
संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की छवि एक प्रखर नेता के रूप में होती है। अखिलेश खुलकर अपनी बात कहते हैं। यूपी में बीजेपी को समाजवादी पार्टी टक्कर देती रही है,लेकिन अखिलेश की राजनीति का यह एक ही पक्ष है दूसरा पक्ष इसके बिल्कुल उलट है। दरअसल,बात जब अल्पसंख्यकों से जुड़ी होती है तो अखिलेश यादव अपना मुंह सिल लेते हैं। सत्ता मे रहते अखिलेश न ने तुष्टिकरण की सियासत के चलते सीरियल ब्लास्ट के आरोपी आतंकवादियों पर से केस वापस लेने तक में गुरेज नहीं किया। इसी तरल लव जेहाद की घटनाओं और धर्मांतरण पर भी सपा प्रमुख चुप्पी साधे रखते हैं,जबकि हिन्दुत्व, आरएसएस,श्री रामलला मंदिर,कावड़ियों और सनातन के खिलाफ जहर उगलने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। हद तो तब हो गई जब मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में सपा प्रमुख ने एक मौलाना द्वारा उनकी पत्नी डिंपल यादव के खिलाफ दिये गये विवादित बयान पर भी चुप्पी साधे रखी। शायद उनको लगता होगा कि यह इम्पारटेंट नहीं है कि डिंपल की बेइज्जती हुई हुई,बलिक इम्पारटेंट यह है कि डिंपल की बेइज्जती करने वाले के खिलाफ मुंह खोलने से सपा का मुस्लिम वोट बैंक नाराज हो सकता है।
गौरतलब हो, इसी के चलते राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और मैनपुरी सांसद डिंपल यादव पर मौलाना साजिद रशीदी की अभद्र टिप्पणी ने न केवल एक राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, बल्कि सपा के लिए एक गंभीर चुनौती भी खड़ी कर दी है। इस घटना पर अखिलेश यादव की चुप्पी ने न सिर्फ उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं, बल्कि सपा के महिला वोट बैंक को भी खतरे में डाल दिया है। यह मुद्दा 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले सपा की रणनीति और छवि के लिए गंभीर संकट बन सकता है।
मौलाना साजिद रशीदी ने 22 जुलाई 2025 को संसद मार्ग स्थित मस्जिद में सपा सांसदों की बैठक के दौरान डिंपल यादव के पहनावे पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने डिंपल को राजनीतिक हिंदू महिला कहकर उनके साड़ी पहनने पर सवाल उठाए और मस्जिद की तौहीन का आरोप लगाया। इस टिप्पणी का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद लखनऊ के विभूतिखंड थाने में सपा नेता प्रवेश यादव ने मौलाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। प्रवेश यादव ने अपनी तहरीर में कहा, मौलाना साजिद ने मैनपुरी सांसद डिंपल यादव पर अमर्यादित टिप्पणी कर पूरे समाज को ठेस पहुंचाई है। यह सिर्फ एक महिला की गरिमा को ठेस नहीं, बल्कि समाज की हर महिला इस टिप्पणी से आहत है,लेकिन अखिलेश ने अंत तक मुंह नहीं खोला।
बहरहाल, इस विवाद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सपा पर हमला करने का मौका दे दिया। भाजपा की वरिष्ठ नेता और महिला कल्याण मंत्री बेबी रानी मौर्य ने लखनऊ में पत्रकार वार्ता में कहा, डिंपल यादव पर की गई टिप्पणी नारी सम्मान पर हमला है। अखिलेश यादव की चुप्पी सवाल खड़े करती है। क्या उन्होंने सत्ता के लिए अपनी पत्नी का अपमान स्वीकार कर लिया है? उन्होंने यह भी जोड़ा,‘यह एक महिला सांसद की गरिमा पर ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति पर हमला है। सपा का मौन क्या इस सोच की सहमति है कि अब मौलवी उनकी महिला सांसदों की गरिमा तय करेंगे?प्रयागराज में पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी सपा पर तंज कसते हुए कहा,‘अखिलेश तुष्टिकरण की नीति पर चलते हैं। चाहे उनके परिवार या पत्नी का अपमान हो, वे चुप रहते हैं। यह महिलाओं के लिए बड़ा संदेश है कि सपा में उनका सम्मान सुरक्षित नहीं है।
