तेज प्रताप की सियासी तन्हाई में अखिलेश का साथ, क्या साइकिल बनेगी वापसी का जरिया?

Akhilesh's support to Tej Pratap in his political loneliness, will the cycle become a means for his comeback?

अजय कुमार

बिहार की सियासत में उस समय एक नया तूफान खड़ा हो गया जब आरजेडी से निष्कासित तेज प्रताप यादव और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच वीडियो कॉल की बातचीत सामने आई। यह कोई सामान्य बातचीत नहीं थी, बल्कि उस युवा नेता के भविष्य की राजनीति का संकेत थी, जो कभी लालू यादव के उत्तराधिकारी माने जाते थे, लेकिन अब परिवार और पार्टी दोनों से बाहर हैं। तेज प्रताप यादव ने इस वीडियो कॉल की जानकारी खुद अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर दी और लिखा कि इस कठिन समय में अखिलेश यादव का फोन आना उनके लिए भावनात्मक सहारा था। उन्होंने यह भी कहा कि वह इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं।

तेज प्रताप यादव ने अपनी पोस्ट में इस बात का ज़िक्र किया कि अखिलेश यादव ने उनसे पूछा कि वह कहां से विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इस पर तेज प्रताप ने जवाब दिया कि वह चुनाव से पहले लखनऊ आकर आपसे मिलेंगे और उससे दो-तीन दिन पहले जानकारी देंगे। हालांकि उन्होंने कोई सीट स्पष्ट नहीं की, लेकिन यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि तेज प्रताप बिहार की राजनीति में वापसी की तैयारी कर चुके हैं और अखिलेश यादव उनके लिए एक संभावित राजनीतिक सहयोगी बनकर सामने आए हैं।

यह घटनाक्रम तब हुआ है जब तेज प्रताप यादव को उनके पिता और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने 25 मई 2025 को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने अनुष्का यादव के साथ विवादास्पद पोस्ट डाली और लगातार गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे थे। यही नहीं, लालू यादव ने तेज प्रताप को परिवार से भी बेदखल करने का ऐलान कर दिया था। इस फैसले के बाद तेज प्रताप एकदम अकेले नजर आने लगे। पार्टी के नेता, उनके भाई तेजस्वी यादव और उनके नजदीकी सभी उनसे दूरी बनाने लगे। ऐसे समय में जब कोई उनके पास नहीं था, अखिलेश यादव का कॉल आना खुद तेज प्रताप के लिए भावनात्मक राहत से कम नहीं था।

तेज प्रताप ने इस बातचीत को बहुत इमोशनल तरीके से प्रस्तुत किया और लिखा कि अखिलेश यादव उनके परिवार के सबसे प्यारे सदस्यों में से एक हैं और हमेशा उनके दिल के करीब रहे हैं। इस वक्तव्य से साफ है कि दोनों नेताओं के बीच केवल राजनीतिक नहीं बल्कि पारिवारिक रिश्ते भी मजबूत हैं। तेज प्रताप की बहन राजलक्ष्मी की शादी अखिलेश यादव के भतीजे तेज प्रताप सिंह से हुई है। इस रिश्ते की गर्मजोशी अब सियासत में भी एक नया रास्ता खोल सकती है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तेज प्रताप यादव अगर समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं, तो उनकी दो पुरानी सीटें महुआ और हसनपुर सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकती हैं। तेज प्रताप 2015 में महुआ और 2020 में हसनपुर से विधायक रह चुके हैं। उन्होंने 8 दिसंबर 2024 को एक अस्पताल उद्घाटन के दौरान महुआ सीट से फिर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। उन्होंने सड़क, अस्पताल और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों का हवाला देते हुए बताया था कि वह अपने क्षेत्र के विकास में विश्वास रखते हैं और महुआ की जनता से उनका पुराना नाता है।

हालांकि, तेज प्रताप के सामने चुनौती यह है कि आरजेडी बिहार में एक मजबूत संगठन है और सपा की वहां कोई ठोस मौजूदगी नहीं है। लेकिन यादव वोट बैंक की राजनीति में दोनों दलों की साझा दिलचस्पी उन्हें एकजुट कर सकती है। समाजवादी पार्टी बिहार में यादव समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है और तेज प्रताप की लोकप्रियता को देखते हुए सपा को यहां मजबूती मिल सकती है। तेज प्रताप की छवि हालांकि कभी-कभी विवादित रही है, लेकिन उनके पास एक ऐसा समर्थक वर्ग है जो उन्हें ‘यदुवंशी नेता’ के रूप में देखता है।

