
संजय सक्सेना
2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव हर हाल में सत्ता में वापसी की जुगत में जुटे हैं। उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा का आधार लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव द्वारा स्थापित मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण रहा है। इस समीकरण के सहारे मुलायम सिंह तीन बार और अखिलेश यादव एक बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। लेकिन 2014 के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में आए बदलाव ने सपा के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हिंदुत्व की छतरी तले विभिन्न हिंदू जातियों को एकजुट करने में सफलता हासिल की है, जिसने सपा की परंपरागत रणनीति को कमजोर कर दिया है। अखिलेश यादव अब इस बदले सियासी परिदृश्य में अपनी पार्टी की छवि को नया रूप देने और व्यापक सामाजिक समर्थन हासिल करने की कोशिश में हैं। इसी कड़ी में सावन के पहले सोमवार, 14 जुलाई 2025 को, वे काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने जा रहे हैं, जिसे सियासी हलकों में सॉफ्ट हिंदुत्व के दांव के रूप में देखा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में सपा की राजनीति का आधार लंबे समय तक मुस्लिम और यादव वोटर रहे हैं। लेकिन बीजेपी ने सपा पर यादववाद और मुस्लिम तुष्टिकरण की छवि गढ़ने में सफलता हासिल की है, जिससे सपा का वोट आधार सीमित होता गया। अखिलेश यादव को इस बात का अहसास हो चुका है कि केवल एम-वाई समीकरण के सहारे बीजेपी को हराना अब संभव नहीं है। यही वजह है कि वे अपनी पार्टी की छवि को बदलने और व्यापक सामाजिक समर्थन हासिल करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के जरिए बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। इस रणनीति ने सपा को कुछ हद तक सफलता दिलाई, लेकिन बीजेपी ने इसके बाद फिर से सपा के खिलाफ सियासी तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है। ऐसे में अखिलेश अब सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चलते हुए सनातन धर्म के प्रतीकों को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सावन का महीना, जो 11 जुलाई 2025 से शुरू हो रहा है, धार्मिक दृष्टिकोण से उत्तर भारत में खास महत्व रखता है। इस दौरान लाखों भक्त हरिद्वार से गंगा जल लेकर कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और भगवान शिव के मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। काशी, जो भगवान शिव की नगरी के रूप में जानी जाती है, सावन में भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल बन जाती है। खासकर सावन के सोमवार को बाबा विश्वनाथ मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है। इस बार सावन के पहले सोमवार को अखिलेश यादव काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक करने जा रहे हैं। उनके साथ देशभर से लगभग 50 हजार यादव बंधु भी इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। यह आयोजन चंद्रवंशी गोप समिति के बैनर तले हो रहा है, जिसके प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में लखनऊ में अखिलेश से मुलाकात कर उन्हें इस धार्मिक आयोजन में शामिल होने का न्योता दिया था।
काशी में सावन के पहले सोमवार को यादव समुदाय की ओर से जलाभिषेक की परंपरा 1952 से चली आ रही है। इसकी शुरुआत स्व. तेजू सरदार ने की थी। हर साल यादव बंधु गौरी केदारेश्वर, तिलभांडेश्वर, और फिर दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर बाबा विश्वनाथ को अर्पित करते हैं। इसके बाद मृत्युंजय महादेव, त्रिलोचन महादेव और काल भैरव के दर्शन कर यह यात्रा पूरी होती है। इस बार अखिलेश यादव के इस आयोजन में शामिल होने को सियासी हलकों में व्यापक रूप से चर्चा का विषय माना जा रहा है। यह कदम न केवल उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि सपा की छवि को मुस्लिम परस्ती से बाहर निकालने और सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच स्वीकार्यता बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा भी है।
अखिलेश यादव की यह रणनीति उनकी पार्टी को मुलायम सिंह यादव के दौर की छवि से बाहर निकालने की कोशिश का हिस्सा है। मुलायम सिंह ने सपा की नींव मुस्लिम और यादव वोटों के आधार पर रखी थी, लेकिन बदले सियासी हालात में यह समीकरण अब पर्याप्त नहीं है। बीजेपी ने हिंदुत्व के एजेंडे को केंद्र में रखकर विभिन्न हिंदू जातियों को एकजुट करने में सफलता हासिल की है। सपा पर लगातार यादववाद और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों ने अखिलेश के लिए सत्ता में वापसी की राह को और मुश्किल बना दिया है। खासकर, ब्राह्मण और ठाकुर समुदायों के बीच सपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है, क्योंकि अखिलेश के कुछ बयानों को इन समुदायों के खिलाफ माना गया है। ऐसे में, काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक का यह कदम सनातन धर्म को मानने वाले व्यापक समुदाय के बीच सपा की स्वीकार्यता बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2014 के बाद से देश की सियासत में हिंदुत्व का प्रभाव बढ़ा है। बीजेपी ने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने में सफलता हासिल की है, जिसने विपक्षी दलों को भी धार्मिक प्रतीकों और सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। अखिलेश यादव का काशी दौरा इसी बदलते सियासी परिदृश्य का हिस्सा है। वे न केवल अपने परंपरागत यादव वोट बैंक को मजबूत करना चाहते हैं, बल्कि अन्य हिंदू समुदायों, खासकर सनातन धर्म को एकजुट देखने वालों का समर्थन भी हासिल करना चाहते हैं। हालांकि, बीजेपी की पिच पर उतरकर मुकाबला करना सपा के लिए आसान नहीं है। बीजेपी ने हिंदू समुदाय को अपना मजबूत वोट बैंक बना लिया है, और सपा का सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव कितना कारगर होगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।
इसके साथ ही, अखिलेश यादव सामाजिक न्याय के एजेंडे को भी मजबूत करने की कोशिश में हैं। मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर मुखर होने के बजाय, वे अब सामाजिक समावेशिता और पीडीए फॉर्मूले पर जोर दे रहे हैं। काशी में जलाभिषेक का यह कदम न केवल धार्मिक, बल्कि सियासी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह सपा को बीजेपी के हिंदुत्व के नैरेटिव का जवाब देने और व्यापक हिंदू समुदाय के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने का मौका देता है। हालांकि, इस रणनीति की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि अखिलेश यादव कितनी कुशलता से अपनी पार्टी की पुरानी छवि को बदल पाते हैं और बीजेपी के सियासी ताने-बाने का जवाब दे पाते हैं।
कुल मिलाकर, अखिलेश यादव का सावन के पहले सोमवार को काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना एक सोची-समझी सियासी रणनीति का हिस्सा है। यह कदम उनकी बदलती राजनीति को दर्शाता है, जहां वे परंपरागत एम-वाई समीकरण से आगे बढ़कर सनातन धर्म के प्रतीकों को अपनाने और व्यापक सामाजिक समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में नए रंग भरने की कोशिश में जुटे हैं।