रविवार दिल्ली नेटवर्क
दिल्ली : प्रख्यात शायर दीक्षित दनकौरी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में हिंदी अकादमी दिल्ली और उर्दू अकादमी दिल्ली के सहयोग से अंजुमन फ़रोग़ ए उर्दू, दिल्ली एवम काव्यलोक, गाजियाबाद के संयुक्त तत्वावधान में विवेक विहार दिल्ली में एक अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसके प्रथम सत्र की अध्यक्षता लखनऊ से पधारे भूपेन्द्र सिंह होश एवम द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर शकील शिफ़ाई ने की।
विशिष्ट अतिथियों के रूप में, विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार, केंद्रीय राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा, वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री, हिंदी अकादमी दिल्ली के सचिव संजय गर्ग, दिल्ली नगर निगम की पूर्व पार्षद संध्या दीक्षित और अमर भारती के समूह संपादक शैलेंद्र जैन ‘अप्रिय’ पधारे। अंजुमन फ़रोग़ ए उर्दू के अध्यक्ष मोईन अखतर अंसारी ने सभी आगंतुक अतिथियों और कवियों का स्वागत किया।
सुकवि अनिल ‘मीत’ और प्रख्यात शायर मोईन शादाब के शानदार संचालन में काव्य गोष्ठी में एन.सी.आर से पधारे शायर अरविंद ‘असर’, जगदीश जोशी ‘अंबर’, मनोज अबोध, सरिता जैन, डा श्वेता त्यागी, डा पूनम माटिया, सीमा सिकंदर, सोनम यादव, डा अल्पना सुहासिनी, डा राखी अग्रवाल, डा खुर्रम ‘नूर’ , डा सुधीर त्यागी, सुरेन्द्र सिंहल, डा चेतन आनंद, दिनेश मंजर, नंदिनी श्रीवास्तव, अंजना शर्मा, प्रखर पुंज, उषा श्रीवास्तव, देवेंद्र शर्मा, शैलेश अग्रवाल सहित देशभर के विभिन्न प्रांतों से पधारे करीब 40 कवियों /शायरों / शायरात ने सरस काव्यपाठ किया।
मध्य प्रदेश के ब्यावरा से आए युवा शायर राहुल कुंभकार के काव्यपाठ को हॉल में उपस्थित सैकड़ों काव्यप्रेमी श्रोताओं द्वारा खूब सराहा गया। राहुल कुंभकार ने कहा –
छुपाकर रख दिया बेटी ने दस का नोट गीता में,
वो कहती है कि गीता खोलकर अब कौन देखेगा।
ठाणे के चर्चित शायर संतोष सिंह के शे’रों को खूब दाद मिली –
तुम्हें हम भी सताने पर उतर आएं तो क्या होगा,
तुम्हारा दिल दुखाने पर उतर आएं तो क्या होगा।
हमें बदनाम करते फिर रहे हो अपनी महफ़िल में,
अगर हम सच बताने पर उतर आएं तो क्या होगा।
चर्चित युवा कवयित्री गार्गी कौशिक में नारी मन की पीड़ा को कुछ यूं व्यक्त किया –
चुप न रहती तो और क्या करती,
हक नहीं था के फैसला करती
मेरा मुझमें न कुछ बचा बाकी,
और कितनी बता, वफ़ा करती।
जगदीश जोशी अंबर (दिल्ली) को खूब दाद मिली, उन्होंने कहा –
मैं तेरे दिल तलक नहीं पहुंचा,
अपनी मंज़िल तलक नहीं पहुंचा।
बज्म में इंतज़ार जिसका था,
वो ही महफ़िल तलक नहीं पहुंचा।
जहां एक ओर प्रख्यात संचालक शायर मोईन शदाब ने वर्तमान समाज की बढ़ती हुई संवेदनहीनता पर मर्मांतक शे’र पढ़े –
हमारे गांव में रातों को यूं पहरा नहीं देते,
यहां वाले किसी को भी कभी धोखा नहीं देते।
हमारे शहर का अहसास एकदम हो चुका मुर्दा,
यहां पर लोग एंबुलेंस को भी रस्ता नहीं देते।
वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ शायर गोविन्द गुलशन ने अपने पुरकशिश तरन्नुम में
जादू सिफ़त लगी मुझे पत्थर की रौशनी,
मुझको भी खींच लाई तेरे दर की रौशनी।
बढ़ते ही जा रहे थे क़दम आदतन मेरे,
रस्ता बता रही थी, मुक़द्दर की रौशनी।
पढ़कर गोष्ठी को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।
उर्दू अदब के नामचीन वरिष्ठ शायर सुरेंद्र शजर ने अपनी जदीद शायरी से सबका मन मोह लिया। उन्होंने कहा –
तुम्हारी ईंट का बदला उतार सकता था,
अगर मैं चाहता पत्थर भी मार सकता था।
मैं चाहता तो सर ए बज़्म भीड़ से उठकर,
तुम्हारे चेहरे से चेहरा उतार सकता था।
देहरादून की शायरा मीरा नवेली ने अपने सुमधुर कंठ से –
हक़तलफ़ कर के किसी का जो मुझे मिल जाए ,
मुझको चाहत नहीं ऐसी किसी जागीर की भी।
उसने तो छोड़ दिया कब का हम असीरों को,
कितनी मजबूरी है इस इश्क़ की ज़ंजीर की भी।
ग़ज़ल पढ़कर वाह वाह लूटी।
मुंबई की प्रख्यात शायरा अलका ‘ शरर’ ने अपनी पुख्ता शायरी पेश की –
बुग्ज़ आँखों में था पर रस्म निभाई तो सही,
उसने महफ़िल में मेरी बात चलाई तो सही।
पास माचिस, न ही शोले, न थी मशअ’ल कोई,
तुमने लफ़्ज़ों से सही आग लगाई तो सही।
दूसरे सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ शायर शकील शिफाई के कलाम से गोष्ठी संपन्न हुई, उन्होंने पढ़ा –
पलट पलट के आए तो पाया न आशियाने को,
निकल गए थे बहुत दूर आबो-दाने को।
गोष्ठी के समापन के बाद काव्य लोक के संस्थापक राजीव सिंहल ने सभी अतिथियों, कवियों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।