अब जब बिहार विधानसभा चुनाव में महज चार महीने बचे हैं, तो नई पार्टी बनाकर जमीन पर उतरना तेज प्रताप के लिए एक कठिन कार्य होगा। इससे अच्छा विकल्प यह है कि वह सपा के साथ गठबंधन में मैदान में उतरें। अगर वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ते हैं और इंडिया गठबंधन के तहत आरजेडी उन्हें सीट छोड़ देती है, तो यह एक सधा हुआ राजनीतिक दांव होगा। तेज प्रताप को टिकट मिलेगा, आरजेडी को यादव वोटों में सेंध नहीं लगेगी और सपा को बिहार में मजबूती मिलेगी।

हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी की बिहार में सक्रियता भी इस दिशा में इशारा करती है। पटना में सपा सांसद अफजाल अंसारी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच बंद कमरे में लंबी बातचीत हुई थी। चर्चा यह थी कि सपा बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के साथ मिलकर लड़ेगी। इससे यह संभावना और प्रबल हो जाती है कि तेज प्रताप को सपा के सिंबल पर मैदान में उतारकर गठबंधन के भीतर ही उन्हें पुनर्स्थापित किया जाए।

तेज प्रताप ने अतीत में ‘तेज सेना’ और ‘यदुवंशी सेना’ जैसे संगठन बनाए थे, लेकिन उन्हें राजनीतिक दल के रूप में स्थापित करना इस समय संभव नहीं दिखता। चुनावी तैयारी, संगठन खड़ा करना, कार्यकर्ता बनाना और मतदाता तक पहुंच बनाना, ये सब एक नए दल के लिए एक छोटे वक्त में कठिन होगा। इसलिए सपा के साथ आकर मैदान में उतरना, उनके लिए सबसे व्यवहारिक और सुरक्षित विकल्प प्रतीत होता है।

तेज प्रताप ने पटना में अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठकें की हैं और कई बार सोशल मीडिया पर भावनात्मक वीडियो या पोस्ट के जरिए अपने समर्थकों को एकजुट करने की कोशिश की है। उनका प्रयास है कि उन्हें ‘पीड़ित पुत्र’ के रूप में पेश किया जाए जिसे न केवल पार्टी ने बल्कि परिवार ने भी छोड़ दिया है। ऐसे में यदि अखिलेश यादव जैसे नेता उनके साथ खड़े होते हैं, तो यह केवल भावनात्मक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है।

लालू यादव के बारे में भी यह अटकलें हैं कि वह पर्दे के पीछे से सियासी बिसात बिछा रहे हैं। एक तरफ वह तेज प्रताप को पार्टी से निष्कासित करके अपनी छवि को मजबूत करते हैं, वहीं दूसरी तरफ यह संभावना खुली रहती है कि गठबंधन के नाम पर तेज प्रताप को दूसरे रास्ते से फिर मैदान में उतार दिया जाए। इससे पार्टी की एकता भी बनी रहेगी और तेज प्रताप का सियासी जीवन भी।

तेज प्रताप की ये रणनीति इस बात की ओर भी इशारा करती है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में केवल पारंपरिक समीकरण नहीं बल्कि पारिवारिक और भावनात्मक समीकरण भी बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं। अखिलेश यादव और तेज प्रताप यादव की बातचीत सिर्फ एक वीडियो कॉल नहीं थी, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नई दिशा की दस्तक थी। अब देखना यह होगा कि तेज प्रताप यादव अगला कदम कब और किस मंच से उठाते हैं और क्या वह वाकई सपा की साइकिल पर सवार होकर बिहार की राजनीति में एक नई पारी की शुरुआत करते हैं।

यह कहानी जितनी तेज प्रताप की है, उतनी ही बिहार की राजनीति में आने वाले बदलावों की भी है। अगर तेज प्रताप समाजवादी पार्टी में शामिल होते हैं और गठबंधन के तहत चुनाव लड़ते हैं, तो यह कदम न केवल उनकी वापसी होगी बल्कि बिहार की राजनीति में एक नई ध्रुवीकरण की शुरुआत भी हो सकती है।