अखिलेश यादव की चुप्पी को भाजपा ने वोट बैंक की राजनीति से जोड़ा है। लखनऊ में भाजपा एमएलसी सुभाष यदुवंश ने अटल चौक पर होर्डिंग लगाकर अखिलेश को मौन मुखिया करार दिया। होर्डिंग में लिखा था, पत्नी के अपमान पर चुप रहने वाले प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा क्या करेंगे? धिक्कार है अखिलेश जी। यह होर्डिंग सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे सपा की मुश्किलें और बढ़ गईं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है, खासकर तब जब सभी दल महिला वोटरों को साधने में जुटे हैं।
बता दें उत्तर प्रदेश में महिला वोटरों की भूमिका हाल के चुनावों में निर्णायक रही है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत में महिला केंद्रित योजनाओं जैसे लाडली बहिन और लाड़ली लक्ष्मी का बड़ा योगदान रहा। सपा भी इस तथ्य से वाकिफ है और 2027 के चुनावों के लिए डिंपल यादव के नेतृत्व में महिला वोटरों को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। जून 2025 में लखनऊ में सपा की महिला सभा की बैठक में अखिलेश और डिंपल ने बूथ स्तर पर महिला कार्यकर्ताओं को संगठित करने और घर-घर जाकर संपर्क करने की योजना बनाई थी। लेकिन मौलाना की टिप्पणी और अखिलेश की चुप्पी ने इस रणनीति को झटका दिया है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश की चुप्पी को एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा सकता है, ताकि मुस्लिम वोट बैंक नाराज न हो। अखिलेश ने इस मुद्दे पर सीमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, लोकसभा में क्या पहनकर आएं, बताओ। जो लोकसभा में पहनकर आएंगे, वो ही हमारी हर जगह ड्रेस होगी। यह बयान उनके आक्रामक रुख से इतर रहा, जो आमतौर पर वे अन्य मुद्दों पर दिखाते हैं। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी इस मुद्दे को तूल देकर धार्मिक ध्रुवीकरण से बचना चाहती है, लेकिन यह चुप्पी महिला वोटरों को पार्टी से दूर कर सकती है।
महिला वोटरों का सपा से मोहभंग होने का खतरा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि उत्तर प्रदेश में महिलाएं मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में महिला मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक था। ऐसे में, डिंपल यादव पर अभद्र टिप्पणी और उस पर सपा की नरम प्रतिक्रिया से महिला वोटरों में नाराजगी फैल सकती है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां डिंपल की सादगी और साड़ी पहनने की शैली को महिलाएं पसंद करती हैं, यह विवाद सपा की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
भाजपा ने इस मुद्दे को संसद से सड़क तक उठाकर सपा को घेरने की कोशिश की है। 28 जुलाई को एनडीए सांसदों ने संसद परिसर में प्रदर्शन किया और महिलाओं के सम्मान का मुद्दा उठाया। लखनऊ में भाजपा की महिला इकाई ने भी अखिलेश की चुप्पी पर रोष जताया। सपा के लिए यह स्थिति इसलिए भी नुकसानदायक है क्योंकि पार्टी पहले से ही तुष्टिकरण के आरोपों से जूझ रही है। डिंपल यादव ने इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि उनकी गरिमा और सादगी ही उनकी ताकत है।
इस पूरे प्रकरण में सपा की रणनीति अब तक संतुलन बनाए रखने की रही है, लेकिन यह संतुलन उनकी महिला वोटरों को खोने की कीमत पर भारी पड़ सकता है। अगर सपा इस मुद्दे पर स्पष्ट और आक्रामक रुख नहीं अपनाती, तो 2027 के चुनावों में उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। दूसरी ओर, भाजपा इस मुद्दे को और भुनाने की कोशिश में है, ताकि वह महिला वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर सके। कुल मिलाकर, यह विवाद सपा के लिए एक राजनीतिक संकट बन गया है, जिसका असर आने वाले समय में स्पष्ट होगा।