अपने राजनीतिक लक्ष्यों को कैसे प्राप्त करते हैं और एक साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना सकते हैं।

इस तरह, अखिलेश यादव का हरियाणा चुनाव से पीछे हटना और कांग्रेस को समर्थन देना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय है जो भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य को बदल सकता है। यह निर्णय केवल सपा और कांग्रेस की राजनीति पर ही असर डालने वाला नहीं है, बल्कि यह बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की एकजुटता को भी दर्शाता